रायबरेली मीडिया के एक युग का अंत है भालेन्दु जी का यूं जाना

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रायबरेली – जनपद के वरिष्ठ पत्रकार भालेन्दु मिश्रा लंबी बीमारी के बाद गोलोकवासी हो गए, जैसे ही यह सूचना प्रसारित हुई, रायबरेली जिले के पत्रकारों में शोक की लहर दौड़ गयी, युवा पत्रकारों से लेकर उनके वरिष्ठ साथियों ने उनके निधन पर शोक जताया है, जिले के तमाम संगठनों ने श्री मिश्र के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। लंबे समय तक भालेन्दु मिश्र के सानिध्य में राष्ट्रीय सहारा अखबार में अपराध बीट को कवर कर रहे पत्रकार सूरज यादव ने सोशल मीडिया पर भालेन्दु मिश्र से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है, आइए पढ़ें क्या लिखा है सूरज यादव ने…

कलम के दादा भालेन्दु जी की दादागिरी स्मरण मात्र

बारीकी उनसे ही सीखी

भालेंदु मिश्रा.. जिले की पत्रकारिता में यह एक ऐसा नाम जो कभी भी गांधी के बंदरो के सिद्धांत पर नही चले , बुरा मत देखो , बुरा मत कहो और बुरा मत सुनो , उन्होंने ठीक इसके उलट पत्रकारिता की , बुराई को बेनकाब करने की जो तड़प मैंने उनमें देखी वो कम ही लोगो मे दिखी । मेरी मुलाकात दादा से हिंदुस्तान अखबार के एक वरिष्ठ रिपोर्टर सतीश मिश्र जी ने करवाई अब जो भी उन्होंने मेरे बारे में कहा हो , फिलहाल मुझे राष्ट्रीय सहारा में जाने और काम करने का मौका मिल गया।

राष्ट्रीय सहारा में जुड़ते ही एक रूटीन मुझे अब भी याद है , शुरुआत में आफिस बंद होने के पहले मैं पीने वाले पानी का जार का पानी जो बच जाता था अक्सर लैट्रिन के डिब्बे में उनके आदेश से डालता था , चूंकि पिताजी पुलिस में अधिकारी थे तो मुझे भी अखरता था , पर धीरे धीरे जब मैं उनके करीब पहूँचा तो समझ मे आया की ये वो ट्रेनिंग थी जो मेरे अंदर के हिचक को खत्म कर रही थी , की सामने वाला कुछ भी हो हमे अपना काम बिना किसी भेद भाव के करना है ।

खबर लिखवाने में बेजोड़ चाणक्य

दादा की एक खास बात जो मुझे हमेशा जमती थी कि अगर ठान लिया तो वो कुछ भी नही सोचते थे लिखने में , एक बार मैं एक खबर लाया , उस समय के सलोंन विधायक के खिलाफ , खबर छपने के बाद विधायक ने दादा को फ़ोन करके कहा कि तुम्हारे आफिस के नीचे धरना दूंगा , आज भी याद है मुझे दादा ने उस सत्ता के विधायक को फ़ोन किया और कहा , सुनो बे विधायक भालेन्दु मिश्रा हूँ मैं , आज भी ये शब्द कानो में गूंजते है।

आलोचनाओं के बाद भी वो कभी नही बदले

दादा नाम के अनुरूप ही दादा थे उनकी बहुत सारे लोग कई बातों को ले कर आलोचना करते थे , वो चाहे पत्रकारिता से जुड़े हो राजनीतिक हो पर दादा ने कभी किसी की परवाह नही की , वो हमेशा अपने शर्तो पर ही अडिग रहते थे। एक बार का संस्मरण उन्ही से सुना था की भालेंदु दादा ने अपने खिलाफ अपने ही अखबार में खबर लिखी थी।
जब एक स्थानीय पत्रकार ने उनको अखबार से हटवाने के लिए उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के फर्जी आरोप लगाए थे।
तो उन्होंने उस खबर को अपने
ही अखबार में प्रमुखता से लिख कर छपवाया , लोगो ने कहा कि दादा यह क्या लिख रहे हो और रोकने का प्रयास किया , तो उन्होंने कहा जो उसने प्रशासन से मेरे खिलाफ शिकायती पत्र लिखा है मेरे खिलाफ जरूर है , पर
यह भी खबर है में वही लिख रहा हूं। ऐसे थे दादा भालेन्दु उनके बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने जैसा है।

चलते फिरते खबर बना लेने में महारथी

एक संस्मरण याद है मुझे अक्सर मैं दादा के साथ गेगासो घाट गंगा नहाने जाता था , एक बार रास्ते मे लालगंज टोल प्लाजा पड़ा जहाँ असुविधा के बावजूद टोल टैक्स वसूला जा रहा था , उसके बाद लालगंज कोतवाली से पहले हम लोगो की गाड़ी थोड़ी देर के लिए जाम में फस गयी , खैर हम ने गंगा में नहा कर संकटा माता के दर्शन किये , लौटने में थोड़ी देर हुई तो हम दोनों आफिस सीधे पहूँच गये । कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने टोल की मनमानी और जाम को ले कर खबर लिखवा दी ।

उनका चमचा और चेला होने पर गर्व

मेरे उनके साथ पत्रकारिता में बिताये गये करीब 8 साल के समय मे मैंने बहुत कुछ या यूं कहें की पत्रकारिता का ए , बी ,सी , डी सब कुछ सीखा , इस दौरान आलोचना करने वालो की भी कमी नही रही । अक्सर लोग पीठ पीछे मुझे उनका चेला और चमचा तक कह देते थे , और यकीन मानिये जब मुझे पता चलता था तो गुस्से की जगह गर्व होता था , की मेरा नाम उस सख्सियत के साथ जोड़ा जा रहा है , जिसके आगे बड़े बड़े सूरमा नतमस्तक हो जाते थे । आज तक कि पत्रकारिता में और भविष्य में भी जब तक पत्रकारिता करूँगा , तब तक यह ही पूंजी मेरे लिए आशीर्वाद स्वरूप रही है और रहेगी कि मैं भालेन्दु दादा का चमचा था।

चरणबद्ध विनम्र श्रद्धांजलि

सूरज यादव , क्राइम रिपोर्टर
राष्ट्रीय सहारा , रायबरेली

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