कानपुर वाला “विकास” दूं या कोई और..

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व्यंग्य

मैं विकास दूबे..कानपुर वाला..फिल्म वाला या नेताओं वाला.. विकास तो हर काल में हिट रहा है..फिट रहा है. पहचान तो गए हुईहो. इत्ती जल्दी भूलिहो तो कईसे भूलिहो? अपने चैनल हैं ना..

यह विकास होता ही झंझटी है. हो तो और ना हो तो. जिंदा रहते चैन न मरने के बाद. विकास तो मरते-मरते मर गया लेकिन उत्तर प्रदेश के नेताओं को “विकास” का रास्ता दिखा गया. देखिए न! कितना उतावलापन है, हाशिए पर पड़े ब्राह्मणों के वोटों के लिए. विकास के बहाने “विकास” की जितनी हिलोरे उठ रही है उतनी तो समंदर में भी न उठे. वार हैं-पलटवार हैं. कैसे सभी (दलों) ने अपने ब्राह्मण घोड़े ( चेहरे) रणभूमि में दौड़ा दिए हैं. यह अपनी (जनता की) बे-अक्ली है कि रण को अभी दूर मान रहे है. योद्धाओं के लिए युद्ध प्रारंभ हो चुका है. यह बेला सेनाओं के सजने की है. कौन योद्धा किस छोर के लिए फिट है, अभी से भेजा जाने लगा है.

राजनीति वही है जो जीने में संभावना देखें और मरने में भी. बुरा ना मानो. यह वैसे ही 100% शुद्ध धार्मिक-प्राकृतिक है जैसे लालदेव का कड़वा तेल.. फिर अपना धर्म भी तो पुनर्जीवन मानता है. प्रकृति भी कहती है- जहां अंत वहां उदय और जहां उदय वहां अंत. धर्म-प्रकृति प्रेमी दलों-नेताओं को अपनी राजनीति के जीवन-पुनर्जीवन से मतलब है, व्यक्ति के नहीं. बात लपकने की है. समय पर लपक लिया तो बन गया “काम” और रह गए तो गए “काम” से. फिर जय श्रीराम और अल्लाहू अकबर..है ही. दूबे हो, ददुआ हो, अंसारी हो, शुक्ला हो या और कोई हो.. मेरो तो गिरधर गोपाल ( वोट बैंक ) दूसरो न कोई.. मीराबाई ने तो केवल भजन गाया, अपने नेता इसको साक्षात “जी” रहे हैं. मानो न मानो! आपकी मर्जी.

कहते हैं-कुछ करने का कोई ना कोई बहाना तो होना ही चाहिए. याद है फिल्म का वह गाना- ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए.. यह भी कोई गाना था लेकिन हुआ तो हिट ही. पुरानी पीढ़ी को अभी तक जुबान पर रटा है. इसीलिए जुबान पर “विकास” को रटाए रखना जरूरी है. बोल कोई हो-खोल कोई हो. बताइए मितरो! “विकास” होना चाहिए के नहीं.. हाथ उठाकर बोलिए! विकास होना चाहिए के नहीं. हां- हां..होना चाहिए.. गोदी-गोदी-गोदी-गोदी.. बताइए! विकास को गोदी मिलनी चाहिए के नहीं. विकास नहीं होगा तो देश का.. मेरा.. आपका..विकास कैसे होगा? मैं आपसे पूछता हूं.. विकास के असली दुश्मन कौन हैं? आप है आप है..! गलत, आप हैं. हम तो आपको विकास देना चाहते हैं. आप ही विकास नहीं चाहते..?

तो, भाइयों लीजिए! कांग्रेसी कौरवों की तरफ से शाहजहांपुरी प्रसाद को, सपाई द्रुपद की तरफ से पांडे को, भाजपाई कर्ण पाठक-द्विवेदी को और गांधार प्रदेश की तरफ से तो मिश्रा है ही. रणभेरी ( अखबार के पन्ने-चैनल की चिल्लाहट) सुनाई देने लगी ही होगी.. कोई गोरखपुर के छोर से.. कोई लखनऊ के ओट से.. कोई शाहजहांपुर के कोट से और कोई न्यूज़ चैनल से चोट दे रहा है. ना सुनो तो इसमें इन बेचारे योद्धाओं का क्या दोष? अब आप की ड्यूटी है, इनके लिए तलवारे भांजिए, भोंकिए, चिल्लाइए.. यकीन मानिए! यह सब आपको “विकास” देंगे.. न सही कानपुर वाला तो कोई दूसरा वाला मिलेगा.. मिलेगा तो जरूर.. बस चढ़ाईए चुनाव का सुरूर..

जीतेगा विकास ही. जिंदा था तब तक जीता, मरने के बाद भी वही जीतेगा. यह आपकी इच्छा- इनका विकास चाहिए या उनका! विकास तो आपको मिलना ही है. इधर से मिले चाहे उधर से. तो प्रेम से बोलिए! आज के विकास की जय..

वरिष्ठ पत्रकार- गौरव अवस्थी

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