लालगंज, रायबरेली। बैसवारा लालगंज की बेटी MAMATA SHUKLA ने भी माइक्रोबायोलॉजी से एमएससी के साथ-साथ 2 उत्पादों की खोज करके रायबरेली जनपद का नाम रोशन किया है ।
बात हो रही है अन्नपूर्णा पैथोलॉजी लालगंज के निदेशक राममूर्ति शुक्ला की होनहार बेटी ममता शुक्ला की जिन्होंने सरस्वती विद्या मंदिर लालगंज से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद कानपुर यूनिवर्सिटी कैंपस से बीएससी और एमएससी किया।उसके बाद ममता शुक्ला को जब यूनिवर्सिटी ने बायोलॉजी थीसिस पर काम करने के लिए एनएसआई भेजा तो उन्होंने वहां के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन अग्रवाल के निर्देशन और डॉ विष्णु प्रभाकर के साथ मिलकर गन्ने की खोई से ठोस एथेनॉल व वनीला एसेंस और वर्निंग केमिकल बनाने का सराहनीय कार्य किया ।शनिवार को जब राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर की रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला लालगंज अपने आवास पहुंची तो पत्रकारों से रूबरू हुई ।
उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर ने देश में पहली बार लिक्विड औद्योगिक अल्कोहल को ठोस रूप में परिवर्तित करने की तकनीक खोजी है। ठोस अल्कोहल भी लिक्विड की तरह जलेगा और ऊर्जा देगा। साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल है।
यह प्रदूषण रहित और स्वास्थ्य के अनुकूल भी है। ठोस अल्कोहल का उपयोग खानपान व्यापार, पर्यटन और ऊंचे पहाड़ों पर सेना के जवान भी आसानी से कर सकेंगे। उन्हें पैराफिन (मोम) आदि पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसकी कीमत भी महज 50 रुपये प्रति किलोग्राम होगी। एक लीटर तरल अल्कोहल से 1.08 किलोग्राम ठोस अल्कोहल बनाया गया है।
रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने बताया कि संस्थान ने इस तकनीक को पेटेंट कराने की तैयारी की है। उन्होंने कहा कि चीनी मिलों से निकले अपशिष्ट से सीएनजी को पहले ही बनाया जा चुका है। अब चीनी उद्योगों पर आधारित डिस्टलरी में बन रहे अल्कोहल को ठोस जैव अल्कोहल में बदलने में सफलता मिली है। यह चीनी के क्रिस्टल की तरह दिखता है। इसकी पैकिंग और परिवहन भी बेहद आसान है। इसे जलाने से न तो धुआं व कालिख निकलती है, न ही कोई हानिकारक गैस पैदा होती। यह पैराफिन (मोम) का सही विकल्प है।
मोम पेट्रोलियम पदार्थ होने के कारण जलने के दौरान कालिख का कारण बनता है और गंध व जहरीली गैस का उत्सर्जन करता है। रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने कहां कि यह तकनीक संस्थान के कार्बनिक रसायन विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव के साथ मिलकर उन्होंने दो वर्ष के अनुसंधान के बाद विकसित की है।
पूर्व के रिसर्च स्कॉलरो ने भी प्रयास किया था लेकिन सफलता हाथ नहीं आई थी।
रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने बताया कि कुछ शोधकर्ताओं ने पहले भी ठोस अल्कोहल बनाने की कोशिश की थी, लेकिन खराब भंडारण स्थिरता के कारण वह प्रयोग सफल नहीं हुए। कुछ समय के बाद वे ठोस अल्कोहल नरम या तरल में बदल जाते थे तो कुछ ठोस अल्कोहल जलने के दौरान काला धुआं व तीव्र गंध पैदा कर पर्यावरण को प्रदूषित करते थे। लेकिन इस बार आधुनिक तकनीक से जब गन्ने की बेस्ट कोई को ठोस अल्कोहल बनाने का प्रयास किया गया तो 2 वर्ष के बाद ठोस अल्कोहल के रूप में पूर्ण सफलता प्राप्त हो गई है जो कि राष्ट्र के लिए वरदान साबित होगी।रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने बताया कि ठोस अल्कोहल बनाने के लिए 80 प्रतिशत सांद्रता वाले तरल अल्कोहल का प्रयोग किया। कुल मात्रा का एक प्रतिशत क्योरिंग एजेंट एसीटेट, नाइट्रो सेल्युलोज आदि पदार्थ मिलाकर उसे ठोस बनाया गया। इसकी ज्वलनशीलता को बढ़ाने के लिए आयरन नाइट्रेट भी मिलाया गया।
ममता शुक्ला ने माता-पिता को अपनी सफलता का दिया श्रेय
रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने यह भी कहा कि महिला होने के बावजूद अगर उन्होंने विज्ञान विषय में शिक्षा के साथ-साथ राष्ट्र के लिए कुछ खोजा है तो इसका पूरा श्रेय सबसे पहले उनके पिता राममूर्ति शुक्ला और माता विनीता शुक्ला को जाता है जिन्होंने शिक्षा के पूरे अवसर प्रदान किए और ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर कानपुर यूनिवर्सिटी से एमएससी के साथ-साथ राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर से थीसिस किया जहां पर उन्होंने वनीला एसेंस, ठोस अल्कोहल व अन्य उत्पादों की खोज की।
रिसर्च स्कॉलर ममता शुक्ला ने यह भी कहा कि सरकार को छात्राओं को आगे बढ़ाने की दिशा में और प्रयास करने होंगे। जब छात्राओं को सामाजिक आर्थिक मदद मिलेगी तभी वे अपनी प्रतिभा का कमाल दिखा सकेंगी। ममता शुक्ला ने विद्यार्थियों को संदेश देते हुए कहा कि उन्हें इंटर में पढ़ाई के समय ही अपनी दिशा और दशा पर ध्यान देना चाहिए। एक निश्चित प्लेटफार्म की ओर बढ़ना चाहिए तभी सफलता उनके कदम चूमेगी।
रिपोर्ट – संदीप कुमार फिजा