सभी सरकारों की उपेक्षा का दंश झेल रहा बुंदेलखंड

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राकेश कुमार अग्रवाल

देश में राज्यों के पुनर्गठन के पहले ही उत्तर प्रदेश अस्तित्व में आ गया था . उत्तर प्रदेश का गठन 1950 में हो गया था जबकि राज्यों का पुनर्गठन 1956 में हुआ था . उत्तर प्रदेश में 1935 के यूनाइटेड प्रोविंस के साथ रामपुर , बनारस और टिहरी गढवाल की रियासतें जोड दी गई थीं .

राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषा और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर तमिल , मलयालम , तेलुगु , कन्नड , महाराष्ट्र , गुजरात , बंगाल , उडीसा , पंजाब , हरियाणा , हिमाचल आदि राज्य बना दिए . लेकिन उत्तर प्रदेश में भाषा और भौगोलिक परिस्थिति वाले दोनों मानकों की अनदेखी कर दी गई . कुमायूं और गढवाल मंडल की परिस्थितियां बाकी यूपी से सर्वथा अलग थीं फिर भी अलग पर्वतीय राज्य न बनाकर इसे इन उत्तर प्रदेश से जोडे रखा गया . कमोवेश यही हाल बुंदेलखंड , ब्रज , पूर्वांचल व अवध क्षेत्रों को लेकर था . जिनकी अनदेखी की गई .
दक्षिण पश्चिमी उत्तर प्रदेश अर्थात बुंदेलखंड में कृषि योग्य जमीन का बड़ा भारी रकबा मौजूद है . बुंदेलखंड की मिट्टी दलहन , तिलहन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है . यहां के बाशिंदे कर्मठ और हाडतोड मेहनत करने वाले हैं . फिर भी यहां का विकास नहीं हुआ . खेती पर आधारित बुंदेलखंड की अर्थ व्यवस्था को सिंचाई के पुख्ता इंतजाम के साथ बिजली व सम्पर्क सडकों का जाल बिछाया गया होता तो ऐसे हालात ही पैदा न होते . प्रदेश में पहली पंचवर्षीय योजना के पूर्व तक प्रदेश में फसल योग्य लगभग 300 लाख हेक्टेयर जमीन में कुल 30 लाख हेक्टेयर की सिंचाई सुविधा थी . सिंचन क्षमता पूरे प्रदेश में बढी लेकिन बुंदेलखंड आजादी के सात दशक बाद भी सिंचाई के लिए पानी को छोडिए पेयजल को भी तरस रहा है . बेतवा और केन नदियों को जोडे जाने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना पर कब अमली जामा पहनाया जाएगा कोई नहीं जानता .

आखिर प्रदेश के असमान विकास के लिए जिम्मेदार कौन है ? प्रदेश में वही क्षेत्र तरक्की कर पाए हैं जहां का राजनीतिक और नौकरशाही नेतृत्व राज्य सत्ता पर काबिज रहा . प्रदेश में सत्ता कभी सहारनपुर तो कभी गोरखपुर के बीच अर्थात उत्तर पश्चिम एवं दक्षिण पूर्व के बीच घूमती रही है . संपूर्णानंद , सुचेता कृपलानी , त्रिभुवन नारायण सिंह , कमलापति त्रिपाठी , रामनरेश यादव , वीपी सिंह , श्रीपति मिश्र एवं वीर बहादुर सिंह का ताल्लुक पूर्वांचल क्षेत्र से जबकि चंद्रभान गुप्त , चौधरी चरण सिंह , मुलायम सिंह एवं कल्याण सिंह के नाम प्रमुख हैं का वास्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रहा है . राज्य के मुख्यमंत्रियों में पंडित गोविंद बल्लभ पंत , हेमवती नंदन बहुगुणा व नारायणदत्त तिवारी राज्य के उत्तराखंड क्षेत्र से आए थे . इनमें भी बहुगुणा और तिवारी की शिक्षा दीक्षा इलाहाबाद में होने के एक का झुकाव पूर्वी उत्तर प्रदेश और दूसरे का पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा है ।

मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो लेकिन उनकी कैबिनेट में भी संख्या और महत्वपूर्ण विभाग की दृष्टि से पूर्व और पश्चिम का बोलबाला रहा है . केवल मायावती की सरकार में बुंदेलखंड को मंत्रिमंडल में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला था . अन्यथा निवर्तमान योगी सरकार में भी बुंदेलखंड उपेक्षित ही रहा है . ऐसे में यदि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग जोर पकडती जा रही है तो इसमें गलत भी क्या है .

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