राकेश कुमार अग्रवाल
कोरोना का दूसरा राउण्ड बडे ही घातक रूप में सामने आया है . अस्पतालों से मौतों के आँकडे और श्मशान घाट से आने वाली रिपोर्टिंग डराने वाली है . कोरोना की भयावहता को देखते हुए पूरे देश में फिर से शिक्षण संस्थाओं को बंद कर दिया गया है . कुछ कक्षाओं की परीक्षाओं को रद्द कर दिया गया है तो कुछ परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है .
देश का एक वर्ग बडा परेशान है कि जब चुनाव हो सकते हैं . कुंभ स्नान हो सकता है तो परीक्षायें क्यों नहीं हो सकतीं ? इसको लेकर सरकार पर तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं . इस फैसले का मखौल उडाया जा रहा है .
लेकिन मैं पूरे होशोहवाश एवं बिना किसी राग द्वेष के साथ यह कह रहा हूं कि चुनाव अपनी जगह है , कुंभ स्नान अपनी जगह है और स्कूल कालेजों की परीक्षायें अपनी जगह हैं . तीनों की आपस में तुलना कतई नहीं की जा सकती है .
आप ही बताइए चुनाव पांच साल में एक बार आता है . कुंभ के लिए कितना लम्बा इंतजार करना पडता है आप सभी जानते हो . रही बात परीक्षाओं की तो पहले तिमाही परीक्षा , फिर छमाही परीक्षा फिर वार्षिक परीक्षा , यूनिट टेस्ट , सेमेस्टर एक्जाम , प्रक्टिकल एक्जाम , बायवा ( मौखिक परीक्षा ) . जब देखो तब परीक्षा . कभी होम एक्जाम कभी बोर्ड एक्जाम , कभी ओलम्पियाड तो कभी नीट कभी जेईई . जब देखो तब परीक्षा . फेल करने की परम्परा भी इतिहास बनती जा रही है . जब सबको पास ही करना होता है तो परीक्षा को लेकर इतना हायतौबा क्यों ? परीक्षायें तो हमारे जमाने में होती थीं . जिस दिन परीक्षा होती थी उस दिन बिना पेट दर्द , ऐंठन , पेचिश या दस्त के भी पांच बार निपटकर आते थे . जब पेपर बंटने का वक्त आता था तो राम राम राम जपते थे . जमकर तैयारी के बाद भी 60 परसेन्ट नम्बर लाने में नानी याद आ जाती थी . अब तो 80- 90 परसेन्ट नंबर लाना तो बच्चों के बायें हाथ का खेल हो गया . हम लोगों का जब रिजल्ट आता था तो एक सीरीज के रोल नंबरों में से हो सकता है दो तीन सौ लडकों के रोल नंबरों में से इक्का दुक्का पास हो पाते थे . अब सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है अब तो इक्का दुक्का स्टूडेंट ही फेल होते हैं .
असली परीक्षा तो अब केवल नेताजी देते हैं . पूरे पांच साल तैयारी करते हैं . नगरी – नगरी द्वारे -द्वारे , नगर- नगर डगर – डगर जाते हैं . भीषण गर्मी हो या हाडकंपाऊ ठंड अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना नेता जी डटे रहते हैं . कार्यकर्ताओं को मनाना उन्हें अपने साथ जोडे रखना , पार्टी में पैठ बनाना , पार्टी फंड के लिए दान देना , बकरा , मुर्गा , दारू का इंतजाम करना , अपने पूरे चुनाव क्षेत्र में बैनर पोस्टर फ्लैक्स लगाकर शुभकामनायें प्रेषित करना कितनी खर्चीली परीक्षा होती है एक नेता की . तिस पर आयोग की आँखों में धूल झोंकते हुए करोडों के चुनावी खर्च को लाखों का दर्शा देना कोई छोटी मोटी बात है . और स्कूली परीक्षाओं का क्या है एक हफ्ते से लेकर डेढ महीने तक परीक्षा जैसे किसी लोन की ईएमआई चुकानी पड रही हो . धारावाहिक की तरह चलती ही रहती है . कब पेपर आउट हो जाए इसका ठिकाना नहीं . चुनावी परीक्षा तो एक दिन की होती है . सुबह शुरु और शाम को खत्म . वो तो चुनाव आयोग को पार्टियों और नेताओं पर भरोसा नहीं है इसलिए वो भी स्कूली बच्चों की तरह महीनों तक लम्बे समय तक परीक्षा खींचते है. आजादी के बाद से देखो तो तब भी चुनावी परीक्षा होती थी लेकिन इतना लम्बा टाइम टेबल नहीं होता था . एक ही डेट में चुनाव निपट जाते थे . रिजल्ट भी तय तारीख पर शाम तक आ जाता है .
अच्छा आप सभी लोग मेरी एक बात का जवाब दो कि नेता लोग जो परीक्षा देते हैं वो परीक्षा वे किसके लिए देते हैं . अगर आपको मालूम नहीं है तो हम आपको बताते हैं कि वे अपने देश के लिए अपने समाज के लिए हर परीक्षा देने को तत्पर रहते हैं . और बच्चों की परीक्षा का क्या है . इनको पास कर दो तो नौकरी मांगने लगते हैं . ज्यादा पढा लिखा दो तो विदेश भाग जाते हैं और वहीं बस जाते हैं . आप बताओ हमारा कोई नेता विदेश भागते देखा आपने . माना कि माल्या , नीरव मोदी भागते होंगे लेकिन वे नेता थोडी हैं . अलबत्ता हमारे पडोसी देश पाकिस्तान के नेता जरूर भाग कर विदेश चले जाते हैं .
चुनाव सबसे बडी परीक्षा है . इसलिए चुनाव प्रक्रिया को संपादित होना ही चाहिए . क्योंकि मामला देश की बेहतरी का . तगडे नेता न मिलेंगे तो देश कैसे चलेगा . और तगडा कौन है यह तो चुनाव तय करता है . बच्चों का क्या है पढ लिख कर ज्यादा से ज्यादा आईएएस ही तो बनेंगे . और सलाम तो नेता जी को ही ठोकेंगे . इसलिए बहनो और भाईयो आप को अपने एक दो बच्चों की पडी है और नेता जी को पूरे 135 करोड देशवासियों की चिंता है . आप अपना वोट डालकर नेता जी की चुनावी चिंता को कुछ कम कीजिए . न कि अपना और देश के लोगों का बीपी बढाइए . विश्वास रखिए चुनाव होते रहेंगे तो देश बचा रहेगा.
चुनाव बनाम परीक्षा, इतनी हायतौबा क्यों
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