देश में दलित होना अब भी अभिशाप – बजरंग बिहारी तिवारी

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राकेश कुमार अग्रवाल
देश में दलित होना अभी भी अभिशाप है यह मानना है जाने माने आलोचक , विमर्शकार व दलित समाज के अध्येता बजरंग बिहारी तिवारी का . बजरंग बिहारी तिवारी देश के इकलौते ऐसे सवर्ण हैं जिन्होंने दलितों पर अपने को समर्पित कर दिया है . हाल ही में आई उनकी किताब केरल में दलित समाज के अतीत से लेकर वर्तमान की पडताल करती है . दलितों पर विमर्श को समर्पित यह उनकी नौंवी किताब है जो दलितों से जुडे तमाम उन पहलुओं को उद्घाटित करती है जिससे नई पीढी पूर्णतया अनजान है .
उत्तर प्रदेश के गोंडा में जन्मे बजरंग बिहारी तिवारी ने माध्यमिक स्तर की शिक्षा गोंडा में हासिल की . बीए करने के लिए वे इलाहाबाद चले गए . बीए करने के बाद वे वहां से दिल्ली चले गए . साक्षरता अभियान से जुडना उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट लेकर आया . दरअसल जब वे जेएनयू से हिंदी में एम ए कर रहे थे . उस समय वे एनएसएस से जुडना चाहते थे . लेकिन उस समय उनकी मैडम ने उन्हें साक्षरता मिशन की जानकारी दी . मैडम तमिलनाडु की थीं उन्होंने कहा कि आप चाहें तो कैम्पस के बाहर साक्षारता मिशन चला सकते हैं . इसके लिए आप सफाईकर्मियों से बात करके देखिए . जेएनयू कैम्पस में तैनात महिला व पुरुष सभी सफाईकर्मी अनपढ थे . जब उन्हें सेलरी मिलती थी तो वे अंगूठा लगाते थे . जब बजरंग ने उनसे बात की तो वे सभी पढाई के नाम पर हंस पडे . लेकिन महिलायें सीखने के लिए राजी हो गईं कि अँगूठा लगाने से तो मुक्ति मिलेगी . बजरंग को पढाने के लिए कैम्पस में ही एक हाॅल मिल गया . लगभग 6 साल तक 40 महिलायें पढने आती रहीं अंत तक 35 महिलायें पढना लिखना सीखती रहीं . इन सफाईकर्मी महिलाओं ने हस्ताक्षर करना , डायरी भरना , बैंक अकाउंट आपरेट करना सीखा . इन महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा , शराब का सेवन जैसी विसंगतियों को करीब से देखा और जाना . साक्षरता मिशन से जुडे होने का बजरंग को यह फायदा मिला उन्हें निबंध प्रतियोगिता में देश में प्रथम स्थान पाने पर साक्षरता मिशन की पत्रिका का एक वर्ष के लिए संपादक बना दिया गया . उन्होंने सफाईकर्मियों के साथ जो अभियान चलाया था . उसी से जुडे प्रसंगों पर उन्होंने पत्रिका में लिखना शुरु कर दिया . यहीं से उनका दलितों पर लेखन प्रारम्भ हुआ .
