सर्वोदय आज के समाज की प्रमुख आवश्यकता
गांधी जयंती पर प्रणय सिंह के विचार
2 अक्टूबर के दिन भारत ही नहीं विश्व के तमाम देश और मानवता के पुजारी गांधी जी को याद करते हैं। आज भी मानवता,उदारता,परोपकार की भावना रखने वाले लोग गांधी जी को महामानव के रूप में देखते हैं। कई महापुरुषों ने तो उन्हें अकल्पनीय माना है। आइंस्टीन ने तो यहां तक कहा था कि आने वाली पीढ़ियां इस बात पर विश्वास नहीं करेंगी की हाड़ मांस के रूप में ऐसा व्यक्ति भी पृथ्वी पर आया था। गांधी जी तमाम प्रमुख सिद्धांतों की सिर्फ बात नहीं करते थे बल्कि वे उसे पर चलते भी थे। उन्होंने विभिन्न धर्म की अच्छाइयों को आत्मसात किया।अच्छे सिद्धांतों को उन्होंने अपने जीवन में अनुसरण में लाया। अच्छाइयों का अनुसरण करके ही वे आदर्शवादी कहलाए।
अच्छे विचारों के अनुसरण में गांधी जी किसी एक देश या सीमा रेखा या धर्म से नहीं बल्कि भिन्न-भिन्न न धर्म और महापुरुषों के विचारों से अनुप्राणित रहे। यद्यपि उन्हें अपने को वैष्णव होने पर गौरव है पर उन्होंने यह भी कहा है कि सभी धर्म उस धर्म के अनुयायियों के लिए अच्छे हैं। गांधी जी ने धर्म को मानवता के उत्थान के लिए प्रेरित माना है। इसीलिए गांधीजी को मानवता का पुजारी कहा जाता है। वह हिंसा त्यागने का आह्वान करते हैं। ऐसी हिंसा जो सिर्फ कायिक ही नहीं बल्कि वाचिक और मानसिक भी हो त्याग दिया जाना चाहिए। क्षमा को व्यवहार में लाने की बात की है। उन्होंने क्षमाशीलता और अहिंसा को वीरों का अस्त्र माना है। हिंसा से प्रति हिंसा और प्रति हिंसा से प्रति प्रतिहिंसा होती रहेगी। जो भविष्य में अनंतकाल तक चलती रहेगी।अर्थात शांति का माहौल कभी न बन पाएगा। अगर क्षमाशीलता नहीं होगी तो यह धरती और मनुष्य द्वंद तथा संघर्ष में घिरा रहेगा। गांधी जी सर्वोदय की बात करते हैं।
व्यक्ति जो समाज के हांसिए पर है। उसे आगे लाने के लिए समाज का सहयोग चाहते हैं। सबके हृदय में एक दूसरे के प्रति अनुराग चाहते हैं। गांधी जी का वह जंतर अनुकरणीय है जिसमें उन्होंने कहा है कि जब आपका अहम आपको परेशान करें तो आप अपने से नीचे की ओर देखें। स्वाभाविक है मनुष्य जब अपने से ऊपर की ओर देखता है तो परेशान होता है। तुलनात्मक अल्पता उसे परेशान करती है। इस जंतर से समाज का बहुत बड़ा वर्ग परेशान नहीं होगा। सामाजिक विषमताएं तमाम तरह के दोष उत्पन्न करती हैं। जिससे समाज में जटिलताएं और भी बढ़ जाती है। जटिलताओं को दूर करने सद्भाव और भाईचारा बनाए रखने के लिए सबका उदय चाहे वह आर्थिक रूप में हो सामाजिक हो वैचारिक हो अति आवश्यक है। हर एक व्यक्ति को परिश्रम करके ईमानदारी की रोटी खाने का प्रयत्न करना चाहिए। इसीलिए तो गांधी जी ने कहा था कि बिना परिश्रम करके अन्न खाना चोरी का अन्न खाने के बराबर है।
उन्होंने मानसिक श्रम से शारीरिक श्रम को श्रेष्ठ बताया।सच बोलना, ईमानदारी बरतना अपरिग्रह का भाव रखना निंदा और चोरी से दूर रहना क्या अप्रासंगिक है या भविष्य में हो जाएंगे। पूरी दुनिया मानवता के सहचर बोध,भाव व व्यवहार से ही चलेगी। साहचर्य का बोध सर्वोदय से ही होगा। जिसमें समाज अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करेगी। हासियें पर खड़े व्यक्ति के मन में भी धन संपदा संसाधन से परिपूर्ण व्यक्ति के लिए बुराई के भाव नहीं आएंगे। हर एक व्यक्ति,व्यक्ति में ईश्वर का रूप देखेगा।ऐसा होने से ही एक सशक्त,सीमा रेखा, धार्मिक श्रेष्ठता मुक्त मानवीय समाज बन सकेगा। गांधी जी अपने विचार थोपते नहीं। उनका अनुग्रह तो यहां तक है कि यह विचार सनातनी है, मानवीय है।
रिपोर्ट – राजकुमार गुप्ता
गांधी जी के जंतर से ही प्राप्त हो सकेगी आत्म गौरव की अनुभूति
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