तालाब को बनाया पूल, लाइफ की जगह पेट पर बांध देते हैं कट्टी
राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
कुलपहाड़ ( महोबा ) । कहते हैं कि बुरा वक्त एक अच्छा अवसर भी लेकर आता है. वो बच्चे जो सामान्य दिनों में स्कूल जाने के लिए फटाफट तैयार होकर स्कूल के लिए निकल पडते थे आज वही बच्चे उसी वक्त तालाब के लिए निकल पडते हैं. क्योंकि इस लाकडाउन में बच्चे तैराकी जो सीख रहे हैं. इन्हें तैराकी कोई प्रोफेशनल कोच नहीं पचपन वर्षीय एक दुकानदार सिखा रहे हैं. उन्होंने तालाब को पूल बना दिया है . और लाइफ जैकेट की जगह बच्चों के पेट पर कट्टी बांध देते हैं. उन्होंने एक दो नहीं लगभग तीन दर्जन से अधिक बच्चों को जो कभी पानी के करीब जाने पर डरा करते थे उन्होंने उन्हें छपाक छई करना सिखा दिया है. सीखने वालों में आधा दर्जन लडकियां भी शामिल हैं .
पचपन वर्षीय कमलेश कुमार लक्षकार मनिहारी की दुकान चलाते हैं . वे रोजाना नगर के बडे तालाब के हरदौल घाट पर स्नान ध्यान करने जाते हैं. जब वे स्कूल में पढते थे तब से वे तैरना जानते हैं. हर वर्ष गर्मियों की छुट्टियों में वे चार – पांच बच्चों को तैरना सिखाते थे. इस वर्ष कोरोना वायरस के कारण हुए लाकडाउन में घरों में कैद बच्चे भी उनके साथ तालाब जाने लगे .और देखते ही देखते तैराकी प्रशिक्षण शुरु हो गया . गत तीन माह में कमलेश तीन दर्जन बच्चों को तैरना सिखा चुके हैं. यह प्रशिक्षण सत्र सुबह साढे पांच बजे से सात बजे तक चलता है.
कमलेश ने तालाब को पूल बना दिया है, लाइफ जैकेट की जगह बच्चे के पेट में दो कट्टी बांध दी जाती है ताकि बच्चा के डूबने की संभावना खत्म हो जाए . इसके बाद वे बच्चे को दोनों हाथ चलाना , पानी सामने से हटाना व दोनों पैर चलाना सिखाते हैं . प्रशिक्षु तैराक उनकी पहुंच में रहे ताकि कोई दिक्कत होने की स्थिति में वे उसे संभाल सकें . जब तैराक थक जाता है तो वे उसे बाहर खींच लेते हैं. दो कट्टियों के बाद एक कट्टी पहनकर और बाद में बिना कट्टी के वे तैराक का परीक्षण करते हैं. दिनेश सोनी नाम का स्टूडेंट तो महज दो दिन में तैरना गया था . जबकि सौरभ, साहिल , आदर्श , विवेक , पार्थ , शिवि व सोनपरी तो बहुत उम्दा तैराक हो गए हैं.
लडकियों को तैराकी सिखाने के लिए महिलायें भी आगे आ रही हैं . वे अपनी बेटियों को लेकर खुद तालाब पहुंच जाती हैं. खुशबू की तो कुछ समय बाद शादी होने वाली है लेकिन वह तैरना सीखने के लिए तालाब पहुंच जाती है.
कमलेश तैराकी सिखाने का कोई पैसा नहीं लेते हैं वे निशुल्क तैराकी का प्रशिक्षण देते हैं. कमलेश के अनुसार जब बच्चे तैरना सीख जाते हैं तो उनके चेहरे की प्रसन्नता व खुशी देखकर मेरा मेहनताना मिल जाता है. ज्यादातर बच्चों के मामा, चाचा लगने वाले कमलेश को जब बच्चे गुरू जी या सर बोलते हैं तो कमलेश का चेहरा खुशी से खिल जाता है. कमलेश जहां दूसरे बच्चों को तैराकी सिखा रहे हैं लेकिन उनका खुद का बेटा तैराकी सीखने से डरता है वो तो तालाब के निकट भी नहीं जाता .
कहते हैं कि ” जहां चाह वहां राह ” कमलेश जैसे लोग जो पूरा दिन व्यापार – कारोबार में उलझे रहते हैं सुबह सवेरे वक्त निकालकर स्कूली छात्र – छात्राओं को जिस तन्मयता से सिखा रहे हैं वह साबित करता है कि एक अच्छा गुरु अपने शागिर्द स्वयं ढूंढ लेता है.
कोई भी विधा जाया नहीं जाती – कमलेश
कमलेश लक्षकार के अनुसार आप जिंदगी में जो भी चीजें सीखते हैं वे कभी बरबाद नहीं जातीं . तीस साल पहले सभी लोग तैरना जानते थे . लेकिन जब से घर घर पाईप लाइन के माध्यम से पानी आने लगा लोगों का तालाबों और तैराकी दोनों से नाता टूट गया. शहरों में स्विमिंग पूल हैं वहां खर्चे ज्यादा हैं यहां तो आप मुफ्त में सीख सकते हैं..
बहुत खुश हूं मैं – शिवि
शिवि सबसे निडर तैराक है. अब पानी देखते ही तालाब में कूद पडती है. शिवि के अनुसार अब मैं बहुत खुश हूं . मुझमें कांफिडेंस आ गया है. लाकडाउन न होता तो शायद मैं तैराकी नहीं सीख पाती
तैराकी सम्पूर्ण व्यायाम है – सौरभ
सौरभ के अनुसार पहले पानी से बहुत डर लगता था. लेकिन तैराकी सीखने के बाद डर खत्म हो गया है. सौरभ के अनुसार तैराकी से अच्छी कोई विधा नहीं है . इसे सम्पर्ण व्यायाम माना जाता है. हाथ पैर फेफडे सबकी एक्सरसाइज हो जाती है.