“रामायण” सर्वप्रथम महर्षि वाल्मिकी द्वारा लिखी गयी परन्तु भारतीय समाज में उसे श्रृद्धा के रूप में मुगल शहंशाह अकबर की बादशाहत में गोस्वामी तुलसीदास के लिखे “रामचरित्र मानस” के बाद ही लिया गया।
फैज़ाबाद स्थित अयोध्या के भवनों , कनक मंदिर , राम जानकी मंदिर , हनुमान गढ़ी इत्यादि समेत पूरी अयोध्या का निर्माण भी मुग़ल शहंशाह अकबर के दौर में ही हुआ यह आर्किलाजिकल सर्वे की रिपोर्ट भी कहती है और भवन निर्माण विशेषज्ञ भी कहते हैं। अर्थात भारत स्थित अयोध्या का निर्माण सन 1500 ईस्वी में तब किया गया जब गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित्र मानस अकबर के शहंशाह रहते लोकप्रिय हुई।
थाईलैंड की राजधानी बैंकाक से 80 किमी दूर स्थिति यह “अयोध्या” सन 1285 से भी पहले की है इसका सबूत यह है कि वहाँ सन् 1285 ईस्वी में लिखा एक शिलालेख मिला है जो आज भी बैंकाक के राष्ट्रीय संग्राहलय में रखा हुआ है। इसमें राम के जीवन से जुडी घटनाओं और भौगोलिक क्षेत्रों का विवरण मिलता है। आपको संभवतः पता नहीं होगा तो बताता चलूं कि थाईलैंड में आज भी संवैधानिक रूप में “रामराज्य” है। बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग वहां अपने राजा को राम का वंशज होने से विष्णु का अवतार मानते हैं , इसलिए, थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है। राजा की बुराई करने पर वो सीधे आस्था से जुड़ जाती है और इसमे कड़ी सजा का प्रावधान है।
वहाँ आज भी ‘राम दशम’ का राज है जो अपने आप को भगवान राम का वंशज मानते हैं। “वजीरालंगकोर्न” यानी ‘राम दशम’ 16 अक्टूबर 2017 को 64 वर्ष की आयु में लेकिन अपने पिता की मृत्यु के 50 दिवसीय शोक के बाद 1 दिसंबर 2016 को राजगद्दी पर आसीन हुए थे। थाईलैंड में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना 1932 में हुई थी।
जानते है अयोध्या के बारे में
थाईलैंड का प्राचीन नाम “सियाम” था ! यह ऐतिहासिक सच है कि सन् 1612 तक सियाम की राजधानी अयोध्या ही थी। लोग इसे वहाँ की भाषा “अयुतथ्या” के नाम से जानते हैं। सन् 1612 ईस्वी में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक शिफ्ट की गई थी। इस स्थान पर “यूनेस्को” के संरक्षण में आज भी पुरातात्विक साक्ष्यों की खोज में खुदाई का काम चल रहा है। इस पुरानी अयोध्या की इमारतों की भव्यता देखने लायक है। भगवान श्री राम से संबंधित इतने भव्य साक्ष्य तो भारत में भी उपलब्ध नहीं है।
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राम रावण के अलावा भी रहस्य से भरपूर है थाईलैंड की रामायण
पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर थाईलेंड (सियाम) में स्थित अयोध्या को ही यूनेस्को ने असली मानते हुए अपनी वैश्विक पैत्रक (Patriarchy) लिस्ट में जगह दी है। इसके लिए जो भारत का दावा था कि असली अयोध्या उसके यहाँ फैजाबाद में स्थित है उसे “यूनेस्को” ने खारिज कर दिया था। थाईलैंड के लोग इसे “महेंद्र अयोध्या” भी कहते है । अर्थात इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्या। थाईलैंड के जितने भी राम (राजा) हुए हैं सभी इसी अयोध्या में रहते आये हैं। सनातन धर्म के “भगवान राम” के वंशजों की यह स्थिति है कि उन्हें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर कभी भी विवाद या आलोचना के घेरे में नहीं लाया जा सकता है वे पूज्यनीय हैं।
थाईलैंड का भी राष्ट्रीय ग्रन्थ “रामायण” है। जिसे थाई भाषा में ‘रामकियेन’ कहते हैं ,जिसका अर्थ “राम-कीर्ति” होता है।थाईलैंड में “रामिकियेन” जो आज वर्तमान में चलन में है उसको अलग-अलग समय में तेरहंवी सदी से पंद्रहवी सदी तक लिखी गयी थी। परन्तु थाईलैंड की लोक कथाओं में और कला में इसका मंचन चौदहवी सदी से शुरू हो चूका था। इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में बैंकॉक के “राजप्रसाद” में लगी आग में नष्ट हो गयी थी। थाई लैंड में ‘रामकियेन’ पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता है।
रामकियेन के मुख्य पात्र
राम (राम) , सीदा(सीता) , लक (लक्ष्मण) , पाली (बाली) ,थोत्स्रोत(दशरथ) , सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद) , खोम्पून (जाम्बवन्त), बिपेक (विभीषण), तोसाकन्थ(दशकण्ठ) रावण , सदायु (जटायु) सुपन मच्छा (शूर्पणखा) , मारित (मारीच) इन्द्रचित (इंद्रजीत) मेघनाद , फ्रपाई (वायुदेव) फरयु नदी, थाई लोक नाम (सरयू) है।
इसके अलावा थाई “रामकियेन” में हनुमान की पुत्री और विभीषण की पत्नी का नाम भी है, जो भारत के लोग नहीं जानते। थाईलैंड में लोक किद्वंतियों के अनुसार राम जिसे वो Phra Ram लिखते है यानि भगवान राम के भाई लक्ष्मण का जिक्र मिलता है। इनकी कथा में दो अन्य भाइयों “भरत और शत्रुघ्न” का जिक्र नहीं है।
थाईलैंड की रामायण भी है अलग
पंद्रहवी सदी के रिकॉर्ड के मुताबिक़ राजा राम ने १२८३ ईस्वी में ही “लोंग्का” यानि “लंका” के राजा बोर्रोम तराई लोखंत का अंत कर अयोध्या पे कब्ज़ा किया था। लोंग्का या लंग्कसुम के साम्राज्य का विस्तार काफी बड़ा था। इनकी अयोध्या के साथ लड़ाई होने के आलेख मिलते है। थाई साहित्य में इसे दानवों का राज्य बताया गया था।
जिसके राजा थर्मन यानि रावण थे। थर्मन ने ही राजा राम के पिता थोत्स्रोत मतलब दसरथ को हराया था। हारने के बाद थोत्सरोत सुखोध्या छोड़ कर विष्णुलोक चले गए और वहां वो एक मंदिर में पुजारी बन कर रहे थे। जब थोत्सरोत का पता थर्मन को लगा तो उसने विष्णुलोक के राजा को सन्देश भिजवाया जिसके बाद वो अपने परिवार सहित किष्किन्धा की तरफ चले गए। जहाँ से राजा राम ने ही १२८३ में राज्य को जीता और अयोध्या की स्थापना की थी।
बडा सवाल और साक्ष्य क्या कहते हैं ?
तो यहां पर सवाल यह उठता है कि क्या गोस्वामी तुलसीदास ने थाईलैंड की अयोध्या में प्रचलित मान्यताओं में संसोधन करके “रामचरित” मानस लिखा ? और उसी आधार पर वर्तमान की अयोध्या का निर्माण हुआ ? युनेस्को की मानें तो श्रीराम भारत के हैं ही नहीं बल्कि वह “थाईलैंड” में जन्में थे और वहीं उनका राज था ।
सबसे महत्वपुर्ण बात यह है कि 95% बौद्ध लोगों की आबादी वाले थाईलैंड में अयोध्या और राम से जुड़े सभी भवन , मंदिर और अवशेष सुरक्षित ही नहीं बल्कि सरकारी संरक्षण में हैं , वहाँ के राम से जुड़े मंदिर में धोखे से रात के अंधेरे में कभी किसी की मुर्ति रख कर जन्म भी नहीं कराया गया। इसके बावजूद कि सम्राट अशोक के वंशज को मारकर गद्दी पर बैठे ब्राम्हण शासक पुष्यमित्र षुंग ने निर्ममता से भारत में बौद्ध धर्म का खात्मा कर दिया। किंतु बैंकाक के स्वर्णभूमि हवाई अड्डे पर समुद्र मंथन के दृश्य के साथ वहां की संसद के बाहर लगे भगवान गरुण की प्रतिमा हमे सोचने पर मजबूर अवश्य कर रही है।
नोट – रिपोर्ट्स टुडे इस लेख में वर्णित किसी तथ्य का समर्थन या विरोध नही करता है उपरोक्त लेख अलग अलग सोर्स से लिये गए है।