सतना – 21 वी सदी का यह वह दौर है जब मानव चांद में बसने की तैयारी कर रहा है,ठीक उसी दौर में सतना जिले की मझगवां जनपद पंचायत की कौहारी ग्राम पंचायत अंतर्गत लामा टूटैला के वासिंदे एक अदद सुगम रास्ते की बाट जोह रहे है। इस गांव का दुर्भाग्य यह है कि दो नदियों के बीच में लामा टूटैला गाँव मे बसे बाशिन्दों की पुकार न तो जन प्रतिनिधियों को ही सुनाई पड़ रही है और न ही इनकी परेशानिया प्रशानिक अधिकारियों को दिखाई दे रही है, नतीजतन बरसात के दिनों में ग्राम वासियों को उफनाती नदियों के बीच में रस्सियों के सहारे चार पाई में बीमार व गर्भवतियों को खतरों का सामना करते हुए जान जोखिम में डालकर नदी को पार करना पड़ता है।
नदी में तैरते दिख रहे यह बूढ़े बच्चे नहाने का उपक्रम नहीं बल्कि तैर कर नदी के इस पार से दूसरे पार जाने का प्रयास कर रहे है। यह वो लोग है जो बिकास नाम की चिड़िया को सुनते तो आएं हैं, लेकिन देखने के लिए इनकी आखे आज भी तरस रही हैं।सरकारी विकास योजनाओं का नाम सुनते तो है, लेकिन वह बिकास आज तक इनकी चौखट में नही पहुंच सका। दुर्भाग्य से यह तस्वीरें सतना जिले के मझगवां ब्लॉक अंतर्गत लामा टूटैला गाँव की है सतना और पन्ना जिले की सीमाओं के बीच बसने वाले इस गाँव में भाषणों से विकास की गंगा बहाने वाली सरकारों के नुमाइंदों ने या तो चुनावी वादों और बोट मांगने के समय ढंग से इसे निहारा नही या फिर इस गांव को दूसरे ग्रह का गांव समझकर निहारना जरूरी ही नही समझा।
दुर्भाग्य का दंश झेलने के साथ ही नेताओं और अफसरों के निकम्मेपन का अभिशाप भोगने वाले इस गाँव की जानकारी लगने पर जब हमारी मीडिया की टीम यहां पहुंची तो वहां के नज़ारे व ग्रामीणों की बात सुनकर ही दंग रह गए।ग्रामीणों ने बताया की यहाँ ना तो शासन की किसी योजना का लाभ मिल रहा है और ना ही कोई सुनने वाला है। नेता चक्कर लगा कर बोट तो मांग लें जाते है लेकिन वापस कोई खबर लेने नहीं आता!