बजरंग बिहारी तिवारी की पहली पुस्तक ‘ दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा ‘ है . जो 2015 में प्रकाशित हुई . उनकी दलित उत्पीडन के वर्तमान पर दलित लेखकों से जमकर बहस हुई कि अब तो जाति व्यवस्था रही नहीं तो क्यों फिर क्यों इस पर लिखा जा रहा है . उनकी दूसरी किताब ‘ जाति व जनतंत्र ‘ के रूप में सामने आई (2015 ) . तीसरी किताब देश के विभिन्न राज्यों के दलित चिंतक और विचारकों , कार्यकर्ता व साहित्यकारों से विमर्श पर ‘ भारतीय दलित साहित्य : आंदोलन और चिंतन ‘ ( 2015 ) थी . बांग्ला दलित साहित्य के अध्ययन पर आधारित चौथी किताब थी बांग्ला दलित साहित्य : सम्यक अनुशीलन ( 2016 ) . दलित महिलाओं के अनुभवों को आधार बनाकर एक पूरी सीरीज पर बजरंग बिहारी ने अनीता भारती के साथ मिलकर काम किया . उनकी कवितायें , उनकी कहानियाँ एवं आलोचना आधारित तीन अलग अलग किताबें यथास्थिति से टकराते हुए : दलित स्त्री से जुडी कहानियां ( 2012 ) , यथास्थिति से टकराते हुए : दलित स्त्री जीवन से जुडी कवितायें व आलोचना छपकर आईं . अभी हाल ही में 2020 में उनकी किताब ‘ केरल में दलित ‘ आई . जिसे पूरा करने में उन्हें सात साल लगे . वर्तमान में बजरंग बिहारी तिवारी तमिलनाडु में दलितों पर काम कर रहे हैं . बंगाल , केरल , तमिलनाडु जैसे राज्यों पर काम करने में भाषा आडे आ जाती है . इसलिए तथ्यों को जुटाने एवं उनके विश्लेषण में वक्त ज्यादा लग जाता है . दलित स्त्री लेखन और आंदोलन एवं कविता की भाव यात्रा पुस्तकें भी शीघ्र ही आने वाली हैं . वे मासिक पत्रिका कथादेश में 2004 से नियमित रूप से लिख रहे हैं .
देश में कहीं भी दलितों का उत्पीडन हो विशेषकर चर्चित प्रकरणों की वास्तविकता की तहकीकात के लिए बजरंग बिहारी तिवारी उस जगह पहुंच जाते हैं . सभी पक्षों से मिलते हैं उनसे चर्चा करते हैं . घटनास्थल पर जाते हैं . प्रकरण पर पुलिस का पक्ष भी जानने की कोशिश करते हैं ताकि घटना की सटीक विवेचना हो सके .
दलितों पर नौ किताबें लिखने वाले बजरंग बिहारी तिवारी विकट हालात से जूझ रहे हैं . क्योंकि उनके ब्राह्मण होने के कारण दलित समाज ने आज भी उन्हें नहीं स्वीकारा है . दलितों पर लेखन के कारण घर परिवार के लोग भी रुष्ट रहे . घर पर भी अनबन सी रही . पिता का हालांकि 2018 में निधन हो गया है लेकिन उनको लगता था कि बेटा भटक गया है . बजरंग को लेकर मरते समय तक उनके पिता को इस बात का मलाल रहा .
दलित होना क्या अभी भी इस देश में गुनाह है इस सवाल के जवाब पर बजरंग बिहारी तिवारी दो राज्यों के उदाहरण के साथ हवाला देते हैं . पंजाब में एक दलित बेटी के साथ बलात्कार होता है . रिपोर्ट करने पर कार्यवाही तो नहीं हुई अलबत्ता बलात्कारियों ने उसके पिता के दोनों हाथ व एक पैर काट डाला . कोर्ट से भी सुबूतों के अभाव में आरोपी बरी हो गए . दूसरी घटना तमिलनाडु के मदुरै की है . जहां घर के बाहर चारपाई पर बैठे दलित के सामने से एक ब्राह्मण गुजरा . दलित उनके सम्मान में चारपाई से खडा नहीं हुआ . क्रुद्ध ब्राह्मण ने वापस आकर उसके मुंह में मल भर दिया .
उनके अनुसार देश में जातिवाद अभी भी मौजूद है . ढीला तो पडा है लेकिन यह कहना जातिवाद खत्म हो गया है अतिश्योक्ति से कम नहीं है . उनके अनुसार केरल के ई एस नम्बूदरीपाद को छोड दिया जाए तो उनके अनुसार देश में दलित राजनीति और दलित साहित्यकार आपस में सहज नहीं हैं . जितने भी बडे दलित राजनेता हैं वे दलित साहित्यकारों को भाव नहीं देते उनसे दूरी रखते हैं .
एकला चलो की तर्ज पर दलितों के लिए काम करने वाले बजरंग बिहारी तिवारी को अप्रैल में इस वर्ष का रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान प्रदान किया जा रहा है . भले बजरंग को घर परिवार से उपेक्षा मिली . दलित समाज ने उन्हें बाहरी मान स्वीकार नहीं किया इसके बावजूद बजरंग बिहारी तिवारी दलितों के लिए जिस समर्पण भाव से काम कर रहे हैं आज नहीं तो कल समाज उनके अवदान को जरूर नोटिस करेगा .

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