राकेश कुमार अग्रवाल
यूं तो इंसान का पूरा जीवन ही परीक्षा देने और लेने में बीतता है . परीक्षा मित्रता में होती हैं . परीक्षा दरिद्रता में होती है . परीक्षा रिश्तों में होती है . परीक्षा प्रकृति भी लेती है . परीक्षा ईश्वर भी लेता है . एक पंक्ति में कहूं तो परीक्षा का कोई ओर छोर नहीं है . उक्त सभी परीक्षाओं का न कोई टाइम टेबल होता है न ही उनमें प्रश्नपत्र दिया जाता है . कई बार जिस व्यक्ति की परीक्षा ली जा रही है इसका भान परीक्षा देने वाले व्यक्ति को भी नहीं होता है .
गुरुओं और शिक्षा बोर्डों द्वारा स्टूडेंट्स की परीक्षा लेने का सालाना उपक्रम लंबे अरसे से चला आ रहा है . लेकिन पहली बार देखने में आया है कि कोरोना नामक महामारी ने परीक्षाओं की परीक्षा ले ली है . और तमाम चिंतन , मंथन के बाद हाईस्कूल एवं इंटर दोनों बोर्ड परीक्षाओं को सरकार के दखल के बाद शिक्षा बोर्डों ने रद्द कर दिया है .
कोरोना काल में देश , दुनिया , समाज , रिश्तों ने क्या खोया और क्या पाया जब भी इस पर लिखा जाएगा शायद तब भी इसकी पूरी हकीकत सामने नहीं आ पाएगी . लेकिन फिर भी कोरोना की सबसे घातक चोट शिक्षा जगत पर पडी है .
पहले हाईस्कूल और इसके फौरन बाद इंटरमीडिएट की परीक्षाओं को रद्द करने की पटकथा दरअसल कोरोना की जानलेवा दूसरी लहर के बाद ही लिख गई थी . रही सही कसर उस अंदेशे ने पूरी कर जिसमें तीसरी लहर के आने की संभावना जताई जा रही है . चिंता की सलवटें इसलिए उभरी हुई थीं क्योंकि तथाकथित तीसरी लहर की चपेट में बच्चों के आने का अंदेशा जताया जा रहा है .
दरअसल कोरोना काल में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव इसके बाद उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए , हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन भी हुआ . भी़ड जुटाऊ इन आयोजनों के बाद मौतों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई थी . तभी से सरकारों और चुनाव आयोग को मीडिया का कोपभाजन बनना पडा . मौतों के आँकडे भी डरावने हैं . आईएमए चिकित्सकों की मौतों के आँकडे परोस रहा है तो यूपी में शिक्षक संघ शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की मौतों के आँकडे दे रहा है . पुलिस विभाग पुलिस कर्मियों और अधिकारियों की मौतों की संख्या बता रहा है .
ऐसा कोई भी सरकारी विभाग नहीं है जहां के कर्मचारियों और अधिकारियों की मौतें न हुई हों आम आदमी की मौतों की बात ही न की जाए तो बेहतर है . ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं को संपादित कराना सरकारों और बोर्ड के लिए दहकते अंगारों पर नंगे पांव पैदल चलने जैसा था . दूसरी लहर से बेजार हुई सरकार अब ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती है जिससे स्टूडेंट्स या टीचर की मौतों का कसूरवार उसे ठहराया जाए .
जिन लगभग दो करोड छात्रों को इन परीक्षाओं में बैठना है उनकी आयु भी लगभग 15 से 20 वर्ष के बीच है . देश की यह तरुणाई संभावनाओं से ओत प्रोत वाली है जिन्हें ही आगे आने वाले दस साल के अंदर देश दुनिया में नेतृत्व करना है .
हालांकि इस तथ्य से भी कोई गुरेज नहीं है कि उक्त सभी छात्र जिस दौर में हैं वह उनके कैरियर का टर्निंग प्वाइंट भी है . लेकिन सच यह भी है कि जान है तो जहान है . जान को दांव पर लगाकर परीक्षकों द्वारा परीक्षा लेना व बच्चों से परीक्षा दिलवाना कहां तक तर्कसंगत होगा वह भी तब जब पहले से ही देश में लाखों बच्चे महामारी में अपने तमाम परिजन व प्रियजन खो चुके हैं एवं हजारों बच्चे अनाथ भी हो गए हैं .
परीक्षाओं के रद्द होने के बाद सबसे बडी समस्या बच्चों को प्रोन्नत करने और परीक्षा परिणाम को लेकर आने वाली है . जिसको लेकर माथा पच्ची और नीति का ऐलान भी किया जा रहा है . लेकिन बेहतर तो यही होगा कि जब परीक्षा ली ही नहीं गई तो परिणाम भी क्यों दिया जाए वह भी यूनिट टेस्ट , प्री बोर्ड या हाफ ईयरली एक्जाम के प्रदर्शन के आधार पर . यह तो ठीक वैसी ही बात हो गई कि तीन दिवसीय , एक दिवसीय और टी 20 मैचों के प्रदर्शन के आधार पर टेस्ट चैंपियन घोषित कर दिया जाए . मेरा तो स्पष्ट मानना कि छात्रों को अंक पत्र के बजाए एक सर्टिफिकेट जारी किया जाए जिसमें कोविड 19 का हवाला देते हुए सामान्य प्रोन्नति की बात हो . अन्यथा नई प्रोन्नति प्रक्रिया में तमाम विवाद पैदा होने वाले हैं . स्कूलों में अभी से पेरेन्टस के फोन पहुंचने लगे हैं कि अब तो सब कुछ आपके हाथ में है . बच्चे का भविष्य का सवाल है कृपया उसकी अच्छी परसेंटेेज बनवा देना . सवाल यह भी है कि कौन स्कूल नहीं चाहेगा कि उसके बच्चों का बेहतर रिजल्ट तैयार न हो . इस बात की क्या गारंटी है कि स्कूल बच्चों के नंबर बढाकर नहीं देंगे या कमजोर बच्चों या फिर मेधावी बच्चों की अच्छी परसेंटेज बनवाने के लिए उन बच्चों से दोबारा कापी न लिखवा ली जाएँ . इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कम नंबर देने पर अंजाम भुगतने की धमकियां भी मिलने लगें . इससे मेधावी बच्चों के साथ अन्याय होना तय है . उच्च शिक्षा के अच्छे संस्थान पहले से ही प्रवेश परीक्षा लेते आए हैं . प्रोफेशनल कोर्सेज में एडमीशन भी प्रवेश परीक्षा के आधार पर होता है तो फिर सामान्य सर्टिफिकेट प्रदान करने से कोई भ्रम भी पैदा नहीं होगा . एक सवाल यह भी है कि सभी बोर्ड परीक्षाओं को संपादित कराने के नाम पर भारी भरकम परीक्षा फीस वसूलते हैं . इस बार जब परीक्षा प्रक्रिया हो ही नहीं रही है तो क्या सभी शिक्षा बोर्ड बच्चों से वसूली गई परीक्षा फीस उनके अभिभावकों को लौटायेंगे .