स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं है ऑनलाइन शिक्षा

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राकेश कुमार अग्रवाल
शिक्षण संस्थाओं के बंद होने की बरसी समीप आ गई है . पूरे देश और दुनिया में कोविड 19 के कारण स्कूलों को बंद किए जाने के बाद ऑनलाइन शिक्षा का खूब ढिंढोरा पीटा गया . ऑनलाइन शिक्षा देने वाले प्लेटफार्म और एप की देश में बाढ आ गई . स्कूलों को हर हालत में ऑनलाइन शिक्षा देने के कडाई से निर्देश जारी किए गए . आनन फानन में ऑनलाइन पठन पाठन का सिलसिला भी चला . लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या आने वाला भविष्य इसी तरह की स्कूलिंग फ्राम होम का है . क्या यह स्कूली शिक्षा का कारगर विकल्प है या फिर यह केवल बच्चों को उलझाने का एक तकनीकी आधारित माध्यम था . सवाल यह भी है कि क्या स्कूली शिक्षा दांव पर लगने वाली है ? क्या इससे भविष्य में शिक्षकों की उपयोगिता नहीं रह जाएगी . क्या बुक्स स्टेशनरी का मार्केट भी कुछ सालों का मेहमान है ? सवाल बहुत सारे हैं लेकिन सबसे बडा सवाल यह भी है कि क्या किसी ने बच्चों के मन को टटोला है ? क्या किसी एनजीओ या सरकारी नुमाइंदे या फिर शिक्षा के नीति नियंताओं ने बच्चों के मन की थाह ली है कि वे क्या चाहते हैं .
आँकडों के अनुसार देश में स्कूलों की संख्या साढे पन्द्रह लाख है . लगभग 40000 कालेज एवं लगभग एक हजार विश्वविद्यालय हैं . जिनमें कितने शिक्षक , लेक्चरर , प्रोफेसर , लिपिक , प्रिंसिपल , चपरासी सभी की संख्या मिलाकर लगभग एक करोड पहुंचती है . जिनको सीधे तौर पर इन शिक्षण संस्थाओं से रोजगार मिला हुआ है .
मोदी सरकार वैसे भी कई वर्षों से रोजगार सृजित न कर पाने में नाकामी के आरोप झेल रही है . रही सही कसर लाकडाउन ने पूरी कर दी जिसके चलते देश के नौ करोड लोगों को रोजगार से हाथ धोना पडा .
आनलाइन शिक्षा को यदि कारगर माना जाए तो फिर क्लासरूम शिक्षा की जरूरत ही क्यों है . ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने वाली कंपनियां देश से प्रत्येक विषय के चुनिंदा शिक्षकों से पढवाकर पूरे देश को समान शिक्षा दे सकती हैं . न इतने शिक्षकों की जरूरत पडेगी . न क्लासरूम्स की न ही लैब्स , स्पोर्ट्स ग्राउंड आदि किसी सुविधा को जुटाने की जरूरत पडेगी . यू ट्यूब एवं अन्य प्लेटफार्म पर वीडियो पडे रहेंगे जिन्हें कोई भी छात्र अपने समयानुसार कभी भी पढ सकता है . देश में ऑनलाइन शिक्षा का कारोबार 3900 करोड तक पहुंच गया है . जिसके आने वाले चार वर्षों में 30000 करोड को पार करने की संभावना जताई जा रही है . ऑनलाइन शिक्षा के कारोबार से जुडी कंपनियों की लाकडाउन के कारण जैसे लाॅटरी निकल आई है उनको लगता है कि आगामी भविष्य आनलाइन शिक्षा का है . इसलिए इस कारोबार में भारी भरकम निवेश किया जा रहा है ताकि आनलाइन शिक्षा के बढते बाजार पर कब्जा जमाया जा सके .
हाल ही में एक मीडिया समूह ने देश के 13 राज्यों के 65 जिलों के 1500 पेरेंट्स , टीचर्स और स्टूडेंट्स के बीच एक सर्वे कराया है . सर्वे में 93 फीसदी अभिभावकों ने ऑफलाइन शिक्षा को ही बेहतर माना है . 97 फीसदी शिक्षकों ने कहा है कि क्लासरूम स्टडी में बच्चे ज्यादा आत्मविश्वास दिखाते हैं . 94 फीसदी स्टूडेंट्स ने माना कि कैंपस बंद होने से वे खेलों को, लायब्रेरी व दोस्तों को बहुत मिस करते हैं . आनलाइन पढने के कारण 38 फीसदी छात्रों की आँखों में परेशानी बढ गई है . क्योंकि ज्यादातर वक्त एक फिट से कम की दूरी पर स्क्रीन पर लगातार आँखें गडाए रखनी पडती हैं . 36 फीसदी बच्चे लगातार मोबाइल , लैपटाॅप , कम्प्यूटर पर चिपके रहने से उनके स्वभाव में चिडचिडापन आ गया है . जबकि 24 फीसदी बच्चों के अभिभावकों का मानना है कि एक साल से घर की चहारदीवारी के अंदर रहकर पढाई करने से उनमें अनुशासनहीनता घर कर गई है . अब बच्चे बात बात पर चीखने चिल्लाने लगते हैं . बात का सीधा जवाब नहीं देते .
41 फीसदी बच्चों के अनुसार आनलाइन क्लास में टापिक को समझने में तकलीफ होती है . टीचर ने एक बार अपनी बात को समझाया और आगे बढ गया . 30 फीसदी बच्चों के मुताबिक आनलाइन पढाई बडी ही बोरिंग और उबाऊ होती है . जबकि क्लास में बीच बीच में हंसी ठट्टा हो जाता है . क्लास में बोझिलता नहीं रहती . जबकि 15 फीसदी बच्चों के अनुसार वे आनलाइन क्लास में मन के सवाल ही नहीं कर पाए . 52 फीसदी स्टूडेंट्स के अनुसार उन्होंने इस एक साल में सबसे ज्यादा अपने दोस्तों और सहपाठियों को मिस किया है . जिनसे रोज मिलते थे बातें होती थीं . हैल्प मिलती थी . मिलकर शैतानियां करते थे . सब बहुत याद आता है . 30 फीसदी स्टूडेंटस को स्पोर्टस पीरियड मिस होना सबसे ज्यादा खला है . 30 फीसदी बच्चों को लायब्रेरी पीरियड का मिस होना आज भी याद आता है . जबकि 6 फीसदी बच्चोॆ को स्कूल का वार्षिकोत्सव का मिस होना रह रहकर याद आता है .
इस बात को बार बार समझने की जरूरत है कि आनलाइन शिक्षा से टापिक समझे व सीखे जा सकते हैं लेकिन स्कूल / कालेज बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ उनका बहुमुखी विकास करते हैं उनको एक्सप्लोर करने का प्लेटफार्म मुहैया कराते हैं . स्टूडेंट्स वो सब भी वहां सीखते हैं जिसे सरल शब्दों में दुनियादारी कहते हैं . और फिर स्कूलिंग फ्राम होम होने से बच्चा तो घर में यंत्रों के बीत कैद होकर रह जाएगा . इसलिए मेहरबानी करके आनलाइन शिक्षा को बस की इमरजेंसी खिडकी ही बनाये रखें तो बेहतर होगा .

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