सब्जी उत्पादक सब्जी की लागत नहीं वसूल पा रहे और गुटखा-शराब बिक रहे मुंहमांगे दामों पर

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राकेश कुमार अग्रवाल

कुलपहाड (महोबा)। लाॅकडाउन के चलते सब्जी उत्पादकों की शामत आ गई है। सब्जियों की ज्यादा आवक होने के कारण सब्जियों का कोई खरीदार नहीं है जिसके चलते सब्जी उत्पादकों की लागत तक नहीं निकल पा रही है। जबकि दूसरी ओर पान मसाला, गुटका और शराब ब्लैक में दोगुनी से तिगुनी कीमत पर बिक रही हैं। जिसके चलते कालाबाजारी करने वाले दुकानदारों की चांदी ही चांदी हो गई है।

गौरतलब है कि वर्तमान में सब्जी उत्पादक खून के आंसू रो रहा है क्योंकि उसका टमाटर दो रुपये किलो, भिडीं 20 रुपये किलो, कददू 5 रुपये किलो, लौकी 6 रुपये किलो, मिर्च 25 रुपये किलो, बैगन 6 रुपए किलो, प्याज 10 रुपए किलो, करेला 30 रुपए किलो, धनिया पत्ती 30 रुपए किलो बिक रहे हैं। केवल आलू, लहसुन और वो सब्जियों जो बाहर से यहां आती हैं जिनका उत्पादन यहां नहीं होता है महंगी बिक रही हैं. सब्जी उत्पादक रतीराम के मुताबिक लाकडाउन के कारण शादियां नहीं हो रही हैं इसलिए सब्जी की थोक डिमांड खत्म हो गई है।लाकडाउन के चलते सब्जी की सप्लाई बाहर भी नहीं जा पा रही है। जिसकी चोट सब्जी उत्पादक पर पडी है. उसकी लागत, मेहनत और मंडी तक लाने की लागत कीमत भी वसूल नही हो पा रही है। सभी सब्जी उत्पादक खून के आंसू रो रहे हैं, क्योंकि अब उन्हें औने पौने दाम पर सब्जी बेचना पड रही है।

दूसरी ओर पान मसाला, गुटका की बिक्री प्रतिबंधित हो जाने के बावजूद धडल्ले से बिक रहा है। पुराने रेट से दोगुना, तीन गुना कीमत पर कितनी भी मात्रा में गुटका खरीदा जा सकता है। यही हाल शराब की बिक्री का है। सभी ब्रांड की शराब धडल्ले से खरीदी बेची जा रही है। कालाबाजारियों की लाकडाउन में जैसे लाटरी खुल गई है। उन्होने लाखों रुपए की कमाई एक एक ब्रांड का गुटका बेच कर कर ली है।

प्रशासन कोरोना से जुडे दिशा निर्देशों के अनुपालन में खोया है। छापामारी और जब्ती न होने से कालाबाजारियों की पौबारह हो गई है।

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