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तो क्या बदल गई पत्रकारिता की परिभाषाएं
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कट, कॉपी, पेस्ट की मानसिकता हो चुकी है हावी
संदीप रिछारिया (वरिष्ठ संपादक)
कोरोना के डर ने वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है। इस समय हर व्यक्ति का दिमाग कोरोना के मरीजों की संख्या का काउंट में लगा हुआ है। अब जब हर व्यक्ति का दिमाग केवल एक काम मे लग गया हो तो वह दूसरी जगह अपने दिमाग का उपयोग कैसे कर सकता है। ऐसा लग रहा है कि लगभग हर व्यक्ति एक तरह की मानसिक रुग्णता का शिकार हो गया है।
अधिकारी, नेता व पत्रकार सभी इस स्थिति में है कि वह कुछ भी सोचने समझने का काम नही कर रहे है। ऊपर से आने वाले आदेश को बिना स्थानीय स्थिति को परखे समझे वे हूबहू पालन कराने में लगे हुए है। सत्तापक्ष के नेता कोरोना से बेख़ौफ़ होकर अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे है। शादी विवाह के लिए जहाँ 50 व्यक्तियों की इजाजत लिखित में लेनी पड़ रही है,वही नगर पालिका,नगर पंचायत में मनोनीत सदस्यों के शपथ ग्रहण में हजार की संख्या जुट जाना मामूली बात है। वैसे किसी भी दूसरी पार्टी के नेताओं को किसी भी तरह के सार्वजनिक आयोजन की छूट नही है,जबकि भाजपाई आराम से लोगों के घर जाकर पत्रक बांटकर अपनी पार्टी का गुणगान कर रहे है।
अब आते है अपनी बिरादरी यानी पत्रकारों पर,,कोरोना काल की शुरुआत तो वैसे देश मे 30 जनवरी को केरल में हो गई थी।लेकिन ट्रम्प साहब को नमस्ते करने के चक्कर मे इसे मार्च के अंतिम सप्ताह तक भयावह नही बनाया गया। 22 मार्च को पीएम साहेब ने जनता से कर्फ्यू लगवा लिया और 25 तारीख से खुद पूरे देश को बिना व्यवस्था किए लाकडाउन कर लोगों को घरों में कैदी बना दिया।अपने घरों को छोड़कर दूसरे प्रांत में रहकर कमाने वाले करोडों मजदूर फंस गए। अब बात मुद्दे की करते है,,,इस दौरान एक शब्द निकला प्रवासी मजदूर,,,और देखते ही देखते यह शब्द पूरे देश के बच्चों के दिमागी डिक्शनरी में फीड हो गया और आज तक हर अखबार,चैनल, सोशलमीडिया प्लेटफार्म पर तेजी से ट्रेंड कर रहा है।
अब बात करते है उस सच्चाई की कि इस शब्द का प्रयोग कहा और किस प्रकार किया जाना उचित है। इसे उदाहरण के द्वारा समझते है।महोबा,हमीरपुर का रहने वाला व्यक्ति दिल्ली या हरियाणा में काम करता है तो वह दिल्ली या हरियाणा के प्रवासी होगा। जबकि वह महोबा हमीरपुर के लिए स्थानीय।अब महोबा की पत्थर मंडी में छत्तीसगढ़ का काम करने वाला प्रवासी होगा तो वह छत्तीसगढ़ में स्थानीय।
लेकिन हमारे खबरनवीस यही चूक कर गए,,,सबसे पहले प्रवासी मजदूर शब्द का उपयोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया था। उन्होंने लाकडाउन के कुछ दिन बाद सभी प्रवासी मजदूरों को खाना देने का आश्वासन दिया था,पर उन्होंने ऐसा किया नही तो मजदूर दिल्ली से भागने लगे।
अब और कुछ शब्द ऐसे है जिनका प्रयोग हमे काला अंग्रेज साफ तौर पर घोषित करते है। मजे की बात तो यह है कि हमने ही कभी इन शब्दों के वास्तविक अर्थों को पहचानने की जहमत मोल नही ली। पहले ये शब्द देखिए और फिर बताउगा कि आखिर इनका प्रयोग क्यो और किसके लिए किया जा रहा है।
मास्क, हैंडवाश, कोरेण्टाइन, सोशल डिस्टेंस, सेनेटाइज, होम स्टे। ये छह शब्द है जो हम सभी ज्यो का त्यों कॉपी,पेस्ट मार देते है। कभी सोचा है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जो कि हिंदुत्व के सबसे बड़े संवाहक है और हिन्दू संस्कृति के विश्व मे सबसे बड़े बन चुके है,इन शब्दों का प्रयोग क्यों और किसके लिए करते है? वास्तव में मोदी जी अब केवल भारत के नही बल्कि पूरे विश्व के सर्वमान्य नेता हो चुके है।उनकी कही हुई बात को पूरे विश्व का मीडिया अपने-अपने माध्यम में भरपूर जगह देता है,विश्व स्तरीय मीडिया को समझाने के लिए वो अंग्रेजी माध्यम के कुछ शब्दों का प्रयोग करते है। इसको इस प्रकार समझिये जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में विश्व धर्म संसद में बोलने गए तो क्या हिंदी या बांग्ला में बोले नही ना उन्होंने अंग्रेजी में अपना व्यक्तव्य दिया। आज भी सार्वजनिक जीवन जीने वाली बड़ी हस्तियां अपना व्यक्तव्य पत्रकारों की सुविधा के हिसाब से हिंदी या अंग्रेजी में देते है।अब एक सवाल खड़ा होता है कि अगर कोरेण्टाइन शब्द देखे तो अंग्रेजी के अलावा जर्मन व फ्रेंच में इसे कोरेण्टाइन ही कहा जाता है जबकि इसे स्पेनिश में कोरेंटीनो कहा जाता है।अब सवाल खड़ा होता है कि इसे स्पेनिश का पत्रकार कोरेण्टाइन लिखेगा या फिर कोरेंटीनो। हम हिंदी भाषी पत्रकार अंग्रेजी के इतने गुलाम हो चुके है कि हमे संगरोध या एकांत लिखने में न केवल शर्म आएगी बल्कि हमे इसे लिखना न पड़े इसके लिए हम बहुत सारे कुतर्क भी गढ़ डालेंगे। वैसे आपकी सुविधा के लिए पांच अन्य विशेष शब्दों की हिंदी आपको देता हूं। ये शब्द है,,मास्क का शाब्दिक अर्थ मुखोटा होता है। स्थानीय तौर पर जानवरों के मुँह को बांधने के लिए मुस्का शब्द का प्रयोग किया जाता है। मेरे हिसाब से आज जो मास्क बॉधा जा रहा है, उसे मुस्का ही कहा जाना चाहिए। अन्य शब्दो के अर्थ भी लीजिये,,,हैंडवाश–हाथ धोना,,,,सोशल डिस्टेंस- सामाजिक दूरी, सेनेटाइज- पवित्रता, होम स्टे-घर पर रहिये।
हिंदी दिवस पर निज भाषा उन्नति अहै का गाना गाने वाले साथियों वास्तव में पत्रकार अपने नेत्र और दिमाग को खोलने के साथ ही कलम की धार को भी तेज करो, समय बहुत जटिल है।