चित्रकूटधाम की ओर से वरिष्ठ पत्रकार संदीप रिछारिया की कलम से निकली प्रधानमंत्री जी को खुली पाती

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यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी आप पर सत्य सनातन धर्म के सभी देव, देवियों और उन्नायकों के साथ प्रतीकों की कृपा जीवन पर्यन्त बनी रहे।

मैं चित्रकूट, सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व का स्थान हूं। अनोखी छटा देखकर त्रिदेव यहां एक बार नहीं अनेक बार आए। यहां की तपस्वनी माता अनुसुईया के तप के चलते उनकी यह मातृ स्थली बनी। प्रजापिता ब्रहमा जी ने यहीं से सृष्टि का आरंभ किया। सृष्टि के लिए यज्ञ से पूर्व श्री हरि विष्णु का जिस स्थान पर पद प्रक्षालन किया, वहीं से पयस्वनी गंगा प्रकट हुई। मां अनुसुईया ने दस हजार साल का उग्र तप किया तो मां मंदाकिनी प्रकट हुई। श्रीराम जी के आगमन पर सरयू मैया तो स्वयं चित्रकूट में अपना वैभव दिखाने लगीं। वैसे मंदाकिनी को बनाने के लिए दर्जनों नदियां व नदी नाले हैं।

अगर हर स्थान के बारे में लिखने बैठा तो पूरा एक ग्रंथ बन जाएगा। लेकिन जैसा की मेरे नाम से ही दृष्टिगोचर है कि चित्रों का दर्शन ही चित्रकूट है। पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक मान्यताओं, दस्तावेजों व नजरों के सामने मौजूद साक्ष्यों के आधार पर इस स्थान की प्रमाणिकता पर कोई प्रश्नचिंह नही लगा सकता।

आज चित्रकूट की पहचान केवल श्रीराम के नाम पर की जाती है। यह गलत है, राम के पूर्व तो उनके लगभग सभी पूर्वज चित्रकूट आए। उन्होंने यहां पर ऋषियों से अग्नेयास्त्र प्राप्त किए। राम के पहले महाराज अम्बरीश ने तो 18 साल अमरावती पर उग्र तप किया था।

वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हाल के कुछ साहित्यकारों ने चित्रकूट को बुंदेलखंड का हिस्सा बताया जो कि सर्वथा अनुचित है। चित्रकूट की धरती हमेशा से चित्रकूटी रही है। यहां की रामरज लोगों के पापों को दूर करने का काम सदियों से करती रही है। ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा के अनुसार चित्रकूट के पहले राजा कसु थे। वैसे आॅरकोलोजिकल सर्वे आफ इंडियाजिल्द 10 पृष्ठ 11 में जनरल कनिंघम ने कौशाम्बी की करछना तहसील के गढवा गांव के निकट पाए गए महत्वर्पूण शिलालेख का उल्लेख किया। इसमें साफ तौर पर उल्लेख है कि वर्ष 138 के माघ मास के इक्कीसवें दिन भगवान चित्रकूट स्वामिन के चरणों में भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति की स्थापना की गई थी। मठ को संचालित करने क ेलिए भूमि दान दी गई थी। कलचुरी शासक कर्ण के बनारस ताम्रपत्र एपिक इंडिया जिल्द 4 पृष्ठ 284 श्लोक 38 में चित्रकूट को मंडल कहा गया। 1688 के यु़द्ध के बार जब राजा छत्रसाल यहा पर आते हैं, इसे बुंदेलखंड का हिस्सा बताते हैं। जबकि चित्रकूट की धरती अलग है। बुंदेलखंड का हिस्सा नही है। यहां की संस्कृति में धर्म, तप और प्रेम भरा पड़ा है। जबकि बुंदेली संस्कृति ईष्या और बटवारे की है। वहां का इतिहास गलत कारणों से युद्व का प्रतीक है। खान पान, पहनावा, बोली, रीति रिवाज, भाषा सब कुछ अलग है। ऐसे में वह चित्रकूटी संस्कृति का हिस्सा कैसे हो सकती है।

बाबरनामा में स्वयं बाबर ने देश के तीन प्रतापी राजाओं में यहां के राजा रामजू देव की हैसियत अपने से युद्ध करने लायक आंकी है। अब जब औरंगजेब व शिवाजी की सेना के सिपाही महाराज छत्रसाल चित्रकूट आते हैं तो क्या वह महराज हो गए। यह बात दीगर है कि चित्रकूट धर्म स्थली है, यहां पर आकर राजा दान पुण्य के काम करते थे। राजा छत्रसाल भी आए, उन्होनें कामदगिरि परिक्रमा का निर्माण कराया, तमाम मंदिर बनवाए। वैसे विजावर, गौरिहार, चरखारी सहित अन्य स्टेटों के मंदिर, कुंए, बाबली इत्यादि भी यहां पर बने हुए हैं। इतिहासकारों के मुताबिक गुजरात से आए राजाओं ने यहां पर लम्बे समय तक राज किया। राजा बीसलदेव का नाम प्रमुख है। औरंगजेब ने तो यहां पर मंदिर बनवाकर जमीन दान दी।

