राकेश कुमार अग्रवाल
इंजीनियर को आप जादूनगरी का जादूगर भी कह सकते हैं. मानवीय कल्पनाशक्ति की उडान को हकीकत के धरातल पर उतारने का काम करते हैं इंजीनियर . तमाम लोग इसे देशी भाषा में काली खोपडी का कमाल भी कहते हैं.
ताजमहल , कुतुबमीनार या ऐफिल टाॅवर की बात करें या बुर्ज खलीफा जैसी गगनचुम्बी इमारतें , समुद्र पर पुल बनाना हो या फिर पहाडों को काटकर सुरंग बनाना . रोप वे हों या फिर मेट्रो रेल सभी जगह इंजीनियरिंग का कमाल शामिल है.
15 सितम्बर को पूरा देश ” इंजीनियर डे ” के रूप में मनाता है . दरअसल इस दिन ” फादर आफ इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ” का जन्मदिन है . समूचे इंजीनियर वर्ग के लिए यह गर्व और गौरव की बात होनी चाहिए कि एक अभियंता को उसके राष्ट्रव्यापी योगदान को देखते हुए देश के ‘ सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न ‘ से नवाजा गया .
लेकिन देश का आज का इंजीनियरिंग शिक्षा का परिदृश्य काफी धुंधला है . यूं तो इंजीनियर तैयार करने के मामले में हम दुनिया में अव्वल हैं. 2019-20 में देश के 3122 विश्वविद्यालयों से संबद्ध कालेजों में इंजीनियरिंग की 1, 466, 114 सीटों में छात्रों को दाखिला मिला . जबकि सत्र 2018-19 में सीटों की संख्या 1, 587, 097 थी . प्रतिवर्ष 15 लाख इंजीनियर तैयार करने वाला भारत संख्या के मामले में अमेरिका और चीन में तैयार होने वाले इंजीनियरों की संख्या से भी ज्यादा है . लेकिन यदि इसी इंजीनियरिंग शिक्षा के स्याह पक्ष को देखें तो आँकेडे और तथ्य होश उडा देते हैं. पिछले सत्र में देश के इंजीनियरिंग कालेजों की 49.3% ( लगभग आधी ) सीटें खाली पडी रहीं . जिनमें छात्रों ने दाखिला ही नहीं लिया . रोजगार का आकलन करने वाली कंपनी एस्पायरिंग माइंड्स की रिपोर्ट के अनुसार इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त देश के 80% इंजीनियर बेरोजगार हैं. क्योंकि इन इंजीनियरों में न तो प्रतिभा है न वांछित कुशलता . जिसके लिए कंपनियाँ इन्हें जाॅब देने के लिए उत्सुक हों .
देश के सर्वोच्च प्राद्योगिकी संस्थान आईआईटी जिनमें एडमीशन पाना हर छात्र का एक सपना होता है . सत्र 2016-17 में इन्हीं सर्वोत्कृष्ट आईआईटी संस्थानों में 66% छात्र कैम्पस प्लेसमेंट से वंचित रह गए . 2015-16 में वंचितों का यह आँकडा 79% था . जबकि 2014-15 में आईआईटियन का कैम्पस सेलेक्शन में वंचितों का यह आँकडा 78% था . जब देश के बेस्ट इंजीनियरिंग कालेजों का यह हाल है तो बीते तीन दशकों में जगह – जगह खुले नए इंजीनियरिंग कालेजों की दयनीय दशा को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि इंजीनियरिंग शिक्षा का नियमन करने वाली संस्था आल इंडिया काउंसिल फार टेक्नीकल एजूकेशन ने दिसम्बर 2018 में नए इंजीनियरिंग कालेजों की संबद्धता पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया था . इन नए कालेजों में थर्ड इयर में और फाईनल इयर में पढने वाले छात्र फर्स्ट इयर के स्टूडेंट्स को पढाते थे . फैकल्टी की अनुपलब्धता के बावजूद दनादन इंजीनियरिंग कालेज न केवल खोले गए बल्कि उन्हें एआईसीटीई ने एप्रूव भी किया . और देखते ही देखते पचासों करोड के इंवेस्टमेंट से खोले गए इन इंजीनियरिंग कालेजों का बुलबुला फूट गया .
चौंकाने वाला तथ्य यह है कि देश में इंजीनियरों की संख्या आइसलैंड की कुल आबादी से दोगुना ज्यादा है .
इंजीनियर बनने की लालसा ने देश में भारी भरकम 30000 हजार करोड की कोचिंग इंडस्ट्री खडी कर दी है . इन कोचिंग संस्थानों में एडमीशन दिलाने के लिए पेरेंट्स लाखों रुपए कोचिंग संस्थानों के फुल पेज विज्ञापनों के बहकावे में आकर फूंकने को तैयार रहते हैं.
इंजीनियर दरअसल वो ‘ मास्टर की ‘है जिसके शब्दकोष में न नहीं है . वह असंभव को भी अपनी योग्यता और कौशल के बल पर संभव बनाने का सामर्थ्य रखता है . अभियंता का मतलब है कि अभी संभावनायें खत्म नहीं हुई हैं और हार मान लेने की कोई वजह नहीं है . इंजीनियरिंग का मतलब ही यही है कि अगर कोई समस्या है तो उसका कोई समाधान भी होगा . और इसको साकार करके दिखाया इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने . उनकी समस्याओं के समाधान के प्रति जीवटता ही तो थी कि वे जीवन शतक को ( 102 वर्ष ) पूरा करने में सफल रहे . 92 वर्ष की अवस्था में भी वे बिना किसी सहारे के चलने फिरने में समर्थ थे . इंजीनियर आमतौर पर परदे के पीछे काम करने वाला आर्टिस्ट होता है . इसके बावजूद विश्वेश्वरैया की लोकप्रियता का आलम ये था कि वे कर्नाटक के सेलेब्रिटी बन गए थे .
एक दो दशक पहले इसी तरह का काम और नाम अर्जित किया था मेट्रोमैन के नाम से मशहूर इंजीनियर ई. श्रीधरन ने . लेकिन समाज में इंजीनियरों का एक वर्ग ऐसा भी है जिसने अकूत संपत्ति अर्जित करने के फेर में अपने पेशेगत नैतिकता को दांव पर लगाकर इंजीनियरों की साख में बट्टा लगाने का काम किया है .
देश में जिस तरह से विकास को लेकर तीन दशकों में ढाँचागत बदलाव आया है उसमें इंजीनियरों के योगदान का विस्मरण नहीं किया जा सकता है .
आज जब लगभग 65 ब्रांचों में इंजीनियरिंग के अध्ययन की सुविधा है . नई नई ब्रांचों का आगाज हो रहा है . जरूरत है एआईसीटीई के कर्णधार मानकों एवं गुणवत्ता को दाँव पर न लगायें . संस्थाओं में सुयोग्य फैकल्टी हो . आने वाले समय में देश – दुनिया की जरूरतों के मद्देनजर अगर इंजीनियर और इनको तैयार करने वाली संस्थायें काम करें तो निश्चित तौर पर न केवल मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के काम को हम आगे बढायेंगे बल्कि दुनिया में अपनी अभियांत्रिकी कौशल का डंका भी बजायेंगे .