रिपोर्ट – अनुज मौर्य
यूपी डेस्क । हिंदी साहित्य भारती उत्तर प्रदेश द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर ऑनलाइन काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया।
जिसकी अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य भारती के प्रभारी आचार्य देवेन्द्र देव ने की।
पूर्व कृषि एवं शिक्षा मंत्री(उ० प्र०) तथा केंद्रीय अध्यक्ष हिंदी साहित्य भारती डॉ० रवीन्द्र शुक्ल ने मुख्य अतिथि की भूमिका निर्वाहन करते हुए, कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया।
इस सारस्वत कार्यक्रम की संयोजिका विदुषी कवयित्री तथा संयुक्त महामंत्री उ० प्र० निधि द्विवेदी ने अपने मधुर कंठ से कार्यक्रम का संचालन करके सभी को रसविभोर कर दिया और अन्त तक बांधे रखा।
संस्कृत की प्रतिभावान कवयित्री सुश्री मुदिता अवस्थी, लखनऊ के द्वारा मधुर सरस्वती वंदना के साथ काव्य गोष्ठी का आरंभ हुआ।
कवि राजा भैय्या ‘राजाभ’, लखनऊ ने वर्तमान मानव को जागृत करती पंक्ति “सत्य से दूरी बनाकर, बच सकेंगे आप कब तक, ढोंग के बल पागलों सँग,कर सकेंगे जाप कब तक? से वाहवाही लूटी।
कवयित्री डॉ० विभा त्रिपाठी, गोरखपुर ने ” वसीयत में मिला सबकुछ, मगर तुमने कमाया क्या” जैसे सख्त तेवर में अपनी बात रखी।
कवि डॉ० मृदुल शर्मा, लखनऊ ने “शत्रु वक्ष पे तिरंगा लहराते हैं” पंक्ति के साथ ओजस्वी काव्यपाठ से श्रोताओं में ऊर्जा भर दी कवि डॉ० भूपेंद्र प्रताप सिंह , फर्रुख़ाबाद ने मध्यमवर्गीय व्यक्ति की भावनाओं को बड़ी मार्मिकता से अपनी कविता में स्वर दिए। काशी के इन्द्र्जीत निर्भीक जी ने “बाप की आंखों से आंसू बह गया” गाकर लोगों के हृदय को छुआ।
कवयित्री शुभा शुक्ला ‘अधर’, लखीमपुर ने “भूलना मुमकिन नहीं उनकी शहादत को” पंक्ति के साथ सैनिकों कि शहादत को याद किया।
श्री अक्षय प्रताप ‘अक्षय’ , मेरठ”भारतीय सैनिको के शौर्य और साहस को, माता भारती का दर्प नभ चूमता है देख।” पंक्ति से भारतीय गर्विता को बल दिया।
मुख्य अतिथि माननीय डॉ0 रवींद्र शुक्ल जी,.केन्द्रीय अध्यक्ष ने सारगर्भित ओजस्वी उद्बोधन प्रस्तुत कर सभी की अन्तश्चेतना को झकझोर कर रख दिया। साथ ही अपनी चिर परिचित शैली में हुंकार भरी,” भारत के अमर शहीदों की गाथा याद हमें, राणा का भाला याद हमें।” सोए सिंहो को जगाने में सक्षम उनके वक्तव्य और काव्यपाठ ने सभी को दिशाबोध दिया।
पूरे समय पटल पर समूह के गणमान्य विद्वतजन डॉ0 सुरचना त्रिवेदी, डॉ0 पायल राय, डॉ0 स्मृति दीक्षित, डॉ0 प्रभात अवस्थी जी तथा गाजियाबाद से डॉ0 रमा सिंह जी साथ ही सभी प्रतिभागियों की उपस्थिति और प्रतिक्रियाओं ने कार्यक्रम को जीवन्तता प्रदान की।
अन्त में अध्यक्ष आचार्य देवेन्द्र देव जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी प्रस्तुतियों पर अपने विचार रखते हुए कवियों की प्रसंशा की और अपनी सुन्दर पंक्तियों “एक ओर प्रण ठना हुआ है पान्चाली के केशों का और दूसरी ओर प्रशिक्षण है गंधार नरेशों का”, के साथ कार्यक्रम के समापन की स्वीकृति दी।
गोष्ठी की संचालिका निधि द्विवेदी ने बड़ी ही सौम्यता के साथ कार्यक्रम अध्यक्ष तथा मुख्य अतिथि महोदय सहित समस्त कवियों के प्रति अपना आभार प्रदर्शन करते हुए आगामी कार्यक्रमों से जुड़ने की अपील करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।