बुन्देलखण्ड की अनूठी परंपरा है दीपावली में मौन चराना

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बुन्देलखण्ड की माटी में अभी भी पुरातन परम्पराओं की महक रची-बसी है। व्रत, पर्व त्योहार हो या लोक संस्कृति के अन्य उत्सव, यहां परम्पराओं के निर्वाह को छोड़ा नहीं गया है। दीवाली का पर्व देश में अलग-अलग स्थानों पर चाहे जिस ढंग से मनाया जाता हो। लेकिन, बुन्देलखण्ड की दिवारी अब भी समूचे देश में अनूठी है। इसमें गोवंश की सुरक्षा, संरक्षण व संवर्धन पालन के संकल्प मौन चराने का कठिन व्रत लिया जाता है।
बतादें कि ब्रज से शुरू हुई गोवर्धन पूजा पूरे देश में उत्सव की तरह मनाई जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें संकटों से उबारें। उसी आधार पर बुन्देलखण्ड के श्री कृष्ण के भक्त दीपावली को व्रत रखकर अगले दिन तिथि (परमा) को मौन व्रत रहकर हाथों मोर पंख लेकर नंगे पाव रहकर क्षेत्रीय के 12 गाँवों की परिक्रमा करके महोबा जनपद के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर काकुन सरकार मे पूजा पाठ आदि के उपरान्त उसी क्रम मे गाँवो मे प्रसाद वितरण हुये अपने अपने गाँव पहुंचकर संध्याकाल पूजा पाठ के बाद गौ माता की पूजा करके श्री कृष्ण की जयकारा करके मौन व्रत को खोलते है । रिबई ग्राम के कनधी लाल बताते है कि मोर पंख के गढठो पर एक गाँठ लगाई जाती जो कि इसी तरह से लगातार बिना बोले 12 साल तक मौनव्रत किया जाता है। वह बताते है कि 12 वर्ष बाद 1 वर्ष ब्याज सहित मथुरा बृन्द्रावन जाकर 13वी वर्ष गोर्वधन पर्वत मे दीपक जलाकर मौन चराने के बाद यमुना जी मे अपने मोर पंखों के गठठो को वही विसर्जन कर दिया जाता एवं कुछ लोग नये तरीके प्रारम्भ करने हेतू वापिस ले आते है। बाद मौन पूजा समाप्त हो जाती है।

रिपोर्ट – राकेश कुमार अग्रवाल

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