वाराणसी। राजातालाब रेलवे क्रासिंग जमुआ बाज़ार रोड व प्रयागराज बनारस रेलवे लाईन के किनारे हुए अवैध कब्जे को खुद यहाँ के दो दर्जन से अधिक पटरी व्यवसायियों ने शनिवार को हटा दिया।
दरअसल, तीन दिन पहले रेलवे विभाग के अधिकारियों ने अतिक्रमणकारियों को अतिक्रमण हटाने का अल्टिमेटन दिया था। इसमें खुद ही अतिक्रमण हटाने के लिए कहा गया था। आदेश नहीं मानने पर FIR दर्ज करने के साथ अवैध कब्जे पर बुलडोजर चलाने की चेतावनी दी थी।
अतिक्रमण नहीं हटाने पर रेलवे विभाग खुद इस अतिक्रमण को ध्वस्त करेगी। ध्वस्तीकरण में आने वाला खर्च भी वसूल किया जाएगा, चेतावनी के बाद अतिक्रमणकारियों ने खुद ही इस अवैध कब्जे को हटवा दिया है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने बताया कि रेहड़ी-पटरी वाले हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं। रोजमर्रा की बहुत सी जरूरी चीजें हैं जिनके बगैर आम ग्रामीण व शहरी आबादी नहीं रह सकती। ये सब उसे इन्हीं रेहड़ी-पटरी वालों से मिलती हैं।
ये अपनी सूझबूझ से आम लोगों की जरूरतों को समझते हुए आवश्यक वस्तुएं उन तक पहुंचाते और इस तरह अपना व परिवार का पालन-पोषण करते हैं। साल 2010 में रेहड़ी-पटरी वालों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) जी के तहत वेंडरों को अपने व्यवसाय संचालन का मौलिक अधिकार है और कानून के जरिए इस अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
इस फैसले के चार साल बाद, यानी साल 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार इनकी आजीविका की सुरक्षा के लिए, ‘रेहड़ी फेरी आजीविका संरक्षण व फेरी व्यवसाय नियमन विधेयक, 2014’ लेकर आई और इसे पारित कर कानून बनाया।
इसमें ऐसे कई प्रावधान हैं जो रेहड़ी-पटरी वालों को संरक्षण प्रदान करते हैं। लेकिन अफसोस, इस कानून की अभी तलक ज़िम्मेदारों ने खबर नहीं ली। आठ साल से यह कानून अमल में आने के लिए बाट जोह रहा है।
कानून यदि अमल में आता तो इसका फायदा देश के एक करोड़ से ज्यादा रेहड़ी-पटरीवालों को मिलता। ना सिर्फ उनकी कारोबारी मुश्किलें कम होतीं बल्कि पुलिसकर्मियों, ट्रैफिक पुलिसवालों और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के उत्पीड़न और शोषण से भी उन्हें मुक्ति मिल जाती।
उनकी सामाजिक सुरक्षा और आजीविका से जुड़ा एक अहम मसला हल हो जाता। इसे ठीक से अमल में लाया गया तो देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों, बाज़ारों आदि को व्यवस्थित करने के लिहाज से एक अच्छी मिसाल कायम हो सकती है।
– राजकुमार गुप्ता