आप भी बना सकते हैं नेकी का कारवाँ

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राकेश कुमार अग्रवाल

चाणक्य ने कहा था कि “जब आप किसी काम की शुरुआत करें , तो असफलता से मत डरें और उस काम को न छोड़ें , जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं। “
ऐसे ही ईमानदारी निभाई थी दिल्ली के 22 वर्षीय अंकित क्वात्रा ने। एक भव्य शादी-समारोह में अंकित को जाने का मौका मिला था। वहाँ देश- विदेश के विविध पकवानों का जबरजस्त इंतजाम था। अंकित इतने तामझाम भरे इन्तजामात को देखकर यह सोचने पर विवश हुआ कि यदि समारोह में भोजन बच गया तो उसका निस्तारण कैसे होगा ? अंकित यह देखकर दंग रह गया कि जो भोजन बचा था उससे 10 हजार भूखों का पेट भरा जा सकता था , लेकिन उक्त बचे भोजन को फेंका जाना था। भोजन की इतनी बरबादी ने अंकित को एक नया आइडिया दे दिया कि क्यों न शादी समारोहों , होटलों , रेस्तरां , कैंटीन आदि से बचे भोजन को एकत्रित किया जाए और उसे जरूरतमंदों तक पहुँचाया जाए। अंकित ने दोस्तों से इस विषय पर चर्चा की तो दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया . लेकिन कुछ समय बाद में सृष्टि जैन , आकाश कश्यप व सोनिका प्रूथी समेत 5 लोगों ने 2014 में ‘ फीडिंग इंडिया ‘ की शुरुआत की। तब से देश के 32 शहरों में चल रहे उनके मिशन के अंतर्गत 1.35 मिलियन भूखों को भोजन उपलब्ध कराया जा चुका है।
गौरतलब है कि एड्स , मलेरिया और टीबी जैसी जानलेवा बीमारियों से जितनी मौतें नहीं होती हैं उससे कहीं ज्यादा लोग हर साल भूख से दम तोड़ देते हैं। कुपोषण से ही प्रतिवर्ष 31 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। दुनिया भर में कुपोषण व भूख से जूझ रहे बच्चों की संख्या 16 करोड़ से अधिक है। दुनिया भर के 80 करोड़ लोग अर्थात प्रत्येक 9 लोगों में से एक व्यक्ति भूखा है। दुनिया में 200 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे सोते हैं। अंकित की मुहिम से न केवल भूखों को भोजन मिला बल्कि इससे पौने 4 करोड़ रुपये कीमत का भोजन फेंकने या बरबाद होने से बच गया। अंकित की भूख के खिलाफ छेड़ी गई जंग को विदेशों में भी जमकर सराहा गया। संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर के केवल 16 ऐसे नौजवानों को चुना है जिन्होंने नायाब काम कर यू एन यंग लीडर के रूप में अपने चयन की सार्थकता सिद्ध की। अंकित को 186 देशों से आई 18000 प्रविष्टियों में चुना गया।
उसे इंग्लैंड की महारानी क्वीन एलिजा बेथ- द्वितीय ने लंदन स्थित बकिंघम पैलेस में ‘क्वीन्स यंग लीडर अवार्ड फॉर 2017’ से सम्मानित किया।
आपको मिलवाते हैं उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के सर्राफा व्यापारी अजय अग्रवाल से। एक बार अजय अग्रवाल सुबह-सुबह सैर के लिए जा रहे थे। उन्होंने रास्ते मे एक लाश को कुत्तों को नोचते देखा तो उन्होंने स्थानीय लोगों से उसके बारे में पूछा। जानकारी करने पर उन्हें बताया गया कि कोई लावारिश शव था। शव की इस तरह बेकदरी ने अजय अग्रवाल को बुरी तरह झकझोर दिया। उन्होंने तभी प्रण लिया कि भविष्य में अज्ञात व लावारिश शवों को उनके धर्म के अनुसार वे अंतिम संस्कार करवाएंगे। इसमें जो भी खर्च आएगा इसे वह स्वयं वहन करेंगे। अजय अग्रवाल तब से लेकर अब तक लगभग 1500 से अधिक लावारिश शवों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
अजय अग्रवाल यहीं नहीं रुके , वे एक सैकड़ा से अधिक बुज़ुर्गों व विधवाओं को प्रतिमाह पेंशन की तर्ज पर आर्थिक मदद भी करते हैं। हर माह की एक तय तारीख पर ये लोग उनकी दुकान पर पहुँचते हैं एवं वे बारी-बारी से वे सभी को उनका लिफाफा पकड़ा देते हैं।
देखा जाय तो हमारे वर्तमान समाज में नकारात्मकता जबरजस्त तरीके से हावी हो गयी है। निराशावाद चरम पर पहुँचता जा रहा है। यदि परिवर्तन कोई आया है तो वह यह कि हम लोग एक नकारात्मक बात पर जमकर हायतौबा मचाते हैं। आसमान सर पर उठा लेते हैं। मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतर पड़ते हैं , धरना , प्रदर्शन , नारेबाजी शुरू कर देते हैं। मीडिया भी ऐसी घटनाओं को धारावहिक के अंदाज में रोजाना नए-नए खुलासों के नाम पर सनसनीखेज ढंग से परोसता है। जबकि उसी शहर-महानगर कस्बे में सैकड़ों , हजारों लोग प्रतिदिन कोई न कोई ऐसा रचनात्मक सामाजिक कार्य निःस्वार्थ भाव से करते हैं जिन्हें कोई नोटिस भी नहीं करता। जबकि ऐसे ही रचनात्मक व निस्वार्थी लोगों की सेवा भावना से यह समाज बना है।
अंकित हों या फिर अजय अग्रवाल दोनों शख्स इसी विसंगतियों से भरे समाज के हैं।
अंकित की उम्र के युवा जब एक अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी का ख्वाब बुनते हैं उस उम्र में वह भोजन की बर्बादी देख जीवन का लक्ष्य ही बदल बैठा और एक छोटी शुरुआत कारवां बन गई।
अजय अग्रवाल बिना किसी प्रतिफल की आशा के उन अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करा रहे हैं जिसके लिये पहले से ही कानून में व्यवस्था है यदि कानून व सरकार अपने फर्ज के प्रति मुस्तैद होते तो शायद लावारिश शवों की न बेकदरी होती न अजय अग्रवाल को आगे आना पड़ता।
कोई भी नेक काम की शुरुआत करने के लिए कोई मुहूर्त नहीं होता बस एक अच्छी सोच , दृढ प्रतिज्ञा , निस्वार्थ भावना व एकला चलो की तर्ज पर डटे रहना . ताने भी मिलेंगे , हतोत्साहित भी किया जाएगा , मजाक का पात्र भी बनेंगे . लेकिन धीरे धीरे लोग जब आपके काम को समझेंगे तो याद रखिएगा वही लोग जिन्होंने आपका मजाक उडाया वे आपके नेकी के कारवां के सबसे बेहतर सहभागी होंगे .

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