भगवान परशुराम की जयंती बड़े धूमधाम के साथ मनाई गई

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महोबा में अलग-अलग स्थान पर भगवान परशुराम का जन्म उत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया जिसमें भगवान परशुराम सेवा समिति द्वारा भगवान परशुराम जन्म उत्सव पुराना प्राइवेट स्टैंड पर बने भगवान परशुराम के मंदिर में मनाया गया तो दूसरी ओर समाजसेवी और निर्भीक पत्रकार सुमित तिवारी और उनके साथियों के द्वारा नवीन गल्ला मंडी के पास बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया साथ ही भगवान परशुराम की भव्य आरती की गई और भगवान परशुराम और लक्ष्मण संवाद एवं विशाल भंडारे का  आयोजित किया गया।

गौरतलब हो कि भगवान परशुराम सेवा समिति के तत्वाधान में पुराना प्राइवेट स्टैंड में बने भगवान परशुराम के मंदिर में एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें तमाम भक्तों ने भगवान परशुराम के प्रसाद को आशीर्वाद के रूप में  ग्रहण किया साथ ही भगवान परशुराम सेवा समिति द्वारा भगवान परशुराम के जन्म उत्सव के उपलक्ष में 51 कर्मकांडी  ब्राह्मणों एवं मंदिर के  पुजारियों तथा प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान किया गया साथ ही कानपुर से आए कलाकारों के द्वारा भगवान परशुराम और लक्ष्मण जी का संवाद किया गया वही भगवान परशुराम का किरदार डॉक्टर सर्वेश द्विवेदी ने निभाया वही कार्यक्रम की शुरुआत  मैं सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने भगवान परशुराम के मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की और भगवान परशुराम को नमन किया उसके बाद  भव्य आरती का आयोजन किया जिसमें जिले के सम्मानित  व्यक्तियों ने भाग लिया और भगवान परशुराम के बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया साथ ही भगवान परशुराम सेवा समिति के जिला अध्यक्ष मनोज शुक्ला ने भगवान परशुराम के जीवन पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा कि बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर वर्ष परशुराम जयंती मनाई जाती है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अपना 6वां अवतार लिया था।

इसी वजह से इस दिन अक्षय तृतीया के साथ भगवान परशुराम जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। भगवान परशुराम का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ हो लेकिन उनके गुण क्षत्रियों की तरह थे। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे पुत्र परशुराम थे और वह भगवान भोलेनाथ के परमभक्त थे पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म धरती पर हो रहे अन्याय, अधर्म और पाप कर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। उन्हें सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है। परशुराम का जन्म के वक्त राम नाम रखा गया था। वह भगवान शिव की कठोर साधना करते थे। जिसके बाद भगवान भोले ने प्रसन्न होकर उन्हें कई अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे। जिसमें परशु भी उनमें से एक था जो उनका मुख्य हथियार था उन्होंने परशु धारण किया इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ गया इसलिए हम सभी को भगवान परशुराम की तरह अन्याय के विरुद्ध  क्षत्रिय की तरह युद्ध करते रहना चाहिए और भगवान परशुराम के बताए हुए मार्ग में सदा चलना चाहिए इससे हमारी आने वाली पीढ़ी का कल्याण होगा आओ हम सभी मिलकर संकल्प लेते हैं कि हम भगवान विष्णु के छटमें अवतार भगवान परशुराम के बताए हुए मार्ग में हमेशा चलते रहेंगे  वही भगवान परशुराम और लक्ष्मण संवाद लोगों ने सुना और कार्यक्रम के दौरान  तमाम लोग उपस्थित रहे।

रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

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