राकेश कुमार अग्रवाल
बीते चार वर्षों से बोर्ड परीक्षायें भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं के केन्द्र में हैं . देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोर्ड परीक्षाओं के नजदीक आते ही छात्र छात्राओं से परीक्षा पर सीधे चर्चा करते हैं . किसी प्रधानमंत्री का छात्रों से सीधे संवाद का यह सर्वथा पहला व अभिनव प्रयोग था . जब एक प्रधानमंत्री बच्चों के बहाने पूरे शिक्षा तंत्र से सीधे मुखातिब होता है . इसका मकसद बच्चों के मन से परीक्षाओं को लेकर उनके अंदर पनपने वाले भय से उन्हें निजात दिलाना रहा है . ताकि अंकों की इस दौड में पिछडने पर भी वे कोई गलत कदम न उठा लें .
बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र छात्राओं में जितनी बेचैनी होती है उससे कम बेचैनी उनके अभिभावकों को नहीं होती . शिक्षण संस्थाओं एवं कोचिंग संस्थानों की साख भी बोर्ड परीक्षा के परिणामों पर टिकी होती है . इसलिए बोर्ड परीक्षाओं का हौव्वा हमेशा से रहा है . लेकिन सवाल यह उठता है क्या यह जीवन की पहली परीक्षा है ? या केवल पढने वाले छात्र ही परीक्षायें देते हैं ? या जो अनपढ और अशिक्षित हैं उन्हें जीवन में परीक्षायें नहीं देनी पडतीं ?
दरअसल देश के गौरवशाली अतीत और उससे जुडे प्रसंगों को याद करें तो ऐसे दर्जनों प्रसंग मौजूद हैं जिसमें उस दौर के नायकों को समय समय पर कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पडा . राजा हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी तारामती के प्रसंग को याद करिए जब अपने ही बेटे के अंतिम संस्कार के समय भी उन्हें संस्कार करने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि राजा हरिश्चन्द्र की पत्नी ने श्मसान स्थल का कर नहीं चुकाया था .
धर्मराज युधिष्ठर और यक्ष से जुडे संवाद को याद करिए . सरोवर से पानी लेने के लिए जैसे ही युधिष्ठर ने अपनी अंजुरी पानी में डाली थी यक्ष ने यह कहकर उन्हें रोक दिया था कि इस सरोवर पर उनका अधिकार है . पहले उनके सवालों के जबाब देने होंगे . तभी आप सरोवर का पानी ले सकोगे . सभी प्रश्नों के जबाव से संतुष्ट होने के बाद यक्ष ने धर्मराज से प्रसन्न होकर उनके अन्य भाईयों को भी जीवित कर दिया था . यह धर्मराज की यक्ष द्वारा ली गई एक कठिन परीक्षा थी . नचिकेता और यमराज प्रसंग भी कमोवेश एक तरह की परीक्षा का ही वाहक बनता है जिसमें नचिकेता तीन दिन और तीन रात यमराज के महल के बाहर इसलिए खडे रहे क्योंकि उनके पिता ने उनसे गुस्से में उन्हें यमराज को दान देने की बात कह दी थी . पिता की बात खाली न चली जाए इसलिए उन्होंने यमराज के महल के बाहर उनका तीन दिन इंतजार किया था जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने उसे तीन वर मांगने को कहा था . राजा बली की दानशीलता की परीक्षा वामनावतार ने ली थी . जिसमें तीसरे वरदान में उन्होंने खुद को उनके समक्ष आत्मार्पित कर दिया था . कर्ण द्वारा अपने कवच कुंडल इन्द्र को देना इसी परीक्षा का हिस्सा था . और तो और लंका से वापस आने के बाद अपने सतीत्व को साबित करने के लिए सीता को भी अग्निपरीक्षा देनी पडी थी .
देखा जाए तो इंसान का परीक्षा से जीवन भर साबका रहता है . कोई भी इससे बच नहीं सकता है . दरअसल परीक्षा इंसान के धैर्य , विपरीत परिस्थितियों से जूझने की उसकी क्षमता , उसके बुद्धि कौशल और विवेक का एक आकलन होता है कि परीक्षार्थी अभी परिपक्व हुआ या नहीं या अभी भी उसकी तैयारी में उसके तराशने में कोई कमी रह गई है . क्योंकि जीवन के ताने बाने में सुख दुख दोनों होते हैं . सुख में इंसान इतराए बिना नहीं मानता और दुख आने पर अपनी किस्मत को कोसने लगता है . ईश्वर को भला बुरा कहने लगता है . जहां तक स्कूली परीक्षा का सवाल है यह स्टूडेंट की स्मरण शक्ति और उसकी ग्रहण करने की दक्षता का एक सामान्य परीक्षण होता है . जरूरी नहीं है कि जिन्होंने नंबरों की रेस में बाजी मारी वे जीवन में सबसे सफल व्यक्ति बनकर उभरे हों . यह परीक्षा स्टूडेंट का प्रादेशिक या फिर राष्ट्रीय स्तर पर एक मोटा मोटा आकलन है कि बच्चे का अध्ययन का स्तर क्या है .
बोर्ड परीक्षा को लेकर बीते एक दशक में देश में काफी हायतौबा हुई है क्योंकि तमाम किशोरवय छात्रों की असामयिक मौत या आत्महत्या के पीछे बोर्ड परीक्षाओं को जिम्मेदार ठहराया गया . परीक्षा की तैयारी कोई वन डे वंडर नहीं है न ही इसका कोई शार्टकट है . पूरे साल सतत अध्ययन व तैयारी ही इसका एकमात्र रास्ता है . बेहतर तो यह होता कि स्कूल , कालेजों की स्थानीय परीक्षाओं को बोर्ड परीक्षाओं के मानदंडों के अनुरूप उसी पैटर्न पर कराया जाए . एवं कक्षा पांच एवं कक्षा 8 की परीक्षाओं की परीक्षा भी बोर्ड के पैमाने पर संपादित की जानी चाहिए . इससे छात्रों के मध्य से पढाई और परीक्षा का भय स्वत : जाता रहेगा . होम एक्जाम को मजाक का विषय बनाकर संपादित कराने का ही परिणाम है कि बोर्ड परीक्षा भौकाल बन जाती है . जरूरत है शुरुआत से चूडी कसने की .
परीक्षाओं से डरना मना है
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