भारतीय संस्कृति और दर्शन कहता है कि मनुष्य का जन्म सहजता से नहीं मिलता है . ८४ लाख योनियों को भोगने के बाद ही मनुष्य के रूप में हम आप इस धरती में जन्म लेते हैं . तभी तो लिखा गया है कि ‘ बडे जतन मानस तन पावा ‘ . फिर आखिर ऐसा क्या जीवन में घटित होने लगता है कि कोई भी व्यक्ति भावावेश में आकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है .
कहीं न कहीं इसके पीछे हमारी बुनियाद में कमजोरियां आई हैं जिसके चलते आत्महत्यायें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकडों की मानें तो दुनिया के किसी न किसी कोने में हर ४० सेकंड में कोई न कोई व्यक्ति स्वत: मौत को गले लगा रहा है . प्रत्येक एक लाख की आबादी में दस से ग्यारह लोग आत्महत्या कर रहे हैं .
# मुझे लगता है कि संयुक्त परिवारों का विघटन एक बडा कारण है देश में बढती आत्महत्याओं के पीछे . संयुक्त परिवार एक बडी छतरी थी जिसमें सुख और दुख साझा थे . सहजता से बुरा वक्त भी निकल जाता था और इस तरह के कदम उठाने की नौबत ही नहीं आती थी .
# कहते हैं कि हर एक फ्रेंड्स जरूरी होता है . दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे पास वर्चुअल फ्रेंड्स तो हजारों में हैं लेकिन रीयल फ्रेंडस उंगलियों पर गिनने की संख्या में नहीं है . फ्रेंड्स व्यक्ति के सुख दुख के सबसे बडे साथी होते हैं जो चेहरा देखकर भांप लेते हैं कि कहीं कुछ तो गडबड है .
# बडी बिडम्बना का विषय यह भी है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो मनोविकार से ग्रसित है उसे लगता है कि उसकी समस्या दुनिया की सबसे बडी समस्या है एवं इसके निराकरण का कोई इलाज नहीं है .
# सामाजिक ढांचा कमजोर हुआ है . कमाई की आपाधापी और अंधी दौड में अकेलापन , एकाकीपन बढा है . लोगों का एक दूसरे से वास्ता केवल समारोहों तक सिमट कर रह गया है .
# बच्चे की परवरिश के दौरान माता पिता बचपन में हर कदम पर उसके साथ खडे होते हैं लेकिन जैसे जैसे बच्चा बडा होता जाता है उसकी पेरेन्टस और फेमिली मेम्बर से दूरी बढती जाती है . जब उसे सबसे ज्यादा मेंटल और इमोशनल सपोर्ट की जरूरत होती है तब वह अपने को सबसे ज्यादा अकेला और तन्हा पाता है . ऐसे में अकसर किशोर और युवा गलत कदम उठा लेते हैं.
# अति महत्वाकांक्षा भी एक बडा कारण है जिसके चलते कम समय में ज्यादा पाना , क्षमता से अधिक पाने की लालसा भी ऐसे दोराहे पर ला खडा कर देती है जहां से वापसी का रास्ता नहीं होता .
# सहनशीलता की कमी सबसे बडा फैक्टर है जो इस तरह के गलत कदम उठाने को मजबूर करती है. छोटी छोटी बातों को जीवन मरण का विषय कतई नहीं बनाना चाहिए .
जब कभी लगे कि मानसिक रुग्णता बढती जा रही है अपनी फैमिली , अपने यार दोस्तों , पास पडोसियों से करीबियाँ बनाना शुरु कर दीजिए . खुलकर अपनी बात रखिए . छोटे बच्चों के साथ खेलिए उनके साथ वक्त बिताइए . मोटीवेशनल स्टोरीज , मोटीवेशनल थाॅट्स पढिए . याद रखिए बुरा वक्त हमेशा नहीं रहने वाला है . इसलिए कोई भी ऐसा कदम न उठाइए जो आत्मघाती हो . आप अवांछित नहीं हैं आपको इस दुनिया के रंगमंच पर अपना पूरा किरदार निभाए बिना जिंदगी दांव पर लगाने का कोई हक नहीं है .