सैकड़ों गुफाओं, वन प्रस्तरों, झरनों, विशाल जल प्रपातों, आदि मानव द्वारा रचित भित्ति चित्रों वाले इस नयनाभिराम दृश्यों से भरे इस अनोखे चित्ताकर्षक चित्रकूट में राम वन पथ गमन के साथ ही अगस्त, अत्रि, मारकंडेय, गौतम, जमदग्नि, सरभंग, सुतीक्षण, सहित अन्य ़ऋषियों की तपोस्थली आज भी समय की मार खाकर वीरान हो रही हैं। इतना ही नहीं जिस राजा भरत के नाम पर हम गौरव करते हैं, उनका जन्म यहीं पर हुआ। उनके पिता महाराजा दुश्यंत व शकुलंता की प्रेम कहानी मडफा के पहाड़ पर सुनाई देती है।

चित्रकूट रामघाट, कामदगिरि परिक्रमा व राजापुर, वाल्मीकि आश्रम में फैला क्षेत्र नही अपितु 84 कोस में विस्तारित एक विहंगम झांकी प्रस्तुत करता विशाल शोभनीय अरण्य है।

आदि कवि वाल्मीकि, तुलसीदास, रहीम, मीरा, भूषण, कालीदास सहित कितने ही कवियों साहित्यकारों ने इस अतभुद परिक्षेत्र को अपनी लेखनी से शब्द प्रदान किए। आज विश्व में तुलसीदास की लिखी रामचरित मानस करोड़ों लोगों की क्षुदा को भरने का काम कर रही है।

आप 2007 में भाजपा के विधायक पद के प्रत्याशी देव त्रिपाठी के लिए वोट मांगने आए। दुर्भाग्य से वह विधानसभा तक नहीं पहुंच सके। यह सुंदर रहा है कि सात साल बाद आपकी राशि में सूर्य पूरे देश में चमका और आप प्रधानमंत्री बने। अब छह साल बाद आपके चित्रकूट आने का सुयोग घटित हो रहा है। आप यहां पर बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और डिफेंस काॅरीडोर बनाने का शुभारंभ करेंगे। वैसे आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि आप जो काम कर रहे हैं, वह इस धरती पर बहुत पहले हो चुका है। यहां के बनाए अग्नेयास्त्रों से रावण का वध हुआ और प्यास बुझाने के लिए ही महासती अनुसुइया माता ने सहस्त्र हजार धाराओं के साथ मंदाकिनी को प्रकट किया। वैसे अब नए पक्के निर्माण माता की अनेक धाराओं को काल कलवित कर चुके हैं। आम लोगों के साथ ही साधू संतों का मलमूत्र भी मंदाकिनी के पवित्र जल में विसर्जित हो रहा है।

अब जब हम आपको दो बार सांसद व पूरे चित्रकूट परिक्षेत्र (यूपी) में विधायक दे चुके हैं तो आपसे आशा करते हैं कि आप चित्रकूट के उस भौतिक विकास पर भी विचार करेंगे जिससे विश्व भर से लोग यहां पर आएं और यहां के अनोखे दृश्यों को देखें।

1ः चित्रकूट के 84 कोस परिक्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए।

2ः चित्रकूट को बुंदेली हिस्सा न माना जाए, क्योंकि साक्ष्यों के आधार पर चित्रकूट बुंदेलखंड का हिस्सा कभी नहीं रहा।

3ः चित्रकूट को विश्व विरासत में शामिल कराया जाए।

4ः चित्रकूट के हर एक स्थल का चिंहाकन कर उसका वैभव सबके सामने लाया जाए।

5ः पुराने मंदिरों का जीर्णोधार कराने के साथ ही मंदिरों प्रापर्टी के लिए बन रहे महंतों पर रोक लगाई जानी चाहिए।

6ः चित्रकूट राम की भूमि मानी जाती है। यहां के सभी कार्य भगवान राम यानि तुलसीदास जी द्वारा लिखित शिव स्तुति, राम स्तुति और स्वामी मत्तगयेन्द्रनाथ जी की स्तुति के आधार पर ही होना चाहिए।

7ः मंदाकिनी की अविरलता, पयस्वनी, सरयू, चंद्रभागा, कौशकी, वाल्मीकि, गुंता आदि नदियों पर लगातार काम कर उन्हें पुर्नजीवित करने व संरक्षण की आवश्यकता है।

8ः यहां पर हर महीना अमावश्या पर मेला लगता है। जिसमें देश भर से लाखों लोग आते हैं। दीपावली अमावश्या में मेला में पांच दिनों में लगभग दो करोड लोग आते हैं। लेकिन आज तक यूपी के क्षत्र में कहीं पर भी पार्किंग या बड़े सुलभ की व्यवस्था नही है। स्वच्छ भारत अभियान यहां पर अमावस्या के दूसरे दिन मुंह चिढाता नजर आता है।

आशा है कि आप इस आगह पर ध्यान देंगे।

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