चित्रकूट में विकास के नए आयाम रचता ‘रामायण मेला’

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संदीप रिछारिया

चित्रकूट। ‘चित्रकूट रघुनंदन छाए, समाचार सुनि सुर नर मुनि आए‘ श्रीरामचरित मानस की यह चैपाई वास्तव में चित्रकूट के आज के भौतिक विकास का बखान करती है। फरूर्खाबाद के रहने वाले समाजवादी चिंतक डाॅ0 राममनोहर लोहिया ने अपने पत्र में जिस रामायण मेला की कल्पना 1960 में स्थानीय कलकत्ता वाली धर्मशाला के एक कमरे में बैठकर की थी, भले ही यह महामहोत्सव उन सोपानों को छू न पाया हो, पर इतना तो साफ है कि आज के चित्रकूट के भौतिक व सामाजिक विकास के पीछे का आधार स्तम्भ रामायण मेला ही है।

डाॅ0 लोहिया ने अपने ड्राफट को स्थानीय साहित्यकार चिंतक प्रो0 बाबू लाल गर्ग को दिखाया। स्थानीय वणिकों व समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के साथ बैठकर चर्चा की, पर बात बनी नहीं। कई बार स्थानीय स्तर पर बैठकें होने के बाद भी वर्ष 1973 आया। देश भर में केंद्र सरकार की तरफ से मानस चतुदर्शी का आयोजन किया जा रहा था। प्रो0 गर्ग व तत्कालीन नगर पालिकाध्यक्ष गोपाल कृष्ण करवरिया की जुगलबंदी ने तय किया कि हम डाॅ0 लोहिया द्वारा परिकल्पित रामायण मेले का आयोजन चित्रकूट में करेंगे। प्रो0 गर्ग साहित्यकारों, सांस्कृतिक दलों व मंच संबंधी सभी व्यवस्थाओं को देखेंगे और आयोजन संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी श्री करवरिया जी की होगी। स्थानीय स्तर पर टीम बनी। तय किया गया कि मेले के माध्यम से राम के नाम को गंुजायमान करने के लिए महाशिवरात्रि का दिन उचित रहेगा। मेले का स्वरूप पांच दिनों का होगा। जिसमें देश व विदेश के विद्वान आकर रामकथा पर चर्चा करेंगे। शाम के समय व सुबह के सत्र में रामलीला व रासलीला के साथ ही भजन, गजल, सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत होंगे। निर्णय लिया गया कि इस मंच में पाच दिनों तक राम नाम के अलावा कोई दूसरा चिंतन या उदबोदन नही होगा।

रामायण मेले की शुरूआत शिवरात्रि 1973 में सीतापुर के पोद्वार इंटर काॅलेज के ग्राउंड पर टेंट लगाकर की गई। आनंद, दृष्टि, रससंचार और हिंदुस्तानी को बढ़ावा बोध वाक्यों के सहारे प्रारंभ हुआ रामायण मेला 2020 में अपने 47 सोपानों को छू चुका है। लगातार 47 वर्षों से मंचीय व्यवस्थाओं का समन्वय कर विशिष्ट प्रस्तुतियों से पूर्व उनके लिए अपनी भाशा शैली से आधारभूत ढांचा खड़ा करने वाले बांदा के जेएनकाॅलेज के पूर्व हिंदी भाषा के प्राध्यापक डाॅ प्रसाद दीक्षित ललित जी रामायण मेला की विकास यात्रा पर कहते हैं कि रामायण मेला का हर पल उन्हें विशिष्टता के उन सोपानों के दर्शन करता है, जो उनके जीवन की अमूल्य यादें हैं।स्व0 अटल बिहारी बाजपेई जैसे विशेष महानुभाव आए। वह याद करते हुए बताते हैं कि पहला रामायण मेला 3 दिसंबर 73 को आयोजित किया गया था, प्रदेश के राज्यपाल अकबर अली खां ने इसका शुभारंभ किया था। उन्होंने कहा कि कि तुलसी की लिखी रामचरित मानस किसी जाति या धर्म की जागीर नही है, बल्कि यह तो सभी इंसानों के लिए है, जो इंसानियत की पूजा करना सिखाती है। महादेव वर्मा, सैयद महफूज हसन रिजवी पुंडरीक, राज्यपाल मोती लाल वोरा, केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह जगद्गुरू शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती राज्यपाल वी सत्यनाीायण रेड्डी आदि को सुनना अपने आपमें गौरवान्वित करने वाले पल रहे। आज आचार्य बाबू लाल गर्ग नही रहे, करवरिया जी भी नही रहे, पर उनके लगाए इस वृक्ष को उनके पुत्र राजेश करवरिया, प्रिंस करवरिया भली भांति खाद पानी देकर आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

लंबे समय से रामायण मेला की व्यस्थाएं देख रहे करूणाशंकर द्विवेदी कहते हैं कि वास्तव में यह तो एक यज्ञ है। जिसमें आहुति डालने का काम सभी करते हैं। यह मेला चित्रकूट का है, हर एक व्यक्ति का है। इस यज्ञ में सभी का अपने- अपने हिसाब से सहभाग रहता है।

कार्यकारी अध्यक्ष राजेश करवरिया कहते हैं कि वह तो पूर्वजों की थाती को समेटे रामायण मेला को और बेहतर करने का काम कर रहे हैं। आने वाले समय में इसे और बेहतर करने का प्रयास किया जाएगा।

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