न्यूजडेस्क – सूबे के कानपुर में 8 जाबांज पुलिस के जवानों का नरसंहार करने वाले दुर्दान्त अपराधी का आखिर कर किस्सा एनकाउंटर के साथ खत्म हो गया है, विपक्ष एनकाउंटर पर सवाल पूंछ रहा है मगर आम जनमानस से लेकर हर तबका इसको कानपुर के शहीदों का इंसाफ मान रहा है, इस पूरे ताने बाने पर वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर जो लिखा है आइये उसपर नजर डालते हैं।
महेंद्र सिंह सोशल मीडिया साइट्स पर लिखते हैं —-
विकास दुबे (3 जुलाई 2020 से 10 जुलाई 2020) शातिर या मनबढ़
योगी के फैसले से जनमानस तो ख़ुश मगर असली गुनहगार अब भी दूर ?
विकास दुबे उर्फ विकास पंडित का नाम कानपुर के आसपास अगलबगल वालों के लिए या नेताओं के लिए नया नही था लेकिन देश में इतना चर्चित भी नही था कि कभी इस पर कोई बहस हो। पुलिस को देखकर अपराधी रास्ता बदल लेते हैं लेकिन विकास में अचानक 3 जुलाई की रात को पुलिस से सीधी मुठभेड़ की हिम्मत कैसे आई ये सवाल अब भी अधूरा सा है। 3 जुलाई से 10 जुलाई तक में विकास के हजारों किस्से हवा में तैर गए।
युवावस्था से था अपराध का शौक
विकास दुबे गिरोह बना कर का युवावस्था से ही अपराध करने लगा था। दर्जनों मुकदमो में मुलजिम था। लेकिन पहली बार 1990 में एफआईआर हुई थाने में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री की हत्या करने की। लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि थाने के अंदर हत्या करने के बाद भी उसके खिलाफ यही खाकी पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नही कर पाई जिससे ये छूटा और मनबढ़ होता चला गया। आखिर में 3 जुलाई की रात वारदात कर के ये सुर्खियों में आ गया।
उस रात के सच को जानना समझना है तो लगता है कि शायद इस इनकाउंटर की कहानी 2 दिन पहले से रची बुनी गई होगी। तमाम साथी और मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि रिश्तेदार राहुल तिवारी एक जमीन के मामले में इससे उलझ गए जिसमे कभी स्थानीय मीडिया द्वारा हस्तक्षेप (सामान्य मामलों में हाईलाइट लोगो की छोटे बड़े मंझोले अखबार खबरे जरूर करते हैं) नही किया गया। राहुल द्वारा सीधे थाने का रुख किया गया। थाने के एसओ विनय तिवारी ( जिसे बाद में विकास का ही मुखबिर कहा गया ) ने मामले में विकास से बात की। अड़ियल विकास ने एक नही सुनी।
विनय तिवारी की भूमिका संदिग्ध
यहां एक बात और समझने वाली है कि विनय तिवारी मृतक आश्रित में नौकरी पाए थे और सीधे किसी से कभी टकराना नही चाहते थे। कई बार सीओ ने उन्हें वर्दी का सम्मान न करने पर फटकारा उच्चाधिकारियों को उनके तमाम मामलों में संलिप्तता के खिलाफ चिट्ठी लिखी। विनय तिवारी को लगने लगा होगा कि सीओ साहब उनके पर कुतर कर ही मानेंगे। तो क्या विनय ने ही सीओ समेत आठ पुलिस वालों की हत्या की साजिश रची या किसी और ने विनय को मोहरा बनवाया ?
इधर न समझ मे आने वाली बात एक और भी है कि राहुल विकास दुबे का रिश्तेदार था और उसका दुस्साहस और गैंग भी ठीक से जानता था। फिर किसके आश्वासन पर उसने दरिंदे से टकराने की हिम्मत दिखाई ? जांच इसकी भी जरूरी है। थाने में एप्लिकेशन दी तो वहां के एसओ विनय तिवारी ने विकास को राहुल के सामने समझाने की भी कोशिश की जबकि वो पहले से जानता था कि विकास जिद्दी है और नही मानेगा। हो सकता है कि उसने राहुल को उकसाकर आगे उच्चाधिकारियों तक पहुचाने के लिए ही विकास दुबे को समझाने की कोशिश की हो जिससे उसे कप्तान के सामने पीड़ित बना कर पेश कर सके। यहां पर ऐसा लगता है कि विनय तिवारी को विकास दुबे की नासमझी पर पूरा भरोसा था।
खैर विनय ने राहुल से कहा होगा विकास दुबे मेरी तो सुनता नही है आप कप्तान साहब से जांच सीओ साहब को दिलवा दो। और हुआ भी वही। सीओ साहब जांच मिलते ही दौड़ पड़े अपनी फौज लेकर विकास के गांव की तरफ।
प्लान किसका फंसा कौन ?
अब यहां सवाल ये भी है कि सीओ और विकास के पहले की कोई बड़ी झड़प कभी सोशल मीडिया प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर नही आई तो क्या विकास भाग नही सकता था ? छोटी मोटी बहस अक्सर नेताओ गुंडों से पुलिस की होती हैं। उसको पता था कि बड़े से बड़े मामले में अन्ततः कोई सामने गवाही देने नही आएगा और वो फिर बरी हो जाएगा। तमाम मुकदमो के बावजूद किसी बड़े मामले में उसका वारंट भी नही था। उसको फायर की जरूरत क्यों पड़ी ? क्या उसको उसकी गिरफ्तारी के बारे में बताया गया था ? हो सकता है सीओ को बताया गया हो कि बदतमीज है ज्यादा फोर्स लेके चलने में ही उस पर दबाव बनेगा और उसको गिरफ्तार कर पाएंगे। और उसे बताया गया हो कि साहब इनकाउंटर करने आ रहे हैं। जाहिर है उसने जवाब में भागने का रास्ता पूछा होगा तो उसको डरवाया गया होगा कि चारो तरफ फोर्स लगी है। अब अगर वो शातिर होता तो टकराने के बजाय भेष बदल कर भागने की कोशिश करता उसकी नासमझी और जिद का फायदा किसे हुआ ? क्या कोई और बादशाहत चाहता था ?
अब भी हैं बहुत सवाल
पुलिस की किरकिरी लगातार हो रही थी इसलिए उसने खूंखार और उसके साथियों को मार कर रिजल्ट दे दिया। विकास जैसे न जाने कितने मनबढ़ नासमझ दूसरो की साजिश का शिकार होते हैं। अपराध दर अपराध करते हैं। उसकी चकाचौंध से होने वाली कमाई को देख कर कितने छुटभैय्या जेल की सलाखों में कैद हैं। मगर उन लोगो पर आंच नही आती जिन्होंने इन्हें पैदा किया इस्तेमाल किया फिर फेंक दिया। योगी सरकार अपराध और अपराधियों को लेकर सख्त है। सत्ता का फैसला सराहनीय है। लेकिन एक जांच खाकी समेत राहुल और उनके संरक्षण दाताओं (नेता/अधिकारी/मंत्री) की भी होनी चाहिए कि जिसके खिलाफ कोई मुह नही खोलता था उसके खिलाफ इस ने किसके इशारे पर टकराने की हिम्मत जुटाई ? जिससे अगले डॉन का पता भी लग सके और उसे बढ़ने से रोका जा सके।