वरुथिनी व्रत से सदा सुख की प्राप्ति होती है : धर्माचार्य ओम

30

प्रतापगढ़। 16 अप्रैल दिन रविवार को वैशाख कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी है।
युधिष्ठिर ने पूछा :- हे वासुदेव! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले:- राजन् ! वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है।

वरुथिनी’के व्रत से सदा सुख की प्राप्ति और पाप की हानि होती है। ‘वरुथिनी’के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं। जो फल दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बाद मनुष्य को प्राप्त होता है, वही फल इस ‘वरुथिनी एकादशी’का व्रत रखने मात्र से प्राप्त हो जाता है।

नृपश्रेष्ठ ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदान से भी अधिक महत्त्व तिलदान का है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है। विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी इस दान के ही समान बताया है।

कन्यादान के तुल्य ही गाय का दान है, यह साक्षात् भगवान का कथन है। इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है।
मनुष्य ‘वरुथिनी एकादशी’का व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है। जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामय नरक में जाते हैं।

अत: सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिए। जो अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं।
‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करके भी मनुष्य उसी के समान फल प्राप्त करता है।

राजन् ! रात को जागरण करके जो भगवान मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं। अत: पाप भीरु मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिए । यमराज से डरने वाला मनुष्य अवश्य ‘वरुथिनी एकादशी’का व्रत करे।

राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।

दासानुदास ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ,रामानुज आश्रम, संत रामानुज मार्ग शिव जी पुरम प्रतापगढ़ ट्रस्टी नैमिष नाथ भगवान मंदिर रामानुज कोट अष्टम भू बैकुंठ नैमिषारण्य।

कृपा पात्र परम पूज्य श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथ पुर नोट :–16 अप्रैल दिन रविवार को ही परम पूज्य श्री वैष्णव स्वामी वल्लभाचार्य जी की 546 वीं जयंती भी है। पारणा 17अप्रैल दिन सोमवार को 8/ 8 तक प्रातःकाल।

  • अवनीश कुमार मिश्रा
Click