राष्ट्रीय डेस्क-कश्मीर की प्राकृतिक छटा व नैसर्गिक सौंदर्य जहां विश्वविख्यात है वहीं पाकिस्तान से सीमा विवाद , आतंकवाद व अलगाववाद को लेकर भी कश्मीर अकसर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चर्चा में आ जाता है . मोदी सरकार द्वारा एक झटके में कश्मीर को मिले विशेष दर्जे वाली धारा 370 व 35 ए को हटाने के बाद कश्मीर अंदर ही अंदर खदबदा रहा है . उक्त धारा को हटाने के दो साल बीत चुके हैं . ऊपर से तो कश्मीर में शांति नजर आ रही है . कश्मीर में राजनैतिक प्रक्रिया को गति भी दी जा रही है . धारा 370 व 35 ए की दोबारा बहाली की मांग भी चल रही है . कश्मीर को मिला उक्त विशेष दर्जा दोबारा बहाल होगा या नहीं लेकिन दो साल बाद का कश्मीर बदलाव के एक नए मुहाने पर अवश्य आ खडा हुआ है .
महज सवा करोड की आबादी वाले राज्य कश्मीर का हमेशा सुर्खियों में रहना शायद उसकी नियति बन गया है . 5 अगस्त 2019 को दो साल पहले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर उसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया था . 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय संधि पर दस्तखत कर इसे भारत में शामिल होने की सहमति प्रदान की थी . 17 अक्टूबर 1949 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 306 को तहत जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया . 26 जनवरी 1950 को संविधान मंजूर होने पर यही अनुच्छेद 306 अनुच्छेद 370 बना . 17 नवम्बर 1956 को जम्मू कश्मीर ने खुद को भारत का अंग बताते हुए अपना संविधान अपनाया था .
4 अगस्त 2019 को उमर अब्दुल्ला , महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन समेत जम्मू कश्मीर के कई शीर्ष नेताओं ने चुनावी गठबंधन बनाकर गुपकर घोषणा पत्र के नाम से संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर कहा कि अनुच्छेद 370 / 35 को बदलने या खत्म करने की कोई भी कोशिश जम्मू कश्मीर के लोगों को खिलाफ आक्रमण की कार्यवाही मानी जाएगी . कश्मीर के नेताओं की अनुच्छेद 370/ 35 ए को खत्म करने की आशंकायें सच साबित हुईं जब अगले ही दिन 5 अगस्त 2019 को केन्द्र की मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को न केवल खत्म किया . बल्कि जम्मू कश्मीर को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांट दिया . इसके बाद चले अभियान में सरकार ने गुपकर गठबंधन के तमाम नेताओं , अलगाववादियों समेत सैकडों लोगों को हिरासत में लेकर नजर बंद कर दिया . धारा 370 हटाने की यह मांग भाजपा का मातृसंगठन कई दशकों से करता आ रहा था . मोदी सरकार के लिए भी यह नायाब मौका था कि वह मातृसंगठन को भी शिकायत का मौका न दे . अभी नहीं तो कभी नहीं जैसे हालात थे क्योंकि मोदी सरकार का यह दूसरा कार्यकाल था . राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद सरकार पर इस तरह का दबाब भी था कि वह अनुच्छेद 370 पर निर्णय ले .
जम्मू कश्मीर को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद 28 नवम्बर 2020 को जिला विकास परिषद के चुनाव हुए जिसमें गुुपकर गठबंधन के सदस्यों ने 110 और भाजपा ने 75 सीटें जीती थीं . 24 जून 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के भविष्य की योजना का खाका खींचने को फारुक अब्दुल्ला , गुलाम नबी आजाद , महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं से मिले .
संसद ने इस साल इस केन्द्र शासित प्रदेश के लिए 1.08 लाख करोड रुपए का बजट पारित किया है . यदि आबादी के लिहाज से देखा जाए तो यह यूपी , बिहार जैसे बडे राज्यों से भी कई गुना ज्यादा है . पिछले साल घाटी में 232 आतंकी मारे गए जो बता रहा है कि आतंकवादी अब नियंत्रण में आ रहे हैं . अनुच्छेद 370 हटने के बाद केन्द्र के सभी 890 कानून अब जम्मू कश्मीर में लागू हो गए हैं . राज्य के 205 कानून रद्द हो गए हैं और 129 कानून बदल दिए गए हैं . सरकार ने अंग्रेजी और उर्दू के साथ ही डोगरी , कश्मीरी और हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता दी . दरबार को श्रीनगर से जम्मू लाने की परम्परा को खत्म कर दिया गया है . जिससे 200 करोड की भारी भरकम रकम की बचत होगी . अब बाहर ब्याही बेटियों के साथ दामाद भी डोमिसाइल के हकदार होंगे . लेकिन नब्बे के दशक में घाटी छोडने को मजबूर हुए 40000 परिवारों की घर वापसी के लिए अभी तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है . पर्यटकों की संख्या 14 लाख से घटकर 50 हजार पर आ गई है .
कश्मीर को बदलाव के लिए अभी लम्बी यात्रा तय करनी है . केन्द्र सरकार का अनुच्छेद 370 व 35 ए को हटाने , राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटने का फैसला कितना कारगर रहा इसके लिए अभी इंतजार करना पडेगा . फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है मोदी सरकार ने जिस दृढता और चतुराई के साथ जम्मू कश्मीर राज्य और वहां की राजनीति को नया मोड दिया है उसको उन जैसा कद्दावर नेता ही कर सकता था .
राकेश कुमार अग्रवाल रिपोर्ट