वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में देश के प्रख्यात हस्त रेखा विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी को लुप्तप्राय प्राच्य विद्याओं के संरक्षण में सराहनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया है.
सम्मेलन में देश-विदेश से पधारे विद्वानों एवं जिज्ञासुओं को संबोधित करते हुए डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ने कहा कि हाथ कर्म का प्रतीक है हाथ के अध्ययन से हमें यह पता चलता है कि कौन सा कर्म और काल हमारे अनुकूल है।
आदिकाल से ही संसार में आने वाली हलचलों को देखने का सबसे बड़ा स्क्रीन चंद्रमा (पंचांग) रहा है और मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव को हाथ की स्क्रीन ( रेखाओं ) में देखा जा सकता है इसीलिए हमारे ऋषियों ने कहा था कि प्रभाते कर दर्शनम् ” अर्थात अपना हाथ सुबह उठकर अवश्य देखना चाहिए. पामवेद मनुष्य के भय एवं भ्रम का निवारण कर के उसे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर कर रहा है।
उन्होंने कहा कि विश्व के सर्वाधिक प्रतिभाशाली युवा भारत में हैं अगर हम उनका सही मार्गदर्शन एवं नियोजन कर सकें तो बेरोजगारी पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि युवाओं के साथ विचार-विमर्श करके एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है. उनको आगे बढ़ता देखना एक सुखद अनुभव है. उन्होंने सभी ज्योतिषियों से आग्रह किया कि हमें सस्ती लोकप्रियता के लिए अपनी विद्याओं की विश्वसनीयता के साथ समझौता नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि हम अपने पूर्वजों की बौद्धिक सम्पदा के वाहक हैं और यह सम्मान उनको समर्पित करते है. आने वाले समय में हस्तरेखा विज्ञान, ज्योतिष, योग और आयुर्वेद की आवश्यकता एवं महत्ता बढ़ने वाली है. आज़ युवा पीढ़ी को अपनी बौद्धिक विरासत एवं संस्कृति को समझने और अपनाने की जरूरत है।
पाश्चात्य संस्कृति युवाओं की नींद और चैन छीन रही है यह चिन्ता का विषय है. उन्होंने कहा कि मैं बीएचयू के प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी, प्रोफ़ेसर गिरजा शंकर शास्त्री एवं प्रो. विनय कुमार पाण्डेय का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने देश की लुप्त प्राय विद्याओं एवं विद्वानों को संगठित एवं जागृत करने का काम किया।
रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल