राकेश कुमार अग्रवाल
देश के सबसे बडे व सबसे चर्चित राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी बिसात बिछने लगी है . यदि कोरोना का साया न रहा तो नए साल में चुनावी घमासान अपने पूरे चरम पर होगा . इस बार का चुनाव एक ओर जहां योगी की सत्ता में पुनर्वापसी के मुद्दे पर होगा तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए यह चुनाव आरपार की लडाई की तरह होगा . पहली बार यह चुनाव ढेर सारी पार्टियों और उनके गठबंधनों के बीच लडा जाएगा .
2022 में यूं तो उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब , उत्तराखंड , मणिपुर और गोवा समेत पांच राज्यों में चुनाव होना है . लेकिन सबसे हाई वोल्टेज चुनाव होगा उत्तर प्रदेश में क्योंकि यही वह राज्य है जिसके लिए माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता उत्तर प्रदेश से निकलती है . उत्तर प्रदेश में यह चुनाव इलेक्टोरल महाकुंभ की तरह है . जिस पर देश ही नहीं दुनिया की निगाहें रहती हैं . जिन पांच राज्यों में चुनाव होना है उनमें यूपी के अलावा पंजाब चुनाव पर भी सभी की निगाहें रहेंगी . भाजपा के लिए 2022 के ये चुनाव भी लोकसभा के लिटमस लिटमस टेस्ट की तरह हैं क्योंकि पांच में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार है .
लेकिन यूपी पर सभी की निगाहें हैं . तेजतर्रार कार्यप्रणाली व बेहतरीन कोविड प्रबंधन के लिए योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री से लेकर डब्ल्यूएचओ से तारीफ बटोर चुके हैं . लेकिन हाल में सम्पन्न हुए पंचायत चुनावों में भाजपा को मन वांछित सफलता नहीं मिल सकी है . इसलिए योगी के खिलाफ पार्टी में ही विरोध के स्वर फूटने लगे . जैसा कि भाजपा ने कुछ राज्यों में चुनाव के ऐन पहले मुख्यमंत्री बदले ऐसे में योगी आदित्यनाथ को हटाने की भी अटकलें तेज हो गई थीं . लेकिन योगी संघ व प्रधानमंत्री के विश्वस्त हैं ऐसे में उनको हटाना महज कयासबाजी या शिगूफा ही साबित हुआ . भाजपा के राज्य प्रभारी के लखनऊ आगमन व पार्टी नेतृत्व के दखल के बाद कयासबाजियों पर भी विराम लग गया है . यह भी तय हो चुका है कि पार्टी तीखे तेवर वाले योगी जी के नेतृत्व में ही चुनाव में उतरेगी . योगी आदित्यनाथ ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचकर उनके बेटे व बहू को आशीर्वाद देने के बहाने सत्ता का समीकरण भी साधा . पार्टी ने यह संदेश देने की भी कोशिश की कि पूरी पार्टी योगी के नाम पर एकजुट है . चुनाव के पहले पार्टी ज्यादा से ज्यादा पार्टी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को समायोजित करने में जुट गई है . पार्टी प्रदेश कार्यसमिति में सदस्यों को पहले ही मनोनीत कर चुकी है . पार्टी के विभिन्न अनुसांगिक संगठन व मोर्चों में भी तैनाती की जा रही है ताकि ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को समायोजित किया जा सके और चुनावों में नए जोश के साथ उनकी सेवाओं का संगठन को लाभ मिल सके .
जिला पंचायत अध्यक्ष पदों की चुनावी प्रक्रिया चल रही है ऐसे में योगी के समक्ष ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने की महती जिम्नेदारी है . यदि भाजपा ऐसा करने में विफल रही तो पार्टी के लिए चुनावों के पहले एक बडा झटका हो सकता है . और विपक्षी दलों के लिए यह एक तरह से संजीवनी होगी . हालांकि जिला पंचायत चुनावों को सत्ताधारी दल का चुनाव माना जाता है . ऐसे में भाजपा एक हद तक अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आश्वस्त भी है .
प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव पूरी रौ में हैं एवं फिर से वापसी के लिए लगातार सक्रिय हैं . सोशल मीडिया पर तो प्रतिदिन वे भाजपा सरकार पर वार करते हैं . पार्टी की नीतियों की आलोचना करते हैं . पार्टी को कठघरे में खडा करते हैं . कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी द्वारा मोर्चा संभालने से पार्टी में हलचल तो है . तमाम सीटों से प्रत्याशियों को फाईनल कर उनसे चुनाव मैदान में उतरने को भी कह दिया गया है . प्रियंका भी योगी सरकार को लपेटना का कोई मौका नहीं छोड रही हैं . बहुजन समाज पार्टी ने अपने दो दिग्गजों को चुनावों के ऐन पहले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर अपने तेवर दिखा दिए हैं . पार्टी वैसे भी सडक पर कम ही उतरती है . अलबत्ता मायावती सभी प्रमुख मुद्दों पर जरूर बोलती हैं . आम आदमी पार्टी , अपना दल , सुहेलदेव समाज पार्टी समेत एक दर्जन दलों को इन चुनावों में उतरना है . अब सारा दारोमदार बनने वाले उन संभावित गठबंधनों पर है जिनके बैनर तले चुनावी मुकाबला होगा . आने वाले तीन महीने में सियासी गणित व गठबंधनों को बिठाने का दौर चलेगा तभी चुनावी परिदृश्य बतायेगा कि 2022 का ऊँट किस करवट बैठेगा .