ई – पास बनवाने के नाम पर हुई दलाली, अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज

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  • आपातकालीन ई – पास बनवाने के लिए जरूरतमंद ठगे गए

  • वह बड़ी मछली कौन जिसके गठजोड़ से हो रहा था भ्रष्टाचार?

रिपोर्ट – दुर्गेश सिंह

रायबरेली– भ्रष्टाचार और लूटतंत्र का खुला खेल फर्रुखाबादी रायबरेली में जमकर खेला गया न जाने कितने जरूरतमंदों ने ई – पास बनवाने के नाम पर अच्छी खासी रकम चुकाई होगी वह उनका मन ही जानता होगा! इसकी शिकायत जब डीएम से मौखिक रूप से हुई जिसके बाद उन्होंने एडीएम से कार्यवाही को कहा। लॉक डाउन के दौरान जनता की समस्या को देखते हुए प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने सौगात देते हुए ई – पास की सुविधा दी थी। लेकिन इसपर नजर दलालों की लग गई क्योंकि डिमांड और सप्लाई को देखते हुए उन्होंने अपने पैर पसारे और लोगों से 1000 से लेकर 15000 तक ठगी की, कुछ बिचौलिए तो बकायदा ठेका लेकर ऑफिस के इर्द-गिर्द जम गए। पास बनवाने के नाम पर मोलभाव करके रेट तय किए जाने लगे इनमें लखनऊ के लिए ₹2000, कानपुर के लिए 3000 , और दिल्ली के लिए 8000 में पास बनेगा। एडीएम ऑफिस के भीतर और बाहर दखल रखने वाले इन लोगों को सरकारी हुक्मरानों ने जानबूझकर नजरअंदाज किया।यह समझना चाहिए कि आवेदक को कार्यालय से दूर रस्सी के बाहर खड़ा किया गया और इन्हें बेरोकटोक अंदर जाने की छूट दी गई। लिखित नहीं मगर मौखिक रूप से जब इसकी शिकायत डीएम से हुई तो उन्होंने एडीएम से कार्यवाही को कहा जिसके बाद एडीएम प्रेम प्रकाश उपाध्याय ने कोतवाली में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया।

फैक्ट्री का ई पास ₹15000 में बाकी का हुआ मोलभाव…

भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को पार करते हुए गंभीर संकट में कर्मचारियों द्वारा बरती गई लापरवाही का ही नतीजा था जिम्मेदार विभाग के इर्द-गिर्द दलाल सक्रिय हो गए और उन्होंने किसी को नहीं छोड़ा जरूरतमंदों की जेब से जबरन पैसे हजम कर दिए गए। फैक्ट्रियों के लिए तो पास ₹15000 या उससे ज्यादा में तय होता थाछोटी फैक्ट्रियों के लिए ₹5000 से कम की रकम दलालों को मान्य ही नहीं की गई, ऐसे में भ्रष्टाचार सरकारी बिल्डिंग में जमकर पनपा और ना तो वहां पुलिस ने कुछ किया और ना ही जिम्मेदार बड़े अधिकारियों को इस बात का पता चल सका यह सब संदेह के घेरे में है असल में जांच उस बड़ी मछली की होनी चाहिए जो भ्रष्टाचार के गठजोड़ को संचालित कर रहा था।

जब लॉक डाउन में परिंदा भी पर नहीं मार सकता था तो अति संवेदनशील सरकारी जगह में कैसे सक्रिय हो गए दलाल?

सवाल इस बात का भी है कि प्रशासन ने जिम्मेदारियों का निर्वहन सही से नहीं किया कैसे अतिसंवेदनशील कार्यालय में दलाल सक्रिय थे और अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी! क्योंकि जिला अधिकारी रायबरेली दिन रात एक कर के कोरोना संकट से जूझ रही थी तो जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी अपने कार्यालयों मे दलालों की घुसपैठ करा रहे थे। जिला अधिकारी को यह खबर जैसे ही लगी उन्होंने एडीएम से कार्यवाही करने के लिए कहा और एडीएम साहब तत्काल एक मुकदमा अज्ञात के नाम दर्ज करा देते हैं जिससे कहा दिया जाए अब जांच होगी जो निकल कर आएगा देखा जाएगा!

कई आवेदक जहां भी बताते हैं ऑनलाइन की पास ज्यादातर रद्द कर दिया जाता था

सूत्रों के मुतबिक रायबरेली जनपदवासी लगातार इस बात की शिकायत अपने सोशल मीडिया अकाउंट से कर रहे थे उन्हें इमरजेंसी में कहीं जाना है लेकिन उनके द्वारा आवेदन किए गए कि पास रिजेक्ट कर दिए जा रहे थे। ऐसे में अब विभाग को स्पष्ट करना होगा कितने आवेदन रजिस्टर किए गए थे और उन्हें इस आधार पर रिजेक्ट किया गया है? इसकी जवाबदेही जिम्मेदार विभाग को है।

चार कर्मियों को घर बैठा दिया खानापूर्ति के लिए अज्ञात के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज

ऐसे संकट के समय जब सच सामने निकल कर आया है की ई – पास बनवाने के नाम पर दलाली की जा रही थी तो अधिकारियों और कर्मचारियों की त्वरित जांच करना तो दूर कार्यवाही के नाम पर चार कर्मियों को घर में बैठा दिया गया है। वहीं दूसरी ओर खानापूर्ति के लिए एक अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है लेकिन असल दोषियों के बारे में जानकारी होने के बाद भी उन पर ना कार्यवाही की गई और ना ही विभागीय जांच शुरू कराई गई। एक अखबार को दिए बयान में अधिकारियों ने क्या कहा-

कोट

“ई – पास के काम में लगे चार कर्मचारियों को काम से हटाकर घर पर बैठा दिया गया है इनके खिलाफ कोई विभागीय जांच नहीं हो रही है मुकदमा लिखाया गया है- प्रेम प्रकाश उपाध्याय एडीएम एफआर”

“इस मामले में महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे हैं कई बिचौलियों को चिन्हित कर उनकी धरपकड़ के लिए टीमें गठित कर दी गई हैं जो भी इसमें शामिल होगा सब को जेल भेजा जाएगा- अतुल कुमार सिंह कोतवाल”

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