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नदी के पत्थरों से बनाई गई आरोग्यधाम में मिट्टी कटान के लिए दीवार
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वन विभाग के साथ राजस्व विभाग पर खड़े हो रहे सवालिया निशान
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पहले भी नदी की जमीन पर बन चुका है एक होटल
समरथ को नहिं दोष गुसाईं। यानि इंसान सब कुछ अपने अनुसार ढालने का प्रयास करता है, और सवाल खड़े करने पर अपने अनुसार जवाब भी तैयार कर लेता है। भारत रत्न नानाजी देशमुख चित्रकूट में आए तो उन्होंने ग्रामीण पुर्नरचना के लिए बहुत सारे काम किए। उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा व स्वावलंबन के लिए कई गांवों ( 500 इसलिए नही लिख सकते क्योंकि आज तक चित्रकूट या सतना जिले के 25 गांव भी कभी विवाद मुक्त नही हो सके। ) में जाकर खुद समाजशिल्पियों के काम को देखा करते थे। नानाजी के गोलोक वासी होने के लगभग 11 साल बाद अब डीआरआई के चित्रकूट प्रकल्प का विखराव किसी से छिपा नही है। लगभग सभी प्रकल्पों का पराभाव भी निरंतर अपने आपको बचाने के लिए तगड़ी जद्दोजहद कर रहा है। कोरोना कफर्यू के दौरान विवादित संत मोरारी बापू की आरोग्यधाम के अंदर कथा को लेकर स्थानीय तौर पर लगातार डीआरआई के इस प्रकल्प की तगड़ी कुख्याति हो रही है। जगद्गुरू अतुलेशानंद जी महराज ने तो खुले आम मोरारी बापू के चित्रकूट में कथा करने को लेकर लगड़ी लानत मलानत भेजकर खुले आम उन्हें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी है।
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रिपोर्ट – संदीप रिछारिया
धर्मक्षेत्र। नदी की जमीन पर कब्जा कर होटल खड़ा करने व बांध बनाकर नदी की धारा को रोकने वाले समाजसेवियों ने अब पत्थर सेवा का नाम बताकर नदी के पत्थर चोरी कर खुद की इमारतों को सुरक्षित करने के लिए दीवार बना डाली है। केंद्र और प्रदेश की सरकार में तगड़ी पकड़ रखने वाली संस्था ने ऐसा काम कोराना के कारण प्रदेश में लगे कफर्यू के दौरान किए। हैरत की बात यह है कि उनके इस काम को देखने के लिए न तो प्रशासन और न ही पुलिस के लोग मौके पर कभी गए। हैरानी की बात यह है कि जो वन विभाग 10 से 20 किलो लकड़ी लेकर जंगल से आने वाली महिलाओं से न केवल हफता वसूलता हो, उसे इतना बड़ा कारनामा दिखाई नही दिया।
गौरतलब है कि पिछले दिनों जब पूरा देश कोरोना के कारण कफर्यू की मार झेल रहा था, उस समय जानकीकुंड के आगे स्फटिक शिला डाॅक बंगले के नीचे मंदाकिनी की दूसरी तरफ डीआरआई के स्थानीय प्रमुख के साथ दर्जनों लोग नदी से पत्थर निकालकर आरोग्यधाम की बाउंड्री के पहले दीवार बनाने का काम कर रहे थे। यह काम लगभग एक सप्ताह चला। सवाल खड़ा होता है कि जिस समय कोरोना के कारण प्रदेश में लोगों को घर से निकलने पर पाबंदी हो, बाजार बंद हो। पुलिस के जवान सड़क पर निकलने वालों के चूतड़ अपने लठ् से लाल कर रहे हों, ऐसे समय में नदी से पत्थर निकालने की अनुमति कैसे संस्था को मिली। वैसे इसके पूर्व इसी संस्था ने मंदाकिनी की जलधारा को रोककर एक बांध का निर्माण कर न केवल आमोद प्रमोद का स्थल तैयार किया बल्कि नदी की जमीन पर एक होटल का भी निर्माण किया।
नदी के पत्थर निकालकर दीवार बनाने के संबंध में जब संस्था के लोगों से बात की गई तो उनका जवाब था कि वास्तव में यह काम लालबाबा की कुटिया को बचाने के लिए किया गया है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत मिली।
कोराना कर्फयू का उल्लंधन कर हो रही है रामकथा
संस्था ने अपनी उंची का कारनामा कोरोना के दौरान दिखा दिया। विवादित संत मोरारी बापू की कथा का प्रारंभ कोरोना कर्फयू के दौरान शुरू करवा दिया। कथा के लिए अखबारों में छपने के लिए जो विज्ञप्ति पहले जारी की गई तो उसमें बताया गया कि इस कार्यक्रम में केवल आयोजक परिवार के 10 से 15 लोग ही शामिल रहेंगे। लेकिन बाद में यह संख्या 500 के करीब पहुची बताई जा रही है। सूत्र बताते हैं कि संस्था ने इस कथा के लिए लगभग 50 लोगो की अनुमति ली है। लेकिन यहां पर इस समय प्रतिदिन पांच सैकड़ा से ज्यादा लोग जुट रहें हैं। ऐसे में जब पिछले साल के कोरोना की लहर के दौरान संस्था के संगठन प्रमुख खुद कोरोना से ग्रसित होकर भोपाल के अस्पताल में जाकर ठीक हुए थे तो उन्हें इस बात का ध्यान देना चाहिए कि अभी भी कोरोना खत्म नही हुआ है, उसका प्रभाव पहले से धीमा पड़ा है।
पिछले दस दिनों से श्रीबालाजी मंदिर में महंती होने की चर्चा धर्मनगरी के कोने-कोने में सुनाई दे रही है। पिछले मंगलवार के बाद अब मंदिर में महंती की चर्चा 6 जून को होना बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि 6 जून को अयोध्या के निर्वाणी अखाड़े के सचिव गौरीशंकर महराज आकर नए महंत को कंठी चादर देकर महंत बनाकर कार्यभार सौंपेगें। पिछले एक सप्ताह से चल रहे घटनाक्रमों के पीछे एक जगद्गुरू का काफी बड़ा रोल बताया जा रहा है। फिलहाल धर्मनगरी स्थित अखाड़ों के महंत व कई संतों इस मुद्दे पर मौन होने के साथ ही दो बात यह कहते हैं कि यह हमारे अधिकारों का अतिक्रमण किया जाने का प्रयास है। हम इसे कदापि बर्दास्त नही करेंगे। अगर अखाड़ों ने उन्हें सर्वोच्च पद दिया है तो वह अपने कर्तत्य का निर्वहन करें और हमारे कार्य में हस्तक्षेप न करें। बाहर से आकर संतों ने यहां पर अगर कंठी चादर करने का प्रयास किया तो फिर हंगामा होना तय है।
सीतापुर चैकी के अंर्तगत मंदाकिनी नदी के किनारे पिछले साल औरंगजेब के बनवाए श्रीबाला जी मंदिर के महंत अर्जुन दास की गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद कुछ लोगों को पुलिस ने पकड़ा। मामला कोर्ट में चल रहा है। सभी संतो ंके दल ने डीएम से मिलकर मामले का पर्दाफाश कर दोषियों को सजा देने की बात कही थी। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी संतों ने मिलकर यही बात दोहराई थी। लेकिन आज तक इस मामले का खुलासा नही हो सका।
इधर, अचानक दस दिन पूर्व पिछले मंगलवार को बालाजी मंदिर में महंत बनाए जाने की चर्चा एक दम से हवाओं में तैरने लगी। मंदिर के वर्तमान कर्ताधर्ता निर्वाणी अखाड़े के महंत के पास लोगों ने फोन करना प्रारंभ किया तो उन्होंने अपने आपको इससे अलग करते हुए कहा कि उन्हें इस मामले की कोई जानकरी नही है। अलबत्ता, पूर्व महंत की हत्या के संदर्भ में उन्होंने मुख्यमंत्री जी से मिलकर सीबीआई जांच की मांग करने की बात कही।
वैसे जानकार सूत्रों से मिली जानकारी के हिसाब से रामघाट स्थित एक बड़े अखाड़े के अधिकारी से एक जगद्गुरू के युवराज की मीटिग के बाद इस चर्चा में काफी तेजी आई। एक बड़े महंत, एक स्थान महंत व एक अधिकारी महंत ने भी इस मामले में काफी देर तक रस्साकशी की, लेकिन इस मामले को लेकर कोई आम निर्णय नही बन पाया। वैसे कुछ महंतों ने कहा कि चित्रकूट में निवास करने वाले संतोषी अखाड़ो के महंत रामजीदास अभी हरिद्वार में हैं। उनके वापस आने के बाद सभी महंत आम राय होंकर ही कोई निर्णय लेंगे। वैसे यह स्थान निर्वाणी अखाड़ा है, इसका निर्णय लेने का अधिकार केवल निर्वाणी अखाड़ा चित्रकूट के महंत हो है। वह जैसा भी निर्णय लेंगे, वह मान्य होगा।