तो क्या भूमिहीनों में वितिरत हो गई पीएम किसान निधि?

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रिपोर्ट – दीपक राही

रायबरेली – जिले की तहसीलों में अपनी गहरी पैठ जमा चुके भ्रस्टाचार में कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक की हिस्सेदारी के मामले आये दिन देखने को मिलते रहे हैं । पैसे की लालच देकर लेखपालों, कानूनगो, तहसील स्तरीय अथवा बड़े अधिकारियों की रिपोर्ट लगवाना बहुत ही आसान है । तहसीलों में खतौनी से लेकर अन्य सभी कामों तथा लंबित वादों में पैसों की अनुपलब्धता जाहिर करने के बाद निपटाने में आनाकानी आम बात है । डलमऊ तहसील के पूर्ति विभाग में काम करने वाले कुछ अवैतनिक व्यक्तियों द्वारा जालसाजी करते हुए किसान सम्मान निधि के पैसों पर डाका डाल दिया गया । मामले में उपलब्ध दस्तावेजो के आधार पर बाकायदा लेखपाल, कानूनगो सहित ऊपजिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट की आख्या के उपरांत किसान सम्मान निधि का पैसा खातों में हस्तांतरण किया जा चुका है । इतनी बड़ी जालसाजी में लेखपाल सहित तमाम अधिकारियों की जांच रिपोर्ट को कटघरे में खड़ी कर रही है ।

फर्जीवाड़े के पीछे जिम्मेदार कौन

बताते चलें कि तहसील क्षेत्र के गंज बड़ेरवा निवासी सतीश कुमार पुत्र अशोक कुमार निवासी गंज बड़ेरवा ने आरोप लगाया कि राज मिश्रा पुत्र उदय प्रकाश मिश्रा रजि.संख्या UP124073735, ललिता मिश्रा पत्नी उदय प्रकाश मिश्रा रजि.संख्या अज्ञात निवासी गंज बड़ेरवा, सुरेंद्र पुत्र राम शंकर निवासी संतपुर रजि.संख्या UP107517150, धर्मेंद्र कुमार पुत्र शिवप्रसाद निवासी संतपुर रजि.संख्या UP155845879, गंगासागर पुत्र शिवप्रसाद निवासी संतपुर रजि.संख्या UP155911205, गीतादेवी पत्नी शिवबालक निवासी संतपुर रजि.संख्या UP155905797 आदि लोगों ने जालसाजी करते हुए किसान सम्मान निधि का भुगतान प्राप्त कर लिया है । जबकि उपरोक्त व्यक्तियों के नाम कहीं कोई भी जमीन नहीं है जिस पर उनके स्वामित्व का प्रमाण हो । ऐसी धोखाधड़ी तहसील प्रशासन के शामिल हुए बिना संभव नहीं है ।

साहब की सुनें…

इस सम्बंध में एसडीएम डलमऊ सविता यादव ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है । मामले की जांच करके दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी ।अधिकारियों की प्रतिक्रिया से जाहिर है कि विभागीय लीपापोती के साथ जांच प्रक्रिया के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ाया जाना शुरू कर दिया गया है । विभागीय जांच में गाज किसी पर गिरेगी भी अथवा नहीं ये वक़्त के गर्भ में छिपा है । लेकिन जालसाजी के इस बेहद गंभीर मामले से साबित होता है कि तहसीलों में पैसे के दम पर कोई भी खेल कराना बेहद आसान हो चुका है।

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