वाराणसी की सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े एक मामले में मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज कर दिया। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि ज्ञानवापी परिसर का कब्जा हिंदुओं को सौंपने सहित 3 मांगों से जुड़ा मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। इसकी सुनवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश दिया है कि मुकदमा सुनने योग्य है।
ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने सहित तीन मांगों से संबंधित मुकदमे की सुनवाई सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हुई। जिन तीन मांगों पर सुनवाई होनी थी, वह मुकदमा विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन की पत्नी किरन सिंह विसेन और अन्य ने दाखिल किया।
इस पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने आपत्ति दाखिल की थी। कमेटी ने कहा था कि किरन सिंह विसेन की यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान का मुकदमा विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन की पत्नी किरन सिंह विसेन और अन्य ने दाखिल किया है।
विश्व वैदिक सनातन संघ के एडवोकेट अनुपम द्विवेदी ने बताया के कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मुकदमा सुनवाई योग्य है। अदालत ने सुनवाई की अगली डेट 2 दिसंबर फिक्स की है। इससे पहले इस मुकदमे के संबंध में कोर्ट ने 17 नवंबर की डेट फिक्स की थी।
किरन सिंह विसेन और अन्य की 3 मांग थी। ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिम पक्ष का प्रवेश प्रतिबंधित हो। ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंप दिया जाए। ज्ञानवापी परिसर में मिले ज्योतिर्लिंग की नियमित पूजा-पाठ करने दी जाए।
जान लें कि मुकदमे में 5 प्रतिवादी हैं। जितेंद्र सिंह विसेन के अनुसार इस मुकदमे में UP सरकार, वाराणसी के डीएम व पुलिस कमिश्नर, अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को प्रतिवादी बनाया गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित अलग-अलग मुकदमे वाराणसी की सिविल कोर्ट से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में विचाराधीन हैं।
गौर करें तो विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन का कहना है कि उनकी देखरेख में ज्ञानवापी से संबंधित 6 मुकदमे लड़े जा रहे हैं। उन्हें आशंका है कि कुछ लोगों की साजिश से उनकी देखरेख वाले सभी मुकदमे खत्म हो जाएंगे। काशीवासियों को सावधान रहने की जरूरत है।
इससे पहले 12 सितंबर को कोर्ट ने ज्ञानवापी कैंपस में मौजूद मां श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा की अनुमति देने वाली याचिका को सुनवाई योग्य माना था।