बंगाल में विधानसभा चुनावों की देहरी पर 356 का शिगूफा

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राकेश कुमार अग्रवाल

पश्चिमी बंगाल में विधानसभा चुनाव देहरी पर दस्तक दे रहे हैं इसी बीच राजनीतिक गलियारों में बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की संभावना का शिगूफा जेरे बहस है . सवाल यह है कि दो सौ सीटें जीतने का दावा करने वाली पार्टी भाजपा क्या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश का रिस्क तब लेगी जब स्वयं ममता बनर्जी राज्य में धारा 356 के इस्तेमाल की केन्द्र सरकार को चुनौती दे रही हैं .
ऑस्ट्रेलिया के साथ जब भी क्रिकेट सीरीज शुरु होती है वहां की टीम विपक्षी टीम पर दबाव बनाने के लिए स्लेजिंग शुरु कर देती है ताकि खिलाडियों एवं विपक्षी टीम पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जा सका . कमोवेश यही हालात आजकल राजनीति के हो गए हैं . जब सत्ता की लडाई लड रहे प्रमुख दल दूसरे दल पर बढत बनाने के लिए कोई भी हथकंडे का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते हैं . साढे चार साल के शासन में राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत नहीं आई फिर अचानक बंगाल में ऐसा क्या हो गया जिससे राष्ट्रपति शासन की चर्चा बंगाल से लेकर दिल्ली तक सरगर्म है . राज्य में 10 से 12 दिसम्बर के बीच में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के दौरान दक्षिण 24 परगना जिले में उनके काफिले पर हुए हमले के अलावा उत्तर 24 परगना जिले एवं बर्दवान जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं पर प्राणघातक हमले हुए . कानून व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम रहने के मुद्दे को राष्ट्रपति शासन का बडा आधार बनाया जा रहा है . क्योंकि केन्द्र सरकार व भाजपा पार्टी दोनों बंगाल में हिंसा की राजनीति को लम्बे समय से निशाना बनाती आई हैं . भाजपा के अनुसार बंगाल में ममता शासन में अब तक उसके 89 पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है . एक तरफ भाजपा का एक धडा राज्य में राष्ट्रपति शासन की वकालत कर रहा है वहीं ममता बनर्जी भी केन्द्र को राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए ललकार रही हैं .
ऐसा नहीं है कि बंगाल में इसके पहले कभी राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया . राज्य में आजादी के बाद से अब तक पांच बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है . सबसे पहली बार 1 जुलाई 1962 को राज्य के मुख्यमंत्री डा. विधानचंद्र राय के निधन पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया था . इसके बाद राज्य में 20 फरवरी 1968 को 1 वर्ष के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था . मार्च 1970 में तीसरी बार व चौथी बार भी इसी वर्ष दोबारा राष्ट्रपति शासन लगा . पांचवीं बार 30 अप्रैल 1977 को लगभग 50 दिन के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था . लेकिन कानून व्यवस्था को आधार बनाकर राज्य में कभी भी राष्ट्रपति शासन नहीं लगा .
2014 से जब से नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं देश के 4 राज्यों में 7 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है . महाराष्ट्र , जम्मू कश्मीर व उत्तराखंड में दो दो बार व एक बार अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग चुका है .
राष्ट्रपति शासन संविधान के अनुच्छेद 356 के इस्तेमाल से लगाया जाता है . जिस राज्य में संविधान के अनुरूप शासन न चल रहा हो , राज्य में अशांति हो , दंगे हो रहे हों . किसी भी दल के पास सरकार चलाने के लायक बहुमत न होने की स्थिति में राज्य के राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करते हैं . आजादी के बाद से देश में अब तक देश के विभिन्न राज्यों में 126 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है . प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में तो रिकार्ड तोड 49 बार राष्ट्रपति लगाया गया . 30 अप्रैल 1971 व 17 फरवरी 1980 ऐसी तिथियां हैं जिन पर देश के 9- 9 राज्यों में एक साथ राष्ट्रपति शासन लगाया गया था . राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले को लेकर अपदस्थ सरकारें अब न्यायालयों की शरण में जाने लगीं हैं ऐसा भी हुआ है जब न्यायालय ने राष्ट्रपति शासन को गलत ठहराया है . यही कारण है कि ममता बनर्जी केन्द्र सरकार को राष्ट्रपति शासन के लिए ललकार रही हैं . केन्द्र सरकार ममता बनर्जी को इस तरह का कोई मौका नहीं देना चाहती कि वह उसकी सरकार को निरंकुश ढंग से गिराए जाने के मुद्दे को लेकर जनता के बीच में जाएँ . क्योंकि निर्वाचित सरकार को धारा 356 लगाकर गिराने का फैसला अपदस्थ सरकार के लिए जनता की सहानुभूति का सबब बन जाता है . वह भी तब जब चुनावों की सांध्यवेला हो . राज्य में चुनावी माहौल गरमा चुका है . चुनाव आयोग होली पर्व के इर्द गिर्द राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू कर चुनावी तिथि का ऐलान कर सकती है . ऐसे में बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का दांव राज्य में भाजपा की चुनावी संभावनाओं की गणित पर भारी पड सकता है .
बंगाल में चुनाव पूर्व राजनीतिक समीकरण भी बनने लगे हैं . कांग्रेस और वाम दलों ने चुनावी गठबंधन पर सहमति जता दी है . ऐसे में इस गठबंधन को अनदेखा करना भाजपा व टीएमसी दोनों पर भारी पड सकता है . जहां तक ममता बनर्जी का सवाल है उनके साथ चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की रणनीति भी चुनावी तराजू के पडले पर तुलने के लिए तैयार है . यह चुनाव कांटे की लडाई का है . राजनीतिक दबाव बनाने के लिए तो बयानबाजियाँ अपनी जगह है लेकिन रणनीति के मोर्चे पर जिस पार्टी ने भी कोई चूक की उसकी चुनावी जीत की संभावनायें उतनी ही धूमिल हो जाएंगी और भाजपा राष्ट्रपति शासन लगाकर बंगाल में विपक्ष को एकजुट होकर उस पर हल्ला बोल का मौका तो कतई न देना चाहेगी .

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