वक्त की मांग है यूपीएससी रिव्यू बोर्ड

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Pushpendra Singh Chandel

राकेश कुमार अग्रवाल

उ.प्र. की हमीरपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने संसद में चर्चा के दौरान यूपीएससी रिव्यू बोर्ड के गठन की मांग कर फिर से एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

लोकतंत्र के तीन स्तम्भ माने जाते हैं इनमें न्यायपालिका , विधायिका व कार्यपालिका शामिल है। मीडिया को अघोषित रूप से लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है।

सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने अपने संसदीय क्षेत्र के जिला महोबा के आईपीएस आफीसर पुलिस अधीक्षक मणिलाल पाटीदार को अवैध वसूली और भ्रष्टाचार के आरोप में निलम्बित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखते हुए उन्होंने सदन में राजनीतिज्ञ जमुना प्रसाद बोस का हवाला देते हुए कहा कि तीन चार बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहने के बावजूद वे ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। अपने पूरे जीवन काल में वे किराए के मकान में रहे. सांसद चंदेल ने कहा कि विधायिका का कोई प्रतिनिधि सही काम नहीं करता जनता की अदालत में उसे पांच साल बाद हटा दिया जाता है। जनप्रतिनिधि को उसकी सजा मिल जाती है।

न्यायपालिका में न्यायाधीश पर महाभियोग का प्रावधान है। जजिस इंक्वायरी एक्ट 1968 और जजिस इंक्वायरी रूल्स 1969 के अनुसार दुराचार के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और देश के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है . देश के संविधान में अनुच्छेद 61, 124 ( 4 ) व ( 5 ) , 217 , 218 में न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग का उल्लेख किया गया है। संसद को अधिकार है कि वह दोनों सदनों में चरचा के बाद दो तिहाई बहुमत से जज को हटाया जा सकता है। जबकि सिविल सेवा में ऐसा नहीं है। सांसद चंदेल ने मांग की कि यूपीएससी रिव्यू बोर्ड का गठन किया जाए। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार और अनियमितता के मामले बढते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि केवल अच्छे अधिकारी को तरक्की दी जाए और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए। जबकि भ्रष्ट अधिकारी को सेवा से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। यूपीएससी रिव्यू बोर्ड निश्चित समयावधि पर सभी प्रशासनिक अधिकारियों के कामों और उनकी शुचिता की समीक्षा करे।

दरअसल भारत में सिविल सेवा अंग्रेजों के बनाए ढर्रे पर आधारित है। देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा को Heaven Born Service की संज्ञा दी गई है। इस सेवा में जितना कठिन प्रवेश होता है उतना ही मुश्किल इस सेवा से हटाना होता है। संविधान के अनुच्छेद 311 में प्रशासनिक अधिकारियों के सेवा के नियम और उनकी बर्खास्तगी का वर्णन है। लेकिन राज्यों के पास इनके निलम्बन का अधिकार तो है बर्खास्तगी का नहीं। राष्ट्रपति के अलावा इन अधिकारियों को कोई सेवा मुक्त नहीं कर सकता। देश में एक ओर भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की संख्या लगातार बढती जा रही है। लगभग 39 आईएएस अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। दो दशक पहले यूपी के पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह विजयशंकर पाण्डेय ने प्रदेश में तीन सबसे भ्रष्ट आईएएस चुनने की मुहिम चलाई थी। इनका चयन स्वयं आईएएस अधिकारी आईएएस वीक के दौरान किया करते थे। सबसे ज्यादा भ्रष्ट तीन आईएएस को चुनने का तात्पर्य साफ था कि भ्रष्टों की संख्या तो बहुत ज्यादा है। आईएएस एसोसिएशन उन भ्रष्टों में भी केवल महाभ्रष्ट को चुनती थी।

सत्ता संभालने के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकारी सेवा से जुडे सभी अधिकारियों से अपनी सम्पत्ति की घोषणा का फरमान जारी किया था। लेकिन कुछ समय बाद यह फरमान भी सरकारी फाइलों के बोझ तले दब गया। भ्रष्टाचार के मामले में हम दुनिया में लगातार सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। 180 देशों में भारत 78 वें स्थान पर है। जबकि एशियाई देशों में हम टाॅप पर हैं।

ऐसे में यह वक्त का तकाजा भी है कि भय और दण्ड के साथ एक नई कार्य संस्कृति विकसित की जाए। ताकि भ्रष्ट व्यवस्था पर कुछ तो लगाम लग सके।

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