हे विश्व के मठाधीशों कहाँ गई कोरोना वैक्सीन?

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साभार महेंद्र सिंह के फेसबुक वाल से

मुझे समझ मे नही आ रहा है कि अमेरिका ने कोरोना को लेके जो तेजी पकड़ी और भारत को लगभग धमकाने के स्टाइल में क्लोरोक्वीन मांगी उससे तो ऐसा लगा था की दवा बस कल परसो में फाइनल टेस्ट होकर हमारे दरवाजे आ जायेगी। वहां फाइनल टेस्ट होगा और डिब्बा टांगे स्वास्थ्य विभाग के लोग हमारे घर की घण्टी बजा कर टीका लगवाने के लिए गिड़गिड़ा रहे होंगे। ड्रामा पार्ट 2 में इजराइल फ्रांस और न जाने कितने देश के लोगों ने दवा बना डाली। टेस्ट भी कर डाला। लेकिन न तो अमेरिका में संक्रमण कम हुआ न ही किसी और देश का। अब चूंकि अमेरिका को हम पढ़ा लिखा मानते है और उनके सामने हम गंवार न दिखे इसलिए लग गए काम पर चूरन चटनी पीस कर आ गए मैदान में, जयपुर के डॉक्टरों ने भी आनन-फानन दवाई तैयार कर दी और विश्व की नम्बर वन हम सबकी चहेती अपनी मीडिया ने तुरन्त हमे विश्वगुरु बना दिया। सीना चौड़ा हो गया। अब क्या मुह दिखाएं सबको। बात सिर्फ इतनी सी है कि बिना सफल परीक्षण के इतनी जल्दबाजी क्यों ? जो पढ़ लिख कर इसकी डिग्री लिए बैठे हैं उन पर भरोसा करिए उन्हें समय दीजिये और उनका हौसला न तोड़िये उन्हें ग़ुमराह हताश न करिए। हर बीमारी की वैक्सीन का एक टाइम पीरियड होता है जिस पर कई तरह के शोध होते हैं जैसे वायरस कितने दिन में अपना एक चक्र पूरा करता है ? मानव शरीर मे ठीक होने के बाद वापस तो नही लौटता या दवा के असर से सो तो नही जाता। फिर उसके नेचर के हिसाब से वैक्सीन बनाई जाती है शोध होता है। इन सबके लिए पर्याप्त समय चाहिए। जल्दबाजी घातक है।
अब समझिए इसके पीछे के खेल को कि क्यों फैलाया जाता है प्रपंच। जिस वायरस का नेचर अभी हम ठीक से नही जान पाए है उसके लिए वैक्सीन कैसे बन सकती है। अब चूंकि तमाम व्यवसायिक घरानों और बाबाओं को इस दौर में मुनाफा दिख रहा है तो वो हमारे पैसे से हमारी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हम पर ही उपकार कर रहे हैं। ये शीशी वो टेबलेट अब इन सब से आज़ाद होने का समय है। गुमराह मत होइए। पत्रकारिता के दौर में हमने ऐसे कई किस्से कहानी सुने देखे हैं। मुनाफे की होड़ में चीन से लेकर अमेरिका तक सब मानवता को ताख पर रख देते हैं। फ्रांस और अमेरिका की बात आती है तो लगता है कि वहां के वैज्ञानिक और दवा कम्पनियां क्या पहले से जान रही थी कि वायरस आएगा जो दवाई बनाये रखे हैं और उससे नीम हकीम की तरह शर्तिया ईलाज का दावा कर रहे हैं। सब बकवास है। कोरोना संकटकाल को हल्के में मत लीजिए। ये ऐसे जाने वाला नही है। इतना ही नही इसके लिए तो हमारे ज्ञानी विज्ञानी गर्मी में खत्म होने का भी दावा कर रहे थे। समझिए वायरस है आकर रूप बदल सकता है। ये पहले से घातक हो रहा है। घर पर रहिए। जंक फूड छोड़ हेल्थी खाने की तरफ़ मुड़िये। मीडिया की बातो में मत आइए ये सब विज्ञापन को खबर बना कर परोसते हैं। मैं हिस्सा हूँ उसका। सरकार जब तक औपचारिक रूप से कुछ न कहे मत मानिए की वैक्सीन आ गई। आ भी जाएगी तो आने के बाद सालों लगेगा आप तक पहुचने में। तब तक कोरोना के साथ जीने की आदत डालिये। मास्क सैनिटाइजर और हैंडवाश को जीवन का हिस्सा मानिए। लाकडाउन खत्म भी हो जाय तो परिवार देश की सुरक्षा के लिए कुछ दिन और अपनाए रहिए। अपने डर को किसी का मुनाफा न बनने दीजिये ये मुनाफाखोर इंसान नही है।

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