दद्दा ( मेजर ध्यानचंद ) को भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही मिल जाना चाहिए था। क्योंकि उस समय खेल एवं युवा मामलों का दायित्व बुंदेलखंड की उमा भारती के जिम्मे था। उमा जी झांसी से सांसद भी चुनी जा चुकी हैं। उनकी पैरवी निश्चित तौर पर कारगर होती। झांसी के पूर्व सांसद व राज्यसभा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव संसद में दद्दा को भारत रत्न दिए जाने की जोरदारी से मांग कर चुके हैं।
भारतीय ओलंपिक संघ मेजर ध्यानचंद को ” शताब्दी का खिलाडी ” घोषित कर चुका है। ६ अक्टूबर १९५६ को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें देश के तीसरे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान ” पद्मभूषण ” से सम्मानित किया। ५ दिसम्बर १९८० को उनके नाम पर डाक व तार विभाग ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया। झांसी के सांसद की लोकसभा में ध्यानचंद के जन्मदिन को ‘ खेल दिवस ‘ के रूप में घोषित करने की मांग पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हराव ने ध्यानचंद के जन्मदिन २९ अगस्त को खेल दिवस घोषित कर दिया। इसी दिन विविध खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों व प्रशिक्षकों को सरकार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार , अर्जुन पुरस्कार , व द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित करती है. वर्ष २००२ में नेशनल स्टेडियम का नाम मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम कर दिया गया। जहां पर उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। लंदन में उनके नाम की एक पिच है। तो विएना में एक खेल क्लब में उनकी मूर्ति लगाई गई है।
बीते ८० वर्षों से अधिक समय में कोई भी खिलाडी मेजर ध्यानचंद के कद तक नहीं पहुंच सका है। इसके बावजूद ध्यानचंद को भारत रत्न से न नवाजे जाने से हम सभी क्षुब्ध हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए दद्दा के जन्मदिवस पर यह घोषणा कर बीती गलतियों को सुधारने की पहल करें। इससे खेल और खिलाडियों में नई ऊर्जा का संचार होगा।
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