✍️राकेश कुमार अग्रवाल
सजीवों में केवल इंसान ही इकलौता ऐसा प्राणी है जिसने तन ढकने के लिए ढेरों जतन किए . यही नए नए प्रयोग आज फैशन स्टेटमेंट बन गए हैं .
लाखों वर्षों की विकास यात्रा में सजीवों में पशु, पक्षी , जानवर अभी भी प्राकृतिक अवस्था में रहते हैं . लेकिन इंसान ने पत्तों व जानवरों की खाल लपेटने से लेकर कपास की खेती से लेकर कपडों के विकास तक लम्बी यात्रा तय की है .
जिस तरह से आग और पहिए के आविष्कार को सबसे महत्वपूर्ण खोजें माना जाता है उसी प्रकार कपडे के आविष्कार को मानव सभ्यता की सबसे क्रांतिकारी खोजों में शुमार किया जाता है . नंगेपन या तन को ढकने से शुरु हुआ यह कन्सेप्ट व्यक्ति की त्वचा को धूल , मिट्टी से बचाने , सभी मौसमों सर्दी , गर्मी , बरसात से बचाने से लेकर शुरु हुआ था .
सैकडों वर्षों से इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी , कपडा और मकान रहा है . यही कपडा तन ढकने के साथ इज्जत का सवाल भी बना . लगभग पांच हजार वर्ष पहले द्रौपदी का चीरहरण भी बदन से कपडा हटाकर उसे सरेआम बेइज्जत करने से जुडा था .
लेकिन सिलाई मशीन के आविष्कार ने तो इंसानी पहनावे को ही पूरी तरह नए मायने दे दिए . अब इंसान का कपडे पहनने का मकसद महज तन ढकना नहीं बल्कि उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को उभारकर उसे और प्रजेंटेबल बनाना होता है .
1755 में मानव सभ्यता ने नई करवट ली जब ए .वाईसेन्थाल ने पहली सिलाई मशीन पेश की . इस मशीन से थोडी बेहतर कार्यप्रणाली वाली मशीन 1790 में थामस सेंट ने विकसित की . इसके बाद भी सिलाई मशीन को लेकर लगातार प्रयोग और पेटेंट होते रहे .
9 जुलाई 1819 को जन्मे एलियास होव जिन्हें फैशनेबल कपडे तैयार करने वाली सिलाई मशीन का आविष्कारक माना जाता है ने 10 सितम्बर 1846 को अपनी विकसित अत्याधुनिक सिलाई मशीन का पेटेंट कराया . 1835 में अमेरिका में टैक्सटाइल कंपनी में बतौर प्रशिक्षु उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की . लेकिन एलियास के दिमाग में तो कुछ और चलता रहता था . 1846 में उन्हें सिलाई मशीन से लाकस्टिच डिजाइन के लिए पहले अमेरिकी पेटेंट पुरस्कार से नवाजा गया .पौने दो सौ वर्ष पहले आलम यह था कि उनकी बनाई सिलाई मशीन को खरीदने के लिए अमेरिका में कोई तैयार नहीं था . बाद में उन्होंने उस मशीन को इंग्लैण्ड में बेचने का फैसला लिया . काफी मशक्कत के बाद 250 पाउण्ड में उस सिलाई मशीन को इंग्लैण्ड में बेचने में वे सफल रहे .
इन्हीं एलियास होवे ने बाद में 1851 में पैंट में लगाई जाने वाली जिपर का आविष्कार किया .
कपडा उद्योग सबसे पुराने उद्योगों में शुमार किया जाता है . ब्रिटेन को आधुनिक वस्त्र उद्योग का जन्मदाता माना जाता है . क्योंकि रुई से धागा बनाने की मशीन का आविष्कार वहीं हुआ था . ब्रिटेन से ही भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में धागा बनाने की मशीनों का निर्यात हुआ . दरअसल वस्त्र अमीर गरीब हर कोई पहनता है इसलिए इसे दुनिया के सबसे चलने वाले उद्योग में शुमार किया जाता है . मशीन पर अनपढ व्यक्ति भी काम कर सकता है .
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का पहला कारखाना 1818 में कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लोस्टर स्थान पर लगाया गया था . 1851 में मुम्बई एवं इसके बाद 1858 में देश के एक दर्जन से अधिक शहरों में सूती वस्त्र के कारखाने खोले गए .
कपास उत्पादन के मामले में भारत का पूरे विश्व में दूसरा स्थान है . औद्योगिक उत्पादन में वस्त्र उद्योग का हिस्सा 14 प्रतिशत है . सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत तथा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में इसका हिस्सा 13.5 प्रतिशत है . भारत का कपडा उद्योग कितना विशाल है इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि वर्ष 2008 – 09 में देश में 55 अरब वर्ग मीटर कपडा तैयार किया गया था .
कपडे सिलने वालों की विकास यात्रा दर्जी से लेकर फैशन डिजायनर तक पहुंच गई है . जो इंसान का पहनावा व लाइफ स्टायल तय करने लगे हैं . रोज ब रोज नए ट्रेंड के परिधान फैशन इंडस्ट्री को हमेशा जवान बनाए रखते हैं . और इसका पूरा श्रेय उस सिलाई मशीन को जाता है जिसकी बदौलत यह संभव हो सका . देश में 1935 में पहली बार सिलाई मशीन का निर्माण हुआ था . आज दुनिया में 2000 से अधिक प्रकार की सिलाई मशीनें उपलब्ध हैं . कपडे से लेकर चमडे सिलने वाली मशीन है . बटन टांकने , काज बनाने , कसीदा करने जैसे तमाम काम सिलाई मशीन से होने लगे हैं . हाथ से , पैर से चलने वाली सिलाई मशीन अब बिजली से भी चलने लगी है .
महज 48 वर्ष की अल्पायु में 1867 में 3 अक्टूबर को एलियास होव का निधन हो गया . लेकिन वस्त्र उद्योग और फैशन उद्योग को दिया गया उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता .