राजमणि देवी स्मृति साहित्य सम्मान से नवाजे गए कवि राकेश रेणु

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संचेतना संस्था के तत्वावधान में सर पी.सी बनर्जी छात्रावास के कॉमन हॉल में एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन दो सत्रों में संचालित हुआ ।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ राम मिश्र ने की। मुख्य अतिथि प्रकाश मिश्र ,विशिष्ट अतिथियों में डॉ. सुनील विक्रम सिंह, डॉ.महेंद्र त्रिपाठी, प्रियदर्शन मालवीय आदि ने वरिष्ठ कवि राकेश रेणु को राजमणि देवी स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित करते हुए उनकी कविताओं पर अपनी बात रखी।

सम्मानित कवि और आजकल पत्रिका के प्रधान संपादक राकेश रेणु ने अपने वक्तव्य में कहा कि कविता हमें मनुष्यता की ओर ले जाती है। यह कविता रचने वाले और उसके पढ़ने वाले, दोनों को मनुष्य से बेहतर मनुष्य बनाती है। इसलिए आदरणीय मैनेजर पांडेय को याद करते हुए कहूँ तो मैं मनुष्य को संपूर्णता में जानने के लिए कविता की ओर जाता हूँ।

कविता में मनुष्य की मनुष्यता प्रकट और पुष्ट होती है । कविता हमें मनुष्य और मनुष्यता के इतिहास से भी अवगत कराती है। वस्तुतः इतिहास के नाम पर जो किताबों में दर्ज है वह योद्धाओं, विजेताओं और शासकों का इतिहास है । इन किताबों में आम जनजीवन, उनके सुखदुख अपवाद स्वरूप ही मिलेंगे ।

हर काल की कविता अपने समय के आम जन की ख़ुशियों, पीड़ाओं और व्यथाओं को दर्ज करती आई है । रोपनी-कटनी करती, जाँता चलाती, दैनंदिन कामों को निबटाती औरतों के गीत आपने सुने होंगे । इसी प्रकार पुल बनाते बोझ उठाते पुरूषों के गीत भी।

इन्हीं गीतों और कविताओं में आम लोगों का जीवन और इतिहास दर्ज होता है । इसलिए विभिन्न युगों और देशों के मनुष्य के सुख-दुःख, विजय-पराजय, संघर्ष और विकास को जानने के लिए मैं कविता पढ़ता हूँ । दुनियाभर में कविता का इतिहास मनुष्य की मनुष्यता का इतिहास है।

मानव जीवन के रूप और अर्थ के विभिन्न स्तरों की अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से होती है । किसी देश या काल के मनुष्य की सबसे आत्मीय छवि को जानने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन कविता है। किसी व्यक्ति की भावना, कल्पना, स्मृति और रचनाशीलता की क्षमता की पह्चान उसकी कविता में हो सकती है ।

इसलिए मेरे लिए कविता लिखने का मतलब है व्यापक मानवता से जुड़ना , उसके जीवन को लिखना । आप गौर करें, मेरे पहले ही कविता संग्रह का उन्वान है ‘रोज़नामचा’ यानी दैनंदिन जीवन को दर्ज करने वाली बही।

मुक्तिबोध अपने जीवनानुभव के तत्त्वों को अपनी रचना प्रक्रिया में इसलिए लाते हैं क्योंकि वह रचना प्रक्रिया को एक खोज का नाम देते हैं। मुक्तिबोध के अनुसार जब कोई रचनाकार अपनी रचना के रूपों या रूप क्रम को अभिव्यक्त करने लगता है,तब उसके रूपों में बदलाव आना शुरू हो जाता है।

जिसके परिणाम स्वरूप पूरी की हुई कविता पूर्ण की हुई कलाकृति, अपनी पूर्वगत तत्त्वानुभूति की वास्तविकता से बहुत कुछ अलग ही रहती है।

कवि की सबसे बड़ी समस्या है शब्दों की सही पहचान और उसका नवीन अर्थों में प्रयोग।किसी भी कवि की सामाजिकता की परख उसके द्वारा प्रयोग किये गए शब्दों से होती है। इसलिए निवेदन है कि कविता पढ़ते हुए उसकी शब्द योजना पर गौर करें ।

कविता में शीर्षक से लेकर आख़िर तक प्रत्येक शब्द और उसके लिए नियत स्थान महत्वपूर्ण होता है ।वक्तव्य के बाद उन्होंने अपनी कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया।

युवा कवि संतोष चतुर्वेदी ने कवि राकेश रेणु की कविताओं पर बोलते हुए कहा राकेश रेणु की कविताओं में जीवन की विडंबना का मार्मिक चित्रण हुआ है। सुनील विकम सिंह ने संचेतना और उससे जुड़े पुरस्कार पर कुछ महत्वपूर्ण बातों के माध्यम से परिचय दिया।

विशिष्ट अतिथि डॉ महेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि कवि राकेशरेणु के नए संग्रह “नए मगध में” की कविताएं बहुत विचारोत्तेजक हैं। प्रियदर्शन मालवीय ने कवि राकेशरेणु की कविताओं को वैचारिक ऊर्जा से ओतप्रोत बताया।

कवि और उपन्यासकार श्री प्रकाश मिश्र ने राकेश रेणु की कविताओं पर बात करते हुए कहा कि राकेशरेणु की कविताएं एक बड़ा स्पेस मुहैया कराती हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ राम मिश्र ने कहा कि राकेश रेणु की कविताएं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। इस सत्र का संचालन डॉ. अनिल कुमार सिंह ने किया।

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में डॉ नीलिमा मिश्र ,वंदना शुक्ला, रतिनाथ, योगेश्वर,शिवम त्रिपाठी, उमेश श्रीवास्तव, के पी गिरी, रचना सक्सेना, संजय सक्सेना,वैभव, मंजू ,संतोष त्रिपाठी ,प्रत्यूष सिंह, वीरेंद्र तिवारी, चेतना सिंह आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इस सत्र का संचालन उमेश श्रीवास्तव ने किया।

रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

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