योगी के अफसर ही लगे योगी को निपटानेे में

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– अयोध्या धाम में रामपथ के साथ कर्तव्य पथ के साथ अन्य स्थानों पर दिख रहा है घटिया काम 
– अगले विधानसभा में भी प्रभाव डालने का हो रहा है प्रयास
– महाकुंभ को फेल करने के लिए अफसरों का चल रहा है प्लान
– चित्रकूट, वाराणसी, विध्याचल धाम के विकास कार्यों की क्वालिटी पर लग रहे प्रश्नचिंह

अयोध्या धाम में अधूरे बने श्री रामलला मंदिर के अंदर पानी भरने की खबरों को लेकर जिस तरह से विपक्ष के नेताओं व टुकड़े टुकड़े गैंग के लोगों ने मिलकर हाहाकार मचाया, और उसके पहले भाजपा के प्रत्याशी के हारने पर सीधे तौर पर अयोध्या धाम को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, इससे लगता है कि कहीं न कहीं मोदी और योगी के खिलाफ बड़ी साजिश चल रही है। वैसे साजिश की कडियों को अगर जोड़ने का प्रयास करें तो परत दर परत मामला सामने आ ही जाता है। इस मामले में जितनी नौटंकी विपक्ष के नेताओं ने फैलाई, टुकडे टुकडे गैंग के हाहाकारियों ने हाहाकार मचाया, उससे भी ज्यादा संजीदगी के साथ योगी जी को निपटाने का काम अधिकारियों ने कियां। हैरत की बात यह है कि अभी भी अधिकारियों के द्वारा यही काम अभी भी पूरे प्रदेश में चल रहा है। गंभीर बात यह भी है कि योगी और मोदी जी के आंख नाक और कान भी यही अधिकारी बने हुये हैं।

उदाहरणों के जरिये देखते हैं तो लोकसभा चुनाव में अयोध्या की हार के बाद सीधे तौर पर अयोध्या के लोगों को दोषी बताकर वहां के व्यापारियों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया। कहा गया कि अयोध्या के लोगों ने भाजपा को हराया लिहाजा वहां से प्रसाद न खरीदा जाए। इसके बाद प्री मानसून बारिश में राममंदिर में पानी भरने और सड़कें घंसने पर जो नाटक चल रहा है, उसके पीछे कहीं न कहीं अधिकारियों की कारस्तानी समझ में आ रही है। रामपथ, कर्तव्य पथ के साथ ही अन्य कामों के लिए योगी जी के भरपूर धन देने के बाद भी घटिया क्वालिटी का निर्माण होने की वजह पीडब्लूडी के अधिकारी व अन्य विभागों के अधिकारी रहें। अयोध्या धाम के संतों की मानें तो योगी जी को बार-बार इस बात को लेकर चेताया गया कि निर्माण की क्वालिटी खराब है, पर उन्होंने अपने अधिकारियों पर ही भरोसा किया। इसी तरह का हाल काशी को क्वोटो बनाने वाले प्रधानमंत्री के बयान के पीछे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के मजे लेने का है। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के बयान का खूब मजे लेकर कई बार व्यंग किये। वास्तव में अगर काशी में मंदिर और थोड़े इलाके को छोड़ दिया जाए तो दस साल बाद भी हालत बहुत अच्छी नहीं हैं।

इसके पीछे भी पूरी तरह से अधिकारियों का ही हाथ है। इसी तरह का हाल विध्यांचल धाम का है। यहां पर भी विकास के नाम पर योगी सरकार ने पूरे मंदिर परिसर को आकर्षक बनाने के लिए भरपूर पैसा दिया, काम हो रहा है, पर काम की गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अब चित्रकूट का रूख करें तो यहां पर श्री चित्रकूटधाम तीर्थ विकास परिषद की स्थापना की गई। इसके सर्वेसर्वा खुद मुख्यमंत्री हैं। जिले में जिलाधिकारी और उप पर्यटन निदेशक को इसकी जिम्मेदारी दी गई हैं। प्रशासनिक अधिकारियो के अलावा इस काम के लिए कुछ भाजपा के नेताओं को शामिल किया गया है। बताया जाता है कि उनकोेे केवल सम्मान के लिए यह पोस्ट दी गई है। वह अपनी आंख, कान और मुंह बंद कर कुर्सी संभाले। विकास के काम के नाम पर अभी तक लगभग एक सैकड़ा काम करवाये गये हैं।

उदाहरण के लिए पर्यटन विभाग ने परिक्रमा में दो विशाल गेटों के अलावा एक रामायण भवन का निर्माण कराया। अभी तक चार सुलभ काम्प्लेक्स बनवाया और भी तीन बनाये जा रहे हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए टीन शेड लगाया गया, और उस पर करोडों रूपये का पेंट कराया गया। पीडब्लूडी यूपी एमपी के प्रवेश द्वारों पर बड़े बडे विशालकाय द्वारों का निर्माण कर रही है। आम लोगों का कहना है कि जिन कामों से जनता या यात्रियों का भला होना था, इस तरह के एक भी काम न तो र्प्यटन विभाग ने किया और न ही अन्य विभागों नें।टीन की लाइफ पांच साल की है। पांच साल की लाइफ वाले टीन पर करोडों का पेंट कराया जाना धन की बर्बादी है। रामायण भवन आज तक अपने उद्देश्य पूरे नही कर पाया। पांच करोड से मंदाकिनी नदी में  शुरू करवाया गया लेजर शो भी कभी लगातार एक महीने भी चलता हुआ नही दिखाई दिया। यही हाल रामायण भवन में चलने वाले शो के हैं। यहां पर भी दिन में एक भी शो नही चल रहा है।

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि आने वाले माघ के महीने में होने वाले महाकुंभ को भी चौपट करने के लिए कई करोड रूपयों को बर्बाद करने का प्लान अधिकारी पहले से बना चुके हैं। इतना ही नही आने वाले विधानसभा के चुनाव में भाजपा का नुकसान करने के लिए अधिकारियों ने अपनी रणनीति बनाकर काम भी बकायदा शुरू कर दिया है। इसका उदाहरण बिजली, पीडब्लूडी, पर्यटन, सिंचाई, कृषि जैसे कई विभाग हैं।
आने वाले समय में यह देखना होगा कि मोदी और योगी अपने अधिकारियों से कैसे निपटते हैं। क्योंकि 27 में विधानसभा और फिर 29 में लोकसभा एक बार फिर होने वाले हैं। 

रिपोर्ट – संदीप रिछारिया

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