अपने ही जने, बने जान के दुश्मन

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राकेश कुमार अग्रवाल

कहावतों , किस्सों व बातों में खूब सुना है कि बाप बडा न भैया सबसे बडा रुपैया . लेकिन यह कहावत आज के समाज पर सटीक साबित हो रही है जहां माता – पिता के लिए उनके ही जने उनके लिए काल बनते जा रहे हैं . अपने ही घर में अपने ही बेटों से माता पिता सुरक्षित नहीं हैं तो आखिर हम कैसा समाज गढ रहे हैं ?
घटना तीन मई 2017 की है जब फतेहपुर जिले के बिंदकी थाना क्षेत्र के ठिठौरी गांव निवासी अमर सिंह अपनी मां गुड्डी देवी को बाइक पर बिठाकर चित्रकूट दर्शन कराने के लिए ले गया था . लौटते समय तिंदवारी क्षेत्र के बेंदा जौहरपुर गांव में उसरा नाले के पास रात 10 बजे मां बाइक से नीचे जा गिरी . पीछे से आ रही तेज रफ्तार जीप मां गुड्डी देवी को रौंदते हुए निकल गई . मामले की विवेचना में दरोगा उपेन्द्र सिंह को जो तथ्य मिले उससे उजागर हुआ कि दोनों बेटों ने मां को मौत के घाट उतारा था . तफ्तीश और काॅल डिटेल के बाद दरोगा उपेन्द्र ने पाया कि उसरा नाले के पास अमर सिंह के बाइक पर पहुंचते ही कार पर फतेहपुर से राहुल सिंह आ गया और मां को दोनों भाइयों ने बाइक से घसीटकर नीचे गिरा दिया . मां के नीचे गिरने पर राहुल ने मां के ऊपर कार चढा दी जिससे मौके पर ही मां की मौत हो गई . बीमा क्लेम के पौने चार लाख रुपए हथियाने के लिए दोनों भाईयों ने मिलकर मां को मार डाला . अपर सत्र न्यायाधीश ने दोनों भाईयों को मां की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा व जुर्माना भी लगाया है .
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के उझानी कोतवाली क्षेत्र के गांव संजरपुर गुलाल में 16 दिसम्बर की रात में एक बुजुर्ग दम्पत्ति अपने ही घर में जल कर मरे पाए गए . पुलिस अधीक्षक संकल्प शर्मा के मुताबिक जिस कमरे में दम्पत्ति के शव पडे थे वहां का कोई सामान नहीं जला था . दम्पत्ति का तीसरा बेटा माता पिता की हत्या की बात कह रहा था . तफतीश के बाद पुलिस ने रघुवीर और राजवती के दो बडे बेटों को माता पिता की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया . दोनों भाइयों को ये डर था कि उनके माता पिता उनसे संबंध विच्छेद करना चाहते हैं ऐसे में उन दोनों के हाथ से दौलत निकल जाएगी .
ताजा मामला म.प्र के भोपाल के पिपलानी थाना क्षेत्र का है जहां बडे बेटे ज्ञान सिंह ने अपनी 85 साल की मां कलाबाई की कनपटी पर मुक्का जड दिया . बेसुध मां को अस्पताल पहुंचाया गया . 12 दिन बाद होश आने पर मां ने लडखडाती जबान से बेटी को बताया कि बडे बेटे ने मारा है . 27 दिन बाद मां ने इलाज के उपरान्त दम तोड दिया . डाक्टरों ने पोस्टमार्टम में मौत की वजह ब्रेन बोन में फ्रेक्चर को बताया . बेटी की शिकायत पर पुलिस ने मां के कत्ल में बेटे को गिरफ्तार कर लिया है . मां के नाम जो छह बीघा जमीन है उसकी कीमत करोडों में बताई जा रही है . उपरोक्त उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि माता पिता के लिए श्रवण कुमार बनने वाले बेटे अब समाज में दुर्लभ होते जा रहे हैं . अब बेटों के लिए माता पिता मनी प्रोवाइडर , लैंड प्रोवाइडर , मटीरियल प्रोवाइडर या फिर फेसिलिटी प्रोवाइडर बनकर रह गए हैं . जो भी माता पिता बच्चों के लिए इस भूमिका पर खरे नहीं उतर रहे उन्हें उनकी ही संतानें काल के गाल में पहुंचाने से नहीं चूक रही हैं .
समझने की जरुरत है कि प्रकृति ने सजीवों का एक जीवन चक्र बनाया है जिसके तहत हर सजीव को जो दीर्घायु पाता है उसे शैशवावस्था , युवावस्था , अधेडावस्था व बुजुर्गावस्था से गुजरना पडता है . जब बच्चा छोटा होता है तब माता पिता युवा होते हैं एवं वे संतान की परवरिश करते हैं . इसी तरह जब माता पिता बुजुर्ग होते हैं तब बच्चे युवा हो जाते हैं तब उनका नैतिक दायित्व बनता है कि बुजुर्ग माता पिता का ख्याल रखें . लेकिन जमीन और जायदाद के लिए जिन माता पिता ने जन्म दिया उन्हीं को क्रूरता की सीमायें लांघते हुए मौत के घाट उतार देने की परिकल्पना से ही रूह कांप जाती है . इस तरह की बढती घटनायें क्या यह बताना चाहती हैं कि माता पिता बनने का उनका फैसला गलत था . या इससे बेहतर यह होता कि माता पिता निसंतान होते . उम्र के इस मोड पर जब बुढापे में शरीर शिथिल हो जाता है . कदम कदम पर माता पिता को बच्चों की मदद की जरूरत पडती है ऐसे में बच्चे मदद का हाथ बढाने के बजाए सम्पत्ति के लिए उनकी जान ले लें वह भी तब जब वे माता पिता की अर्जित सम्पत्ति के खुद वारिस होते हैं . इस तरह की बढती घटनाएँ एक बडा सबक उन दम्पत्तियों को भी दे रही जो संतान के लिए धृतराष्ट्र बनकर संतान की जायज या नाजायज मांग को पूरा करते हैं . संतान के नाम पर अकूत कमाई करते हैं . लेकिन बच्चे को हुनरमंद व बेहतर इंसान बनाने के बजाए उन्हें जिद्दी , उद्दण्ड व उजड्ड इंसान बना डालते हैं . जबकि हम सदियों से चली आ रही इस कहावत को सुनते आ रहे हैं कि
पूत कपूत तो क्यों धन संचय
पूत सपूत तो क्यों धन संचय !
कानून और शासन प्रशासन ऐसे कपूतों को सजा तो दिला सकता है लेकिन माता पिता को सांसें तो वापस नहीं दिला सकता . उपरोक्त घटनाएं नजीर हैं जो यह इशारा कर रही हैं कि वक्त आ गया कि माता पिता खुद तय करें कि वे किस तरह से संतानों की परवरिश कर रहे हैं . और इस तरह की संतानें जो अपने माता पिता की नहीं हो सकतीं भला समाज उनसे क्या उम्मीद करे ?

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