राकेश कुमार अग्रवाल
बीते दो तीन दशक से मीडिया ने बडा हो हल्ला मचा रखा था . पर्यावरणविद भी मीडिया के सुर में सुर मिला रहे थे कि देश से तेजी से गिद्ध गायब होते जा रहे हैं . मीडिया की रिपोर्टों को मानें तो गिद्ध विलुप्ती की कगार पर पहुंच गए हैं .
गिद्ध एक मांसाहारी पक्षी है एवं मृत पशु पक्षी को नोच नोचकर खाना उसका भोजन है . गिद्ध की दृष्टि व सूंघने की क्षमता जितनी तेज होती है उतनी ही ऊँची उसकी उडान होती है . वह एवरेस्ट से भी अधिक ऊँचाई तक उडान भरने में सक्षम होता है . गिद्ध के विलुप्त होने के पीछे जताई जा रही चिंताओं में सबसे बडा कारण उसका प्राकृतिक सफाईकर्मी होना है . इसलिए चिंता होना भी लाजिमी है .
लेकिन कोरोना महामारी ने इन तथ्यों को पूरी तरह झुठला दिया है कि गिद्ध गायब हो गए हैं या गिद्ध खत्म हो गए हैं . बस फर्क इतना आया कि इस बार गिद्धों ने चोला बदल लिया . ये गिद्ध हमें हर जगह हर रूप में नजर आए . जिन लोगों का सीधा वास्ता इन गिद्धों से पडा वे जानते हैं कि गिद्धों ने उन्हें किस किस जगह और किस किस तरीके से नोंचा . जिस बीमारी महामारी का पुख्ता कोई इलाज नहीं केवल इलाज के नाम पर किए गए प्रयोगों में ही निजी अस्पतालों ने 30-30 लाख रुपए तक झटक लिए . कितने मरीज बचे , कितने पालीथीन में लिपटकर मोक्षधाम चले गए इसका खुलासा तो कोरोना की त्रासदी से निजात मिलने के बाद सही आँकडे आने पर ही होगा . इसको केवल हरिद्वार के बाबा बर्फानी निजी नर्सिंग होम के आँकडों से समझ लीजिए जहां पर 25 अप्रैल से 12 मई के बीच 65 कोरोना मरीजों की मौत हुई लेकिन अस्पताल प्रबंधन कोरोना से हुई मौतों के इन आँकडों छिपा गया जबकि कोरोना महामारी से पीडित मरीजों की मौत के 24 घंटे के भीतर कोरोना नियंत्रण कक्ष को इसकी सूचना देने के दिशा निर्देश हैं .
कोरोना की दूसरी लहर में जब शहरों से लेकर गांवों तक मौत का तांडव चल रहा था . एक एक जान को बचाना भारी पड रहा था ऑक्सीजन वाले गिद्धों ने 30- 50000 रुपए प्रति सिलिंडर वसूल डाले . रेम्सडेसिविर इंजेक्शन के नाम पर जो लूट हुई उसको तो इतिहास याद रखेगा . एक एक इंजेक्शन इन गिद्धों ने 20-20000 में बेचा . अंदर हास्पिटल में मरीज को लगाने के बजाए उसे वापस बाजार में गिद्धों के हाथों में थमा दिया गया ताकि गिद्ध अपनी चोंच तीमारदारों पर मार सकें . कुछ इनसे भी बडे गिद्धों ने तो डुप्लीकेट इंजेक्शन ही बाजार में बेचने शुरु कर दिए . मरीज मरे इनकी बला से . इतिहास गवाह रहा है कि गिद्धों ने कभी जिंदा जानवरों को अपना निशाना नहीं बनाया लेकिन पैसों के मीत इन गिद्धों ने असली गिद्धों को भी पीछे छोड दिया . 15 -50 रुपए का मास्क 500 रुपए में बेचा गया तो सेनेटाइजर के नाम पर भी गिद्धों ने बाजार में डुप्लीकेट सेनेटाइजर बेच डाले . एम्बुलेंस वालों ने तो जितनी मनमर्जी की वह भी कभी न बिसरेगी . हास्पिटल से श्मशान घाट तक शव को पहुंचाने के 10- 20000 ले लिए गए . अंतिम संस्कार की सामग्री की कीमतों में बेतहाशा बढोत्तरी ने बताया कि गिद्ध यहां भी विराजमान हैं . हास्पिटल में मृतक का अंतिम दर्शन कराने के लिए हास्पिटल कर्मी रूपी गिद्धों ने 5-10000 रुपए तक वसूल डाले . कीवी जैसा फल का एक पीस सौ रुपए में बिका तो नारियल पानी सौ से सवा सौ रुपए में . थर्मल स्कैनर , पल्स आक्सीमीटर में तो गिद्धों को जितना लूटते बना उतना लूटा गया . प्रधानमंत्री मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का आह्वान किया था लेकिन शायद इस आत्मनिर्भरता में गिद्ध बन जाने जैसा उनका कोई सुझाव तो कतई नहीं था .
शायर शौक बहराइची ने कहा था कि
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है
जब हर शाख पे उल्लू बैठा हो तो अंजाम – ए – गुलिस्तां क्या होगा .
ऐसे विकट काल में जब जीवन और जिंदगी के लाले पडे थे मौतों का डरावना मंजर था फिर भी पैसों के पुजारी इन गिद्धों ने जिस तरह से नोचा खसोटा है उससे आसमान में उडने वाले गिद्ध भी शायद इस दिन को देखने के पहले विलुप्त हो गए कि जमीनी गिद्ध तो रिश्ते में हम गिद्धों के भी बाप निकले .
कोरोना काल और धरती के गिद्ध
Click