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शोभायात्रा व सातों दिन के अन्य कार्यक्रम नही होंगे आयोजित
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उत्तर भारत के सबसे प्राचीन व विशाल मेले की है अबकी 838 वर्षगांठ
रिपोर्ट – H. K. Poddar
महोबा– वैश्विक कोरोना महामारी के चलते उत्तर प्रदेश में वीरभूमि महोबा के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्त्व के 838 वर्ष प्राचीन “कजली मेले” के आयोजन को अबकी निरस्त करते हुए इससे जुड़े सभी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई है।
जिलाधिकारी अवधेश तिवारी ने बताया कि कोविड 19 के संक्रमण के विस्तार को रोकने के लिए शासन द्वारा भीड़भाड़ जुटाने वाले सभी सामाजिक एवम सार्वजनिक आयोजनों पर रोक लगाई गई है तथा इससे बचाव के लिए अति महत्वपूर्ण सामाजिक दूरी के नियम-निर्देशो का अनुपालन कराए जाने हेतु लगातार चेताया जा रहा है। कोरोना संक्रमित नए मरीज हर रोज प्रकाश में आने से महोबा नगर का बड़ा क्षेत्र कंटेन्मेंट जोन बना हुआ है। ऐसे में यहां आयोजित होने वाले बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध कजली मेले के दौरान लाखों की संख्या में मेलार्थियों की भीड़ जुटने ओर इससे कोरोना सुरक्षा चक्र टूटने का खतरा होने के कारण मेले के इस बार के समूचे आयोजन को निरस्त कर दिया गया है। इस प्रकार अबकी यहाँ कजली मेले में न तो कजली की पारंपरिक शोभायात्रा निकाली जाएगी और न ही उसके बाद सात दिवसीय मेला आयोजित होगा। मेला आयोजक महोबा पुनुरोत्थान व विकास समिति तथा नगर पालिका परिषद को इस निर्णय से अवगत करा दिया गया है।
नगर पालिका परिषद के अधिशाषी अधिकारी लालचंद्र सरोज ने बताया कि महोबा में कजली मेले का आयोजन प्रतिवर्ष सावन पूर्णिमा (रक्षाबंधन) के दूसरे दिन भाद्र मास की प्रथमा से शुरू होता है। जो लगातार सात दिनों तक चलता है। मेले के पहले दिन निकलने वाली शोभायात्रा के आयोजन का दायित्व नगर पालिका परिषद निर्वहन करती है। किंतु आजादी के बाद यह पहला मौका है जब यहां परंपरागत मेला कोरोना संकट के मद्देनजर इस वर्ष आयोजित नही किया जाएगा। यही वजह है कि कजली मेले के आयोजन को लेकर अभी किसी प्रकार की तैयारियां शुरू नही की गई है। इसके आयोजन को अब महज एक पखवाड़े का समय ही शेष है लेकिन कही किसी प्रकार की चहल पहल नही है। जबकि बीते सालों तक मेले की तैयारियों का सिलसिला काफी पहले से शुरू हो जाता था। पालिका बोर्ड की बैठक में भी इसके आयोजन को लेकर बिस्तार से चर्चा कर इस हेतु बजट भी स्वीकृत किया जाता था।
उल्लेखनीय है कि महोबा के चंदेल साम्राज्य के गौरवशाली अतीत की स्मृतियों को अपने मे संजोए कजली मेला यहां सन 1182 में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान की अपराजेय सेना तथा चंदेल शूरवीरों आल्हा-ऊदल के मध्य हुए ऐतिहासिक युद्ध की याद दिलाता है जिसमे मातृभूमि की रक्षा के लिए आल्हा-ऊदल व उनके रणबांकुरे साथियों ने अप्रतिम युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर चौहान सेना को बुरी तरह पराजित किया था। यह युद्ध सावन की पूर्णिमा को लड़ा गया था। जिसकी वजह से तब यहां रक्षाबंधन का त्योहार नही मनाया जा सका था ओर कजली भी विसर्जित नही की जा सकी थी। कीरत सागर सरोवर के तट पर लड़े गए इस युद्ध मे विजय श्री मिलने पर तब दूसरे दिन भाद्र मास की प्रथमा को पूरे चंदेल साम्राज्य में विजय उत्सव मनाया गया था। बहनों ने भाइयों की कलाई में राखी बांधी थी और धूमधाम से कीरत सागर सरोवर में कजली का जल विसर्जन किया गया था। महोबा के कजली मेले को लेकर जन आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें सहभागिता कर कजली विसर्जन की प्राचीन परंपरा का निर्वहन करने के लिए यहां प्रतिवर्ष दूर-दूर के क्षेत्रों से लाखों की संख्या में मेलार्थियों की भीड़ उमड़ती है।