राकेश कुमार अग्रवाल
हिंदुस्तान पूरी दुनिया का सबसे बडा बाजार है . यही कारण है दुनिया के सभी विकसित देशों की नजर हिंदुस्तान पर लगी रहती है . भले सरकार जोर शोर से ‘ मेक इन इंडिया ‘ या फिर ‘ आत्मनिर्भर भारत ‘ की बात कर रही हो लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे देश में इनोवेशन पर वह काम हो रहा है जिसको लेकर पूरी दुनिया की निगाहें हम पर हों ?
ब्लूमबर्ग ने हाल ही में इनोवेशन इंडेक्स 2021 जारी किया है . इस सूची में भारत , दुनिया के देशों में 50 वें स्थान पर है . जबकि छोटे से एशियाई देश दक्षिण कोरिया ने जर्मनी जैसे देश को पछाडकर पहला स्थान हासिल किया है . दक्षिण कोरिया यह वही एशियाई देश है जो भारत से ठीक दो साल पहले 15 अगस्त 1945 को आजाद हुआ एवं 15 अगस्त 1948 को गणराज्य बना . महज 6 करोड की आबादी वाले दक्षिण कोरिया का क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया में 108 वां स्थान है . सिंगापुर दूसरे एवं स्विटजरलैण्ड तीसरे स्थान पर रहा है जबकि जर्मनी पहले से चौथे स्थान पर पहुंच गया है . ये सभी देश भी आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत छोटे हैं . इजरायल ने ब्लूमबर्ग की सूची में सातवां स्थान हासिल किया है . इनोवेशन के मामले में दुनिया के टाॅप टेन देशों में सात देश यूरोप के हैं .
इनोवेशन का तात्पर्य है नई खोजें . हम सभी बचपन से पढते और सुनते आए हैं कि ” आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है . ” पचीसों वर्ष पहले जो खोजें होती थीं उनके पीछे आवश्यकता का सिद्धान्त काम करता था . लेकिन वर्तमान में जो नित नए आविष्कार और खोजें हो रही हैं उनके पीछे आवश्यकता से कहीं ज्यादा बाजार , स्टेटस , लक्जरी और लाइफ स्टायल का सिद्धान्त काम कर रहा है . विज्ञापन के दम पर और स्टेटस सिम्बल बनाकर उसे बाजार में उतारा जाता है फिर उसका किसी सेलेब्रिटी के माध्यम से विज्ञापन कराकर नया खरीदार वर्ग तैयार किया जाता है .
आदिमानव से लेकर 21 वीं सदी की इस विकास यात्रा के पीछे इंसान का यही दिमाग लगातार कुछ न कुछ नया रचता आ रहा है . क्योंकि लगातार और लम्बे समय तक एकरसता ऊब पैदा करती है . हालांकि यह बात भी उतनी ही सही है कि इंसान जिस सिस्टम को लगातार इस्तेमाल करता रहता है तब उसे ऐसा महसूस भी नहीं होता है कि इसकी जगह ऐसा होता तो कितना अच्छा होता है . जबकि जीनियस और दूरदर्शी लोग उस आइडिया पर काम करते हैं जो आइडिया बदल सकता है हम , आप , सबकी दुनिया .
ब्लूमबर्ग दस मानकों पर ब्लूमबर्ग इनोवेशन इंडेक्स जारी करता है इसमें रिसर्च और डेवलपमेंट खर्च , मैन्युफैक्चरिंग केपेसिटी , हाइटेक पब्लिक कंपनियों का बढना और सेवन इक्विलिटी वेटेज मैट्रिक्स प्रमुख हैं .
गौरतलब है कि भारत में शोध – अनुसंधान पर होने वाला खर्च 2012 से ही जीडीपी के 0.07 फीसदी पर अटका है . सबसे विकट समस्या है विज्ञान की शिक्षा की . माध्यमिक शिक्षा से प्रयोगशालायें गायब होती जा रही हैं . हालात इतने विकट हैं कि विज्ञान के शिक्षक तक अपने विषय और टाॅपिक से जुडे प्रक्टिकल कराने में कतराते हैं . छात्रों को प्रयोगात्मक परीक्षाओं में नंबर लुटा कर परसेन्टेज बढाने का खेल खेला जाता है . कालेजों में लैब हैं तो उपकरण नहीं है . केमीकल्स नहीं हैं . लैब टेक्नीशियन नहीं हैं . जब परीक्षायें आती हैं तब लैब की झाडफूंक की जाती है . सरकारी स्कूलों के पास फंड का रोना है तो निजी स्कूलों को लगता है कि ये अनावश्यक खर्च है जिसे करना जरूरी नहीं है . नया कुछ सीखने सिखाने का काम तो चंद शिक्षण संस्थाओं में होता है . अन्यथा पूरा फोकस आईआईटी जेईई और नीट एक्जाम को क्लियर करने पर होता है भले उसका माइंडसेट कतई डाॅक्टर और इंजीनियर बनने का न हो . विज्ञान विषय भी पेरेन्टस द्वारा अभी भी छात्रों को थोपा जाता है . भले उसकी उस विषय में कोई रुचि न हो . न ही नया कुछ सोचने की उसकी सोच हो . ऐसे छात्र येन केन प्रकारेण परीक्षा तो पास कर लेते हैं लेकिन विज्ञान विषय उन्हें हमेशा डराता रहता है .
चौंकाने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 2018 में विज्ञान और इंजीनियरिंग में भारत में शोध की 40, 813 डिग्रियां बांटी गईं . पीएचडी की उपाधियां बांटने में अमेरिका और चीन के बाद भारत पूरी दुनिया में तीसरे स्थान पर है जबकि पेटेंट कराने के मामले में हम कोसों दूर हैं .
दुनिया की जितनी भी कंपनियों ने पैसा कमाया है उसके पीछे उनकी टीम के द्वारा किए गए नए नए आविष्कार और उन आविष्कारों को पूरी दुनिया के लोगों द्वारा स्वीकार कर उनका उपयोग करना शामिल है . जबकि भारत की तमाम कंपनियां जिन्होंने अकूत संपत्ति अर्जित कर ली है उन्होंने आज तक दुनिया को कोई ऐसा आविष्कार नहीं दिया है जिसके पीछे दुनिया के तमाम देशों के उपभोक्ता खरीदने के लिए क्रेजी हों .
नई पीढी को विज्ञान से नए नए प्रयोगों से ही जोडा जा सकता है . बेहतर तो यह होगा कि माता पिता अपने बच्चे को क्या बनाना चाहते हैं इसके बजाए बच्चा क्या बनना चाहता है इस पर फोकस किया जाए . माता पिता अपनी चाहत या अपने अधूरे सपने को बच्चों पर न थोपें . तभी इनोवेशन के क्षेत्र में हम अगली कतार में आ सकते हैं .
वैज्ञानिक सोच के बिना कैसे होंगे इनोवेशन में अव्वल
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