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मामाजी के अधिकारियों को मीडिया की पहल पर वनवासियों ने दिखाया आईना
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सरकारों की नाकामी के बाद आदिवासियों ने खुद के हाथों लिखी आत्मनिर्भरता की कहानी
सतना – देखिए मुख्यमंत्री जी आदिवासियों ने यह क्या कर दिखाया ? देश और प्रदेश की सरकारें जल संरक्षण के नाम पर देश की आजादी के बाद से अब तक शायद अरबों रुपए खर्च कर चुकी होंगी। लेकिन शायद ही कहीं जल का संरक्षण हुआ हो। हां नेता और अधिकारियों / कर्मचारियों का जरुर पूरा संरछन हो रहा है। सतना जिले में ही बीसियों साल से करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी आज तक सतना जिले के निवासी नर्मदा नदी के पानी को पीने के लिए अब तक तरस रहे है। वहीं दूसरी तरफ सरकारों और नेताओं की वादा खिलाफी से अजीज आए आदिवासियों के साथ ही उनके बच्चों के नन्हे नन्हे हाथों ने पानी रोक कर सरकार को आईना दिखा दिया।दशकों से पानी की एक-एक बूंद को तरसने वाले आदिवासियों ने आत्मनिर्भर होने की एक ऐसी मिसाल पेश की है। जिसे देख कर शासन प्रशासन भी एक बार सर झुका लेगा।मासूम बच्चों ने अपने अपने माताओं और पिताओं के साथ मिलकर एक ऐसे बांध का निर्माण किया है। जिसमे ठहरा पानी छेत्र के हजारों आदिवासियों के साथ ही जंगली जानवरों और पक्षियों की न सिर्फ प्यास बुझायेगा बल्कि रवी फसलों की पूरी खेती भी इस पानी से हो सकेगी।वर्षों से छेत्र में पानी की समस्या कुछ ऐसी थी की पूरा गांव का गांव पलायन कर जाता था।शासन प्रशासन से मांग कर-कर के थक हार चुके इन ग्रामीणों आदिवासियों ने पानी के लिए न सिर्फ डेम का सपना देखा बल्कि कड़ी मेहनत कर के उसे बना भी डाला।आदिवासियों सहित छोटे छोटे हांथो से पत्थर उठते ये बच्चे उस आदिवासी गांव के रहने वाले है। जहां साल के 8 महीने पानी की एक बूंद का मिलना किसी सपने से कम नही है।सतना जिले में चित्रकूट स्थित यह बटोही गांव कहने को तो नगर पंचायत का बार्ड नंबर 13 है। लेकिन आजादी के 73 सालों बाद भी पानी की एक एक बूंद के लिए यहां के निवासी बाट जोह रहे थे।
हजारों की आवादी वाले इस गांव में पानी की समस्या इतनी विकराल हो जाती थी, की ग्रामीण आदिवासी यहां से पलायन कर जाते थे। रोजगार और सूखे के चलते इन्हे दूसरे शहरों में जाकर पेट पालने के लिए मजबूर होना पड़ता था। इस बीच कुछ युवा समाजसेवी इन ग्रामीणों की मदद के लिए आगे आए, और इन्हे प्रोत्साहित किया, जिसके बाद आदिवासीओं ने बारिश का पानी जमा करने की ठान ली।” हिम्मतें मर्दा, मददे खुदा ” की कहावत को चरितार्थ करते हुए उन्होंने 5 फिट का एक ऐसा डेम बना डाला जिसमे इतना पानी ठहर गया जो आने वाले 6 माह तक गामीणो को पानी के संकट से बचा कर रख सकता है।यही नही रवी फसलों की पूरी सिंचाई भी वो इस पानी से कर लेंगे।ऐसा नही है कि बटोही गांव के ग्रामीणों का यह कोई पहला कदम है। भारत की आजादी के कई दशकों बाद भी इस गांव के लोगों ने कभी स्कूल और बिजली नहीं देखी थी।
युवा समाजसेवियों ने ग्रामीणों की मदद की और नई पीढ़ी को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया।
इस दौरान मीडिया के माध्यम से यह बात मध्य प्रदेश सरकार तक पहुंची और तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने यहां एक स्कूल की सौगात दी, साथ ही में गांव तक बिजली भी पहुंच गई।लेकिन पानी की समस्या आज तक बरकरार थी। लिहाजा ग्रामीणों ने इसका समाधान भी ढूंढ निकाला।
” कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ” बटोही गांव के आदिवासियों की ये मेहनत इसी कहावत को चरितार्थ करती दिख रही है।
अब देखना यह होगा कि इसके बाद शासन प्रशासन इनकी बेहतरी के लिए क्या कदम उठता है।