रायबरेली पुलिस अधीक्षक के आते ही पत्रकारों ने की थी बगावत

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रायबरेली पुलिस/मीडिया विशेष

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था अपराध मुक्त होगा उत्तर प्रदेश

  • सदैव जनता के हित के लिए प्रयासरत हैं मुख्यमंत्री

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वादे इरादे पर जमकर किरकिरी करा रहे हैं पुलिस के अधिकारी

  • प्रेस कॉन्फ्रेंस का किया था बहिष्कार कहा था 6 दिन बीतने को हैं एसपी ने बनाए रखी है दूरी

रायबरेली – रायबरेली में जब पुलिस अधीक्षक स्वप्निल ममगई पधारे थे तभी से ही मीडिया और एसपी के बीच दूरियां बढ़ गई थी बगावत हुई प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार किया गया। पत्रकारों ने कहा था जब भी कोई नया एसपी आता है तो सबसे पहले वह मीडिया कर्मियों से मुखातिब होता है जिसमें क्षेत्रीय पत्रकार के साथ जनपद के वरिष्ठ पत्रकार पहुंचते हैं और अखबारों के माध्यम से जन संदेश दिया जाता है। जिसके बाद धीरे-धीरे मेल मिलाप का सिलसिला चंद गिने पत्रकारों से पुलिस अधीक्षक रायबरेली से हुआ। लेकिन दूरियां जस की तस बनी हुई थी अधिकतर प्रेस कॉन्फ्रेंस को एडिशनल एसपी या फिर सीओ लीड कर रहे थे। ऐसी में अंदर ही अंदर बात पत्रकारों के अंदर यह चली थी जब जिले की जिम्मेदारी और बागडोर पुलिस अधीक्षक के हाथों में है तो वह मीडिया कर्मियों से दूरी क्यों बना कर रखते हैं? इसका जवाब कोई दे ना सका। धीरे-धीरे समय बीतता चला गया और एकाएक रायबरेली में एक से एक दिल दहला देने वाली वारदात शुरु हो गई कानून व्यवस्था में बेपटरी हो गई रायबरेली की खबरें राष्ट्रीय सुर्खियां बनने लगी। आम जनमानस की भीड़ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने इकट्ठा होती लेकिन उसे न्याय ना मिलता व्यवस्था के साथ जनता अपनी बात मीडिया से कहकर वापस चली जाती थी। थाना अध्यक्ष से लेकर अन्य उच्च अधिकारी इस बात में गुरूर करते कि उनके कप्तान तो अखबार ही नहीं पढ़ते। मतलब संदेश साफ था पत्रकार जो भी कुछ लिखें वह लिखते रहे उससे कोई मतलब नहीं रह जाता। ऐसे में सवाल खड़े हो गए क्या पुलिस अधीक्षक रायबरेली डीजीपी के आदेशों को नहीं मानते? जिसमें कहा गया था पुलिस और पत्रकारों के बीच ताना-बाना बना रहे। लेकिन इसी बीच पुलिस अधीक्षक स्वप्निल ममगई के ही कार्यकाल में पत्रकारों पर प्रताड़ना शुरू हो गई हर महीने कोई ना कोई ऐसी खबरें आ रही हैं कि पत्रकार के ऊपर कातिलाना हमला हो रहा है।ऐसी में समझा जा सकता है जब रायबरेली में चौथा स्तंभ ही नहीं सुरक्षित है तो जनता की फिक्र किसे होगी? कई वरिष्ठ पत्रकार यह भी बताते हैं कि जब भी खबरों के संकलन के लिए वह बयान लेने की कोशिश करते थे तो पुलिस अधीक्षक की बजाय उनके पीआरओ फोन उठाते हैं एसपी बात तक नहीं करते। ऐसे में जनता के साथ-साथ लखनऊ को यह जानना अहम है कि पत्रकारों से कितनी दूरी पुलिस अधीक्षक से बढ़ती जा रही है! क्या पत्रकारिता में भेद हो सकता है क्षेत्रीय पत्रकार और बड़े पत्रकारों में भेद डालने का काम किया जाएगा? लोकतंत्र में चौथा स्तंभ ऐसे ढाया जाएगा? मीडिया के साथ सौतेला व्यवहार कोई नहीं कर सकता। मीडिया हर एक वक्त जन मुद्दे के लिए काम किया है और वह बखूबी करती रहेगी सच लिखती रहेगी चाहे फिर खून से कितनी भी कलम में रक्तरंजित हो जाएं। समय-समय पर सच के लिए पत्रकारों का लहू बहा है और वह लहू लोकतंत्र को मजबूत करता है। ऐसे में लखनऊ के उच्च अधिकारियों को तत्काल रायबरेली पर संज्ञान लेना चाहिए आपको जनपद को अधिकारियों के हवाले नहीं छोड़ देना है नेताओं की जवाबदेही बनती है आपने कैसे अधिकारी जनपद में तैनात कर रखे है इस पर विचार कीजिए!

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रिपोर्ट – दुर्गेश सिंह चौहान

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