विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून २०२१
इस बर्ष विश्व पर्यावरण दिवस 2021 का विषय “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली” है। इस थीम के अंतर्गत पेड़ उगाना, शहर को हरा-भरा करना, नदियों की सफाई करना, आदि शामिल है।गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद के अनुसार चित्रकूट में १. जंगल में आग २. खनन ३. नदियों में प्रदुषण ४. औद्योगिक कृषि ५. बिना किसी शहरी नियोजन के शहरीकरण ६. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन ७. भूमिगत जल ८. वायु प्रदुषण आदि पर्यावरणीय समस्याएं है।
जंगल में आग – चित्रकूट में प्रत्येक बर्ष जंगलो में आग लगती है। जिससे जंगली पशुओं व् पछियो के आवास आग से नष्ट हो जाते है एवं जानवरो का चारा भी नष्ट हो जाता है। आग से जिन लोगो की जीविका तेन्दु पत्ता, चिरोंजी, औषधीय पेड़ पोधो व् जलाऊ लकड़ी से जुडी होती है, वो भी प्रभावित होते है।
खनन – चित्रकूट में बालू, कंकड़, ग्रेनाइट व् सैंड पत्थर के खनन के कारण २०० से ३०० फ़ीट नीचे तक खोद दिया गया है। जिससे भूमिगत जल का स्तर भी प्रवाभित होता है | गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद बताते है कि औसतन एक ब्लास्ट में ६००० लीटर कार्बन मोनो ऑक्साइड व २४०० लीटर नाइट्रस ऑक्साइड, ब्लास्टिंग रसायन की मात्रा का १८% व २ % निकलती है। इसके अलावा वायु प्रदुषण के कारण सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारिया होती है। खनन के कारण प्राकृतिक जल के स्रोत व नदियों के जल स्तर पर भी नकारात्मक प्रभाव देखा गया है।
नदियों में प्रदुषण – कर्वी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट न होने के कारण नगर का गन्दा जल पसुईनी नदी में गिरता है जिससे नदी के पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसके अलावा नदियों पर अतिक्रमण होने व बृक्षों के कटान के कारण नदी के प्राकृतिक जल स्रोत सूख व ख़त्म हो चुके है। चित्रकूट की नदियों को ज्यादा नुकसान बांधो और बेराजो के कारण उनका अविरल प्रवाह रुकने से हुआ है।
औद्योगिक कृषि – औद्योगिक कृषि के कारण भूमिगत जल का दोहन, जैव विविधता का ह्रास दिन प्रतिदिन हो रहा है।
बिना किसी शहरी नियोजन के शहरीकरण – योजनाबद्ध तरीके से शहर का विस्तारीकरण न होने के कारण वाहनों से वायु प्रदुषण व् अन्य कई पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन – चित्रकूट में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भी एक बहुत बड़ी पर्यावरण समस्या है क्योंकि इसके लिए कोई भी जगह निर्धारित नहीं की गयी है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट की श्रेणी के अनुसार पीला, लाल, नीला / सफेद और काला रंग के बैग में निर्धारित किये गए है लेकिन इस नियम का पालन भी अस्पतालों में नहीं दिखाई देता है। गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद के अनुसार कोविड क्वारंटाइन केंद्रों से उत्पन्न उत्पन्न जैव चिकित्सा अपशिष्ट को पीले रंग के बैग और डिब्बे में अलग से एकत्र किया जाना चाहिए। दिशानिर्देशों में इस बात पर जोर दिया गया है कि एहतियात के तौर पर, डबल-लेयर्ड बैग (दो बैग) का उपयोग “कचरे के संग्रह के लिए किया जाना चाहिए ताकि पर्याप्त मजबूती और कोई रिसाव न हो।
भूमिगत जल – भूमिगत जल का दोहन रोकने व भूजल स्तर की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए भूजल अधिनियम २०२० उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा फरबरी २०२० को लागू किया गया। इसके अंतर्गत सबमर्सिबल पंपों का पंजीकरण व सभी निजी और सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में वर्षा जल संचयन प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है। गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद के अनुसार भूमिगत जल में फ्लोराइड व् नाइट्रेट की सांद्रता पानी में निर्धारित मानकों से ज्यादा बढ़ती जा रही है एवं कर्वी और रामनगर ब्लॉक क्रिटिकल और सेमी क्रिटिकल श्रेणी में आ चुके है ।
वायु प्रदुषण – एक अध्धयन के अनुसार भरतकूप में स्टोन क्रेशर के कारण कणिका तत्व जिनका आकार १० माइक्रो मीटर होता है वातावरण में उनकी उपस्थिति सर्दियों में केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों से २० गुना एवं गर्मियों में १० गुना ज्यादा मापी गयी है। यही हाल २.५ माइक्रो मीटर कणिका कणो का है |
गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद के अनुसार चित्रकूट के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए बुंदेलखंड में किसानो को प्रकर्ति के नियमो के अनुसार खेती कर तालाब एवं बाग़ बनाने एवं लगाने चाहिए, क्षेत्र की पर्यावरणीय वहन क्षमता का आकलन करके इसके अनुसार खनन होना चाहिए। इसके अलावा पर्यावरणीय अधिनियमों का पालन कड़ाई के साथ सुनिश्चित होना आवश्यक है।
गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद