चित्रकूट। राम के भव्य मंदिर निर्माण में लगे दो विशेष संतों की शिष्या साध्वी कात्यायनी गिरि ने श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में स्थित ब्रहमकुंड के शनि मंदिर में सातवें दिन की श्री राम कथा के दौरान मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू को जिंदा रखने के लिए तमाम गुर बताए। उन्होंने कहा कि प्रकृति का संरक्षण करना हर एक व्यक्ति का दायित्व है। उन्होंने कथा के दौरान बताया कि महिर्षि अत्रि का अर्थ है जो इन तीनों गुणों से उपर उठ चुका है। इनका ब्रहम से सीधा संबंध है। चित्रकूट का इसी लिए इतना महत्व है। जब जीव अत्रि जैसा होगा, जब उसकी बुद्वि अनसुइया जैसी होगी। असुइया का अर्थ जलन, ईष्या या द्वेष न हो। जब यह गुण होंगे, तभी त्रिदेव पुत्र होते हैं। राम जी स्वयं दर्शन करने जाते हैं, वह राम के पास नही आए। जिसका संरक्षण स्वयं अत्रि अनुसुइया करते थे। मन से अनुसुइया ने मंदाकिनी को प्रकट किया। उनका संरक्षण किया।
स्वार्थ में भरकर कभी हम प्रकृति का कुछ नही कर सकते। स्वार्थ में भरकर व्यक्ति अपने भाई बहन का नही हुआ, मां बाप का नही हो रहा तो कैसे इन नदियों का पुनर्जीवन होगा।
श्री राम वन गमन का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हुए उपस्थित श्रोताओं की आंखों में आंसू ला दिए। उन्होंने बताया कि राजा दशरथ ने केकेई को बहुत समझाने का प्रयास किया। कहा कि अगर तुम यह वचन लोगी तो मेरा जीवन समाप्त हो जाएगा। स्वार्थ रूपी मंथरा ने दुर्बुद्वि रूपी केकेई के कान भर दिए। सीता जो भूमि सुता है। माता सीता प्रकृति या भक्ति का स्वरूप हैं तो लक्ष्मण वैराग्य का स्वरूप है। सात्विक, राजसिक व तामसिक तीनों गुणों के बारे में तात्विक विवेचना कर बताया कि कुंभकर्ण तमसीगुणी है। आलस्य प्रमाद खाता और सोता रहता है।
रावण रजोगुणी है। वह जाता है, सोचता भी है। वह शिव भक्त ब्राहमण है। राक्षस क्यों है, इसलिए वह सोचता है कि ज्यादा से ज्यादा संसार के भोगों का भोग कर लूं। रजोगुण में स्वार्थ भाव होता है। विभीषण सत्व गुण का प्रतीक है। वह केवल भजन करना चाहता है। भगवान के दर्शन पाना चाहता है। भगवान के कार्य में लगना चाहता है। इस दौरान कथा की व्यवस्था करने का काम सत्ता बाबा, अखिलेश अवस्थी, संत धर्मदास, गंगा सागर महराज व रामरूप पटेल कर रहे हैं।