पहले राशन माफिया को सुधारिये साहब!

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राशन की दुकान पर लिखवाई गई शानदार इबारत
  • पूर्ति विभाग व कोटेदार छीन रहे गरीब के मुंह का निवाला

  • भाजपाइयों में जारी है दिखावे की परंपरा

धर्मक्षेत्र। बहुत साल पहले जनसंघियों के पास इंदिरा गांधी की सरकार को चिढाने के लिए एक नारा हुआ करता था। ‘खा गई शक्कर पी गई तेल यह देखो इंदिरा का खेल‘ लेकिन अब यही नारा संधियों पर प्रदेश में सटीक बैठता दिखाई दे रहा है। शक्कर तो कोटे से आम आदमी के लिए लगभग विदा हो चुकी हैं और गेंहू व चावल को छोड़कर बाकी की सामग्री आती ही नहीं, अब ऐसे में लगता है कि अधिकारी खुद ही राशनिंग माफिया को गरीबों का अन्न डकारने के लिए पूरी जिम्मेदारी दे चुके हैं। लिहाजा कोरोना के कारण रोजगार से वंचित समाज की अंतिम पंक्ति का व्यक्ति अब मरने की कगार पर है। इस विपदा के समय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गरीबों का राशन बंटवाए जाने के आदेश के बाद राज्यमंत्री, सांसद, विधायक व जिलाध्यक्ष सहित अन्य भाजपाईयों को अपने फोटो खिचंाने का अवसर जरूर मिल गया, जिससे सोशल मीडिया के उनके एकाउंट उनके इस नेक कार्य से फिल अप होते दिखाई दे रहे है। चार दिन पहले बांदा आए मुख्यमंत्री ने जैसे ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का जिक्र कर भाजपा के नेताओं से उन्हें बंटवाने के लिए कहा तो सभी के चेहरे इस बात को लेकर खिल उठे कि एक बड़ी समाजसेवा का काम उन्हें मिल गया। वैसे राज्यमंत्री, सांसद, जिलाध्यक्ष भाजपा सहित अन्य भाजपाई इस कार्य का पुण्य लाभ लेते तो जरूर दिखाई दिए, पर सच्चाई यह है कि उन्हें वास्तव में यह नही मालूम कर सके कि वह जिस राशन विक्रेता के यहां से गरीबों का कल्याण कर रहे हैं, वह कितना अधिकारियों का भला कर अपनी जेब भर रहा है।

इस समय पूर्ति विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिली भगत से चित्रकूट जिले में गरीबों के लिए बटने वाले अनाज में भारी मात्रा में खेल हो रहा है। अधिकारियों व राशन माफियाओं की इस जुगलबंदी का खेल देखकर नटवरलाल भी शरमा जाएं। आपको दिखाते हैं चित्रकूट जिले के सीतापुर के कुछ कोटेदारों की वास्तविक तस्वीर। एक या दो को छोड़ दे ंतो लगभग हर कोटेदार ने अपना कोटा गली व कूचों के अंदर केवल इस लिए खोल के रखा है कि वह उसके पास आने वाले ग्राहक को भली प्रकार से लूट सके। अधिकारी जल्दी न पहुंच सके और उनकी घटतौली की दुकान चलती रहे। विभाग ने यह देखने की जरूरत कभी नही समझी कि राशन का वितरण करने वाला वास्तव में इस वितरण करने लायक भी है या अथवा उसे कोई गंभीर बीमारी है। ऐसे गंभीर बीमारों को बचाने का काम अधिकारी भली प्रकार से करते नजर आते हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि हर कोटेदार के हर कार्ड में पूर्ति विभाग से लेकर एफसीआई के गोदाम प्रभारी का हिस्सा तय होता है। गल्ला मिलने के पूर्व ही गोदाम प्रभारी हर कोटेदार को निर्धारित क्षमता से कम गल्ला काटकर देता है। अब गल्ला काटकर मिलना इस बात की गारंटी हो जाता है कि श्राषन विक्रेता चाहे सफेद करे या स्याह उसे कोई बोलने वाला तो है नही। लिहाजा हर कार्ड पर गल्ला देना वह मुनासिब नही समझता । सूत्र बताते हैं कि राशन विक्रेता केवल उन लोगों को ही गल्ला देता है जिनके बारे में वह जानता है कि इससे भविष्य में खतरा हो सकता है। गरीबों को राशन चार बार अंगूठा लगवाने के बाद एक बार दिया जाता है।

धर्मनगरी के अधिकांश राशन दुकानदार कहते हैं कि भइया कमाई तो कर्वी व अन्य गांवों में है। यहां पर तो जितना तीन पांच करके कमाया जाता है, वह अधिकारी की पत्नी व रिश्तेदारों को घुमाने में खर्च करना पड़ता है, कमीशन तो कोई छोड़ता नही है।

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