विश्व युद्ध के कारण अस्तित्व में आया संयुक्त राष्ट्र

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राकेश कुमार अग्रवाल

मानव सभ्यता ज्यों ज्यों विकसित होती गई त्यों त्यों युद्ध व लडाई के नए नए तरीके विकसित होते गए . लडाइयों के तौर तरीके बदले , लडाइयों के स्थान बदले , युद्धों के विषय व मुद्दे बदले लेकिन इंसान ने लडना नहीं छोडा।

एक स्वस्थ समाज यूं तो हिंसा , लडाई – झगडा या युद्ध की वकालत नहीं करता , लेकिन इसके बावजूद दुनिया का इतिहास युद्धों से भरा पडा है। इन युद्धों में न केवल भारी जनधन हानि हुई बल्कि लाखों लोग घायल हुुए और कमोवेश इतनी ही बडी संख्या में लोग बेघरबार हुए।

28 जुलाई 1914 को शुरु हुआ पहला विश्व युद्ध 52 माह अर्थात् 11 नवम्बर 1918 तक चला . इस युद्ध में गठबंधन सेना की विजय हुई। जर्मनी , रूसी , ओटोमनी और आस्ट्रिया – हंगरी साम्राज्य का अंत हुआ। प्रथम विश्व युद्ध की विनाशलीला को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि इस युद्ध में लगभग एक करोड लोगों की जान गई थी।

लेकिन इस युद्ध का उजला पक्ष भी रहा। एक तो यूरोप और एशिया की तमाम राज सत्ताओं का पराभव हुआ। दूसरा लीग आफ नेशन्स अस्तित्व में आया। तमाम राष्ट्रों ने मिलकर राष्ट्रसंघ की अवधारणा को अमली जामा पहनाया और इस तरह तमाम राष्ट्रों का समन्वित संगठन राष्ट्रसंघ के बैनर के रूप में बना।
जापान के चर्चित लेखक हारुकी मुराकामी ने दुनिया को खबरदार करते हुए कहा था कि ” ध्यान से सुनो , ऐसा कोई युद्ध नहीं है जो सभी युद्धों का अन्त कर दे ” मुराकामी का कथन भविष्यवाणी बनकर सच साबित हुआ जब प्रथम विश्व युद्ध के महज 20 वर्ष बाद 1939 में दूसरे विश्व युद्ध का बिगुल फुंक गया।

एक सितम्बर 1939 से शुरु हुआ यह विश्व युद्ध 6 वर्ष यानि 1945 तक चला। इस विश्व युद्ध में 70 देशों की भागीदारी रही। 10 करोड सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया। 5 करोड से अधिक लोगों की जानें गई। पहली बार दुनिया में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ। हिरोशिमा – नागासाकी के रूप में विश्व इतिहास की सबसे बडी त्रासदी से दुनिया दो – चार हुई।

नाजी जर्मनी के साथ जापानी व इतालवी साम्राज्यों का इस युद्ध में पतन हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के रूप में दो महाशक्तियों का उत्थान हुआ। राष्ट्रसंघ ( लीग आफ नेशंस ) द्वारा प्रभावी भूमिका न निभा पाने के कारण उसका विघटन हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध जितना संहारक रहा उसके परिणाम स्वरूप दुनिया उतने ही रचनात्मक कदम उठाने को मजबूर हुई।

और इसके बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, सुरक्षा , आर्थिक विकास , मानवाधिकार , सामाजिक प्रगति और विश्व शांति के लिए 50 देशों के हस्ताक्षर के साथ संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। चीन , फ्रांस , सोवियत संघ , ब्रिटेन और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के लिए चार्टर को मंजूरी दी।
इस तरह से देखा जाए तो दूसरे विश्व युद्ध ने भूमंडलीकरण की अवधारणा को साकार कर दिया। सदस्य देशों के मध्य एबीसी अर्थात् एटामिक ( परमाणविक ) , बायोलाॅजिकल ( जैविक ) , केमीकल ( रासायनिक ) हथियारों को इस्तेमाल न करने पर सहमति बनी। सीटीबीटी ( कांप्रिहेंसिव टेस्ट बान ट्रीटी ) , एनपीटी (न्यूक्लियर नाॅन प्रालिफिरेशन ट्रीटी ) , एवं पीटीबीटी ( पार्शियल टेस्ट बैन ट्रीटी ) जैसे महत्वपूर्ण कदमों पर सहमति बनी।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व बैंक , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष , विश्व स्वास्थ्य संगठन , अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी , , अंतर्राष्ट्रीय अपराध आयोग , संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ( यूनीसेफ ) , संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( यूएनडीपी ) , संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास , संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, , संयुक्त राष्ट्र शिक्षा , विज्ञान एवं सांस्कृतिक परिषद , संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( यूएनईपी ) , संयुक्त राष्ट्र राजदूत , विश्व खाद्य कार्यक्रम , अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन , जैसे कार्यक्रम व एजेंसियों को क्रियान्वित कर पूरे विश्व के सभी देशों को एक दूसरे के और करीब ला दिया। छोटे बडे देशों का भेद खत्म हुआ . युद्धों पर एक हद तक लगाम लगी। आपदाओं में देशों ने एक दूसरे के साथ खडा होना शुरु किया। संस्कृतियों का आदान प्रदान बढा और तो और इंसानों के साथ साथ ऐतिहासिक धरोहरों को विश्व विरासत सूची में शामिल कर उनके संरक्षण की दिशा में प्रभावी पहल शुरु की गई।

संयुक्त राष्ट्र का संविधान चीन गणराज्य , फ्रांस , सोवियत संघ , यूनाइटेड किंगडम , संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य हस्ताक्षर कर्ताओं के बहुमत द्वारा अनुमोदित होने के बाद लागू हुआ।

शायद अगर दूसरा विश्व युद्ध न हुआ होता तो न दुनिया के देश एक दूसरे के इतने करीब होते न इंसानी नजरिया इस कदर बदला होता।